भारतीय युवा चुन रहे हैं आत्महत्या का रास्ता
१० मई २०१६मंगलवार की सुबह लंदन के यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ के केनेडी सभागार में किशोर स्वास्थ्य और तंदुरूस्ती पर लेंसेट कमीशन की इस रिपोर्ट को जारी किया गया. इस मौके पर कमीशन के संपादक जार्ज पेटन ने रिपोर्ट के निष्कर्षों और सुझावों पर एक व्याख्यान दिया.
अंग्रेजी दैनिक दि इंडियन एक्सप्रेस ने लेंसेट कमीशन की इस रिपोर्ट के भारत से जुड़े आंकड़ों को प्रकाशित किया है. रिपोर्ट में बताया है कि साल 2013 में भारत में 10 से 24 साल के 62,960 युवाओं ने आत्महत्या का रास्ता चुना. आत्महत्या के अलावा 2013 में सड़क दुर्घटना में 41,168 युवाओं की और टीबी से 32,171 युवाओं की मौत की हुई.
ऑनलाइन लाइव प्रसारित किए गए इस रिपोर्ट के लांच में जार्ज पेटन ने कहा, ''हम तेल की बात करते हैं पानी की बात करते हैं, लेकिन युवाओं की बात नहीं करते जो सबसे महत्वपूर्ण संसाधन हैं. उनका स्वास्थ्य और चिंताएं हमारे एजेंडे में नहीं हैं.''
हालांकि भारतीय युवाओं की तरह ही दुनिया भर में भी, सड़क दुर्घटना, आत्महत्या, टीबी के अलावा अलग अलग तरह की हिंसा भी इस आयु वर्ग के युवाओं की मौत की वजह बनी है.
अपने प्रेजेंटेशन में जार्ज पेटन ने बताया कि इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 188 देशों के आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए, इन देशों को तीन अलग अलग श्रेणियों में रखा गया था.
कमीशन ने 10-14, 15-19 और 20-24, तीन आयु वर्गों का अध्ययन किया और पाया कि भारत में दूसरे और तीसरे आयु वर्ग में सर्वाधिक आत्महत्याएं हुई हैं. 15-19 आयुवर्ग में 23,748 युवाओं ने आत्महत्या का रास्ता चुना, वहीं 20-24 के आयु वर्ग में 35,618 युवाओं ने आत्महत्या कर ली. हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक 10-14 के आयु वर्ग में भी ऐसी 3,594 आत्महत्याएं दर्ज हुईं.
2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में 10-24 की उम्र के करीब 36 करोड़, 46 लाख, 60 हजार युवा हैं. ये देश की कुल आबादी का 30.11 प्रतिशत से भी अधिक है.
लेंसेट की रिपोर्ट कहती है कि 10-14 के आयुवर्ग में डायरिया जैसे आंतों के संक्रामक रोग सबसे अधिक मौतों की वजह रहे हैं. सांस संबंधी बीमारियां जैसे मलेरिया, टीबी के अलावा इन्सेफेलाइटिस और पशु के संपर्क में आने से होने वाली बीमारियां भी इस आयु वर्ग में मौत की बड़ी वजह रही हैं.
भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में युवाओं के मानसिक स्वास्थय को लेकर कोई खास बहस नहीं दिखाई देती है. युवाओं की एक बड़ी आबादी रोजगार समेत अनेक दिक्कतों से जूझते हुए अवसाद का शिकार है. ऐसे में भारत में युवाओं के बीच बढ़ती आत्महत्या की प्रवृत्ति ने मानसिक स्वास्थय की इन गंभीर चिंताओं की ओर इशारा किया है.