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भारतीय राजदूत को ऑस्ट्रिया से बुलाने की वजह को किया खारिज

चारु कार्तिकेय
३० दिसम्बर २०१९

ऑस्ट्रिया में भारत की राजदूत रेनू पाल को उन पर लगे तथाकथित वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों के चलते वापस भारत बुलाए जाने की खबरें थीं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इन खबरों को खारिज किया.

Indien Schulkind mit Nationalflagge
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Nv

ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा जब भारत सरकार को दूर किसी देश के दूतावास में तैनात अपने एक राजदूत को इस वजह से वापस बुलाना पड़ा हो क्योंकि उसने एक महंगा मकान किराये पर लिया था. ऑस्ट्रिया में भारत की राजदूत रेनू पाल पर ऐसा ही आरोप लगा है. उनके खिलाफ आरोप था कि पाल ने विएना में 15 लाख रुपये प्रति माह के शुल्क पर आवास किराये पर लिया था. इसके अतिरिक्त उन पर टैक्स के कई रिफंड छलपूर्वक ले लेने और सरकार द्वारा दी गई कई तरह की अनुमतियों में तथ्यों को गलत ढंग से पेश करने का भी आरोप था.

हालांकि 30 दिसंबर की शाम को विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता ने इन सभी खबरों को खारिज कर दिया. रवीश कुमार ने कहा कि पाल का मंत्रालय के मुख्यालय में स्थानांतरण एक प्रशासनिक फैसला था. उन्होंने बताया कि तथ्यों के आधार पर ऐसा कहना गलत होगा कि उन्हें वापस बुलाया गया है. विदेश मंत्रालय के ही एक नोट में इस बाबत कहे जाने के बारे में जब प्रवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने इस बात से साफ इंकार करते हुए कहा कि ऐसा कोई नोट मंत्रालय ने जारी नहीं किया है.

पाल भारतीय विदेश सेवा के 1988 बैच की अधिकारी हैं और अक्टूबर 2016 से विएना में भारत की राजदूत थीं. उनका कार्यकाल एक महीने बाद ही समाप्त होने वाला था. केंद्रीय सतर्कता आयोग ने एक जांच बैठाई थी जिसके बाद मंत्रालय की एक टीम विएना स्थित भारतीय दूतावास गई और वहां मामले में पूछताछ पूरी की. विदेश मंत्रालय की जांच ने पाल को वित्तीय अनियमितताओं, पैसों के दुरूपयोग और आचरण के नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया.

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकरतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Dharapak

मंत्रालय ने 9 दिसंबर को पाल के मुख्यालय में तबादले की घोषणा कर दी और उन्हें राजदूत की भूमिका में किसी भी प्रशासनिक या वित्तीय कदम निर्णय लेने से मना कर दिया. खबर है कि रेनू पाल ने 2015 में चेक गणराज्य में भारत का राजदूत नियुक्त किये जाने पर वहां जाने से इंकार कर दिया था. पाल अपनी मां को अपने साथ ले जाना चाहती थीं लेकिन चेक गणराज्य के अधिकारियों ने उन्हें आश्रित वीजा नहीं दिया, क्योंकि उनकी नीतियों के अनुसार आश्रित वीजा सिर्फ अधिकारी के पति, पत्नी या संगी को दिया जाता है.

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