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भारत ईरान डील से पीछे हटा जर्मन बैंक

९ अप्रैल २०११

क्रिकेट विश्वकप में भारत की जीत इस हफ्ते भी जर्मन समाचार पत्रों में एक प्रमुख विषय रहा. साथ ही एक भारत ईरान डील पर भी नजर डाली गई, जो जर्मन केंद्रीय बैंक की मदद से होने वाली थी.

डील नहीं चलीतस्वीर: dapd

चांसलर अंगेला मैर्केल के आदेश पर जर्मन केंद्रीय बैंक को इस डील से पीछे हटना पड़ा. इस पूरे प्रकरण की रिपोर्ट देते हुए जर्मनी के आर्थिक समाचार पत्र हांडेल्सब्लाट में कहा गया है -

योजना ऐसी थी: भारत हर साल ईरान से 9 अरब यूरो का खनिज तेल खरीदता है. अमेरिका के दबाव के चलते भारत को ईरान के साथ तेल का सीधा व्यापार रोकना पड़ा. इसके बदले भारत के केंद्रीय बेंक ने तेल की आपूर्ति के बदले यह धन जर्मन बुंडेसबांक को भेज दिया. वहां से यह धन हैमबर्ग के यूरोपीय ईरानी ट्रेड बैंक को भेजा गया, जहां से इसे तेहरान में ट्रांसफर किया जाना था. भारी आलोचना के बाद अब इस डील को खत्म करना पड़ा है. ऊंचे सरकारी तबकों से समाचार पत्र को मिली सूचनाओं के अनुसार जर्मनी ऐसी डील से पीछे हट रहा है. जर्मन मदद से ऐसी नई डील फिर नहीं होगी.

लेकिन जर्मन समाचार पत्रों में भी क्रिकेट विश्वकप पर अच्छा खासा ध्यान दिया गया. मेजबान भारत 28 साल बाद फिर से विश्वकप विजेता बना. इस पर टिप्पणी करते हुए समाचार पत्र फ्रांकफुर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग में कहा गया है:

इस शानदार जीत के बाद लोगों की नजरें खास कर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी, लगभग पूजे जाने वाले बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और मैन ऑफ द टूर्नामेंट युवराज सिंह पर हैं, लेकिन इस टीम में एक छिपे हुए हीरो भी हैं : भारत के दक्षिण अफ्रीकी कोच गैरी कर्स्टन. विश्व चैंपियन टीम के कोच के रूप में वे भारत से जा रहे हैं. कप्तान धोनी को जल्द ही अपने प्रदेश से मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिलने वाली है.

जर्मन प्रेस में भी क्रिकेट विश्वकपतस्वीर: AP

और बर्लिन से प्रकाशित दैनिक टागेसत्साइटुंग में कहा गया है:

इस खेल के प्रेमी इसे "परफेक्ट गेम" कहते हैं और आर्थिक जगत में भारत के तेज उभार के चलते इसका एक नया दर्जा हो चुका है. इस कप के आयोजकों का दावा है कि ओलंपिक खेलों और फुटबॉल विश्वचैंपियनशिप के बाद यह तीसरी सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता है.

भारत में हुई जनगणना के बाद एक खतरनाक आंकड़ा सामने आया है. 6 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के बीच प्रति हजार लड़कों पर सिर्फ 914 लड़कियां हैं. दस साल पहले 927 लड़कियां थीं. महिला आंदोलन की कार्यकर्ताओं को इस पर गहरी चिंता है. समाजवादी समाचार पत्र नोएस डॉएचलांड में इस सिलसिले में कहा गया है:

"क्या हम सचमुच एक ऐसे राष्ट्र के हैं, जिसे अपनी जनानी आबादी से इतनी नफरत है कि जन्म से पहले ही बेटियों की हत्या कर दी जाती है? हालांकि हमें पता है कि औरतों के न होने से समाज पर क्या असर पड़ेगा?" नारीवादी पत्रिका जुबान की प्रधान उर्वशी बुटालिया पूछती हैं. सच्चाई यह है कि जिस देश में औरतों को इस तरह हिकारत से देखा जाता है, उसे अपने उस आर्थिक विकास पर घमंड करने का हक नहीं है, जो बच्चियों के आमसंहार पर टिका हो.

नोएस डॉएचलांड में ध्यान दिलाया गया है कि हरियाणा में समूचे ऐसे गांव हैं, जिनमें कोई औरत नहीं है. कम्युनिस्ट सांसद वृंदा करात की राय में इस राष्ट्रीय शर्म के तीन कारण हैं:

इस सामाजिक समस्या से गंभीर रूप से निपटने के लिए कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है. अब भी बेटों को तरजीह देने की परंपरा बनी हुई है, जिसकी वजह से हत्याएं भी होती हैं. लिंग परीक्षण पर प्रतिबंध के कानून का कड़ाई से पालन नहीं किया जाता है, ऐसा वृंदा करात का मानना है. वे कहती हैं कि संपन्न लोग अब भी ऐसे परीक्षण करवाते हैं, और मादा भ्रूण होने पर गर्भपात करवा दिया जाता है. जिनके पास धन नहीं होता है, वे ऐसे मामले के "समाधान" के लिए नवजात शिशु की हत्या करते हैं या बेटी के साथ ऐसी लापरवाही बरतते हैं, ताकि वह जिंदा न रहे.

राष्ट्रीय शर्मतस्वीर: UNI

एक पुस्तक में महात्मा गांधी को समलैंगिक कहे जाने का भारत में प्रचंड विरोध हो रहा है. इस सिलसिले में बर्लिन के दैनिक टागेसत्साइटुंग में कहा गया है:

एक पुस्तक की वजह से महात्मा के यौन जीवन के बारे में नई अटकलें पैदा होने के बाद भारतीय अधिकारी राष्ट्रपिता के बारे में अपमानजनक टिप्पणियों को अपराध ठहराने के बारे में सोच रहे हैं. मशहूर पत्रकार जेजेफ लेलीवेल्ड का कहना है कि उन्होंने सिर्फ जर्मन यहूदी वास्तुकार व बॉडीबिल्डर हैरमान्न कालेनबाख को गांधी द्वारा लिखे गए पत्रों को उद्धृत किया है, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं. गुजरात में इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. राष्ट्रपिता की निंदा के खिलाफ कानून न तो वांछनीय है और न ही उसका पालन संभव होगा. समाचार पत्र द हिंदू में कहा गया है कि महात्माजी खुद ऐसे प्रतिबंध के विरोध में सामने आते.

और अंत में पाकिस्तान की एक खबर. कराची में एक लेखक सम्मेलन में देश की समस्याओं की खुलकर चर्चा की गई. इस पर समाचार पत्र नोए त्स्युरिषर त्साइटुंग में विस्तृत रिपोर्ट दी गई है. लेखक मोहसिन हमीद को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि लोगों में हिम्मत जगानी पड़ेगी कि वे फिर से सामने आकर खुलकर अपनी राय का इजहार कर सकें.

संकलन: अना लेमान्न/कारोलीन स्तेफेन/उभ

संपादन: ओ सिंह

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