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भारत उत्तर कोरिया से क्या चाहता है?

१ जून २०१८

भारत दुनिया के उन चंद देशों में शामिल है जिसके उत्तर कोरिया के साथ लंबे समय से नजदीकी रिश्ते रहे हैं. अलग थलग पड़ चुके उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते रख कर भारत आखिर क्या हासिल करना चाहता है?

Nordkorea Kim Jong Un bei Besuch einer Fabrik für Nuklearwaffen
तस्वीर: Reuters/KCNA

हाल में भारत के विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह ने उत्तर कोरिया का दौरा किया और वहां के कई मंत्रियों और उच्चाधिकारियों से मुलाकात की. पिछले 20 वर्षों में भारत के किसी आला अधिकारी का यह पहला उत्तर कोरिया दौरा था. हालांकि दोनों देशों के बीच राजनयिक संपर्क दशकों से रहा है.

राजनीतिक पर्यवेक्षक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ कहते हैं कि वीके सिंह का उत्तर कोरिया दौरा अलग थलग पड़े एक कम्युनिस्ट देश के साथ भारत के रिश्तों को बनाए रखने के प्रयासों का हिस्सा है.

चीन के बाद भारत उत्तर कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. उत्तर कोरिया के निर्यात में 3.5 प्रतिशत भारत को जाता है जबकि वह भारत से अपने आयात का 3.1 प्रतिशत हिस्सा मंगाता है. इसका मतलब है कि उत्तर कोरिया भारत को 9.7 करोड़ डॉलर का सामान बेचता है और वहां से इतनी ही रकम का सामान खरीदता भी है. अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी की एक रिपोर्ट में यह आंकड़ा दिया गया है.

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नई दिल्ली के एक थिकटैंक ऑब्जर्वर फाउंडेशन के रिसर्च फेलो अभिज्ञान रेज ने डीडब्ल्यू को बताया, "शीत युद्ध के दौर में भारत गुटनिरपेक्ष रहा, उसी की विरासत भारत-उत्तर कोरिया के संबंध हैं. शीत युद्ध खत्म होने के बाद भारत ने उत्तर कोरिया सहित उन देशों के साथ संपर्क रखने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई जिन्हें पश्चिमी दुनिया 'समस्या वाले देश' समझती थी."

कोरियाई प्रायद्वीप में हाल के सालों में तनाव बहुत बढ़ गया है. परमाणु हथियार और बैलेस्टिक मिसाइल बनाने के उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के इरादों ने क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ाई है.

ऐसे में, क्या भारत पश्चिम दुनिया और उत्तर कोरिया के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है? इस पर रेज कहते हैं, "यह अभी साफ नहीं है कि उत्तर कोरिया को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के करीब लाने में भारत क्या भूमिका निभा सकता है. मुझे लगता है कि उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच तनाव कम होने की संभावना को भारत अपने हितों के लिए उत्तर कोरिया के साथ संबंध बढ़ाने के एक अवसर के रूप में देखता है." उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की सिंगापुर में मुलाकात की कोशिशें हो रही हैं.

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भारत सरकार मानती है कि अगर उत्तर कोरिया पर लगे प्रतिबंधों में ढील दी जाती है तो उसे इस कम्युनिस्ट देश के साथ रिश्ते मजबूत करने चाहिए. उधर, कुछ विशेषज्ञ उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी वार्ताओं में भारत की भूमिका से इनकार करते हैं.

वैसे भारत अपने प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ उत्तर कोरिया की परमाणु गतिविधियों को लेकर चिंतित रहा है. पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम के जनक अब्दुल कदीर खान ने 2004 में उत्तर कोरिया और ईरान को परमाणु तकनीक बेचने की बात कबूली थी.

वहीं, किसी देश का नाम लिए बगैर उत्तर कोरिया ने वीके सिंह के दौरे के समय जारी एक बयान में कहा, "एक मित्र देश होने के नाते डीपीआरके (डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया) कभी कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगा जो भारत की सुरक्षा के लिए चिंता पैदा करे."

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इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज में उत्तर कोरिया के विशेषज्ञ जगन्नाथ पांडा कहते हैं कि भारत अकेला देश है जो 1990 के दशक से कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की मांग उठाता रहा है. भारत उस परमाणु प्रसार नेटवर्क को लेकर भी चिंता जताता रहा है जिसका हिस्सा पाकिस्तान और उत्तर कोरिया रहे हैं.

पांडा कहते हैं, "इस क्षेत्र में भारत के लिए विकल्प सीमित हैं. वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं है, वह छह पक्षीय कोरियाई वार्ता का हिस्सा नहीं है और कोरियाई विवाद से जुड़े पक्षों दक्षिण कोरिया, चीन, जापान और अमेरिका में से कोई भी भारत की भूमिका के बारे दिलचस्पी नहीं रखता."

लेकिन रेज कहते हैं कि वीके सिंह का उत्तर कोरिया दौरा भारत की तरफ से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस बात का संकेत है कि वह एशियाई सुरक्षा के ताने बाने में अहम साझीदार है और इसीलिए बड़ी वैश्विक घटनाओं को वह चुपचाप तमाशाई की तरह नहीं देख सकता.

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