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भारत ईयू व्यापार करार में फिर अडंगा

७ फ़रवरी २०१२

भारत और यूरोपीय संघ के बीच व्यापार करार पर इस बार भी समझौता होता नहीं दिख रहा है. कार बिजनेस पर लगाए जा रहे टैक्स और सॉफ्टवेयर सेवाओं में मतभेद इसकी वजह हो सकते हैं.

तस्वीर: AP

यूरोप की कारों पर भारत जो शुक्ल लगाता है, वह भारतीय गाड़ियों पर यूरोप में लगने वाले शुल्क का करीब दस गुना होता है. बातचीत के लिए वक्त बीतता जा रहा है और इस मुद्दे को हल नहीं किया जा सका है. इसी तरह भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए यूरोपीय बाजार भी पूरी तरह खुले नहीं हैं. यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों को 10 फरवरी को नई दिल्ली में भारतीय पक्ष से मुलाकात करनी है. पिछले साल हुई बैठक में कहा गया था कि 10 फरवरी वाली बैठक से पहले कारोबार संधि पर हस्ताक्षर हो जाएंगे लेकिन अब इसके लिए वक्त नहीं बचा है.

हालांकि दोनों पक्ष खुल कर इस बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं. भारत सरकार के एक सूत्र का कहना है, "हम चीजों को सुलझाने में लगे हैं. देखते हैं कि हम किन चीजों को आसानी से सुलझा सकते हैं. हर चीज धीरे धीरे ही सही, अपनी जगह पर फिट हो रही है." हालांकि हर किसी को ऐसी आस नहीं है. भारत में यूरोपीय संघ के राजदूत ने जनवरी में कहा है कि इस बैठक से ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक लाभ ही हो सकता है.

अपना अपना समझौता

दोहा राउंड की बातचीत लगभग टूट जाने के बाद पूरी दुनिया द्विपक्षीय कारोबार पर ध्यान दे रही है. दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी ब्लॉक यूरोपीय संघ ने पिछले साल दक्षिण कोरिया के साथ ऐसा समझौता किया है, जबकि वह जापान, कनाडा, मलेशिया और दूसरे देशों के साथ भी ऐसा करना चाह रहा है.

अगर यूरोपीय संघ के साथ भारत का मुक्त व्यापार समझौता होता है, तो वहां की कंपनियों के लिए वैश्विक स्तर पर पहुंच बनाने में मदद मिल सकती है. दूसरी तरफ यूरोपीय संघ के देश लगभग सवा अरब की आबादी वाले विशालकाय भारतीय बाजार पर नजर लगाए हैं, जो वित्तीय संकट के इस दौर में उन्हें बहुत कुछ उबार सकती है. भारत की अर्थव्यवस्था लगभग सात प्रतिशत की दर से बढ़ रही है.

दोनों पक्षों के बीच कारोबार बढ़ता जा रहा है. 2010 में यह कारोबार 86 अरब यूरो का हुआ. लेकिन अगर यूरोपीय संघ की नजर से देखें, तो उसके कुल कारोबार का सिर्फ ढाई प्रतिशत ही भारत के साथ हुआ.

आईटी और आउटसोर्सिंग

आईटी उद्योग और आउटसोर्सिंग की मदद से भारत ने पिछले दो दशक में शानदार आर्थिक कामयाबी हासिल की है. जापान और चीन के बाद वह एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. हालांकि भ्रष्टाचार और लालफीताशाही की वजह से भारत दुनिया भर में बदनाम भी है. दूसरी तरफ यूरो मुद्रा की वजह से यूरोप की स्थिति भी खराब है. ग्रीस सहित तीन देशों की आर्थिक स्थिति बदहाल है.

यूरोपीय खास कर जर्मन कारें भारत में बहुत लोकप्रिय हैं. जर्मनी की मर्सिडीज, बीएमडब्ल्यू और आउडी कारें वहां बड़ी इज्जत की नजर से देखी जाती हैं. लेकिन भारत यूरोप से आयात होने वाली कारों पर 60 प्रतिशत टैक्स लगाता है. जबकि यूरोप में भारतीय कारों पर सिर्फ 6.5 प्रतिशत टैक्स लगता है. इसका नतीजा यह निकला कि 2010 में यूरोप से सिर्फ 4002 कारें भारत जा पाईं, जबकि यूरोप में भारत की 2,23,000 गाड़ियां आयात की गईं.

यूरोपीय ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (एसीईए) के इवान होडक का कहना है, "ये प्रतिबंधित शुल्क हैं. वहां का बाजार तो हमारे लिए एक तरह से बंद पड़ा है."

अभी वक्त लगेगा

दूसरी तरफ भारत के व्यापार विशेषज्ञ बिस्वजीत धर का कहना है, "यहां उद्योगों में लगे लोगों को कुछ और साल चाहिए ताकि वे विश्व स्तर का मुकाबला कर सकें. हमें अभी उस स्तर पर पहुंचने में थोड़ा समय लगेगा."

जहां तक भारत का सवाल है, वह वीजा नियमों में ढील चाहता है, ताकि टाटा कंसल्टेंसी और विप्रो जैसी कंपनियां यूरोप में पांव पसार सकें. इन्हीं कंपनियों की वजह से भारत में हाल में तेज विकास हुआ है. ये कंपनियां चाहती हैं कि वे सिस्टम बिठाने के लिए छोटे समय के लिए अपने स्टाफ को यूरोप भेजें. लेकिन यूरोपीय देशों को डर है कि पहले से ही फैल रही बेरोजगारी और बढ़ सकती है.

यूरोपीय कंपनियों की भारत के विशाल बाजार पर नजर है. पिछले साल नवंबर में भारत सरकार ने रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश को हरी झंडी दिखा दी लेकिन लगातार विरोध के बाद उसे इस फैसले को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा. अमेरिका और यूरोप जैसे बाजारों के लिए यह आशा के बाद जबरदस्त झटका साबित हुआ.

समीक्षाः रॉयटर्स/ए जमाल

संपादनः आभा एम

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