सवा अरब की आबादी वाले देश भारत में कुछ करोड़ लोगों तक ही इंटरनेट की पहुंच है. इंटरनेट सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि इसके जरिए सूचना और ज्ञान तेजी से पहुंचाया जा सकता है.
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मौजूदा समय में विश्व में तकरीबन चार अरब लोगों को नियमित रूप से इंटरनेट की सुविधा सुलभ नहीं है और उनमें से 25 फीसदी यानि लगभग एक अरब लोग भारत में हैं. भारत में इस ओर ध्यान देने से सूचना के क्षेत्र में बड़ा बदलाव हो सकता है. भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव आरएस शर्मा का कहना है कि इसे चुनौती के बजाय अवसर माना जाना चाहिए. शर्मा का कहना है, "भारत में अस्सी करोड़ से भी ज्यादा लोगों के पास मोबाइल फोन हैं और वे दूरसंचार नेटवर्क से जुड़े हुए हैं. सभी को इंटरनेट सुविधा मुहैया कराने के लिए हर संभव कदम उठाए जा रहे हैं." उन्होंने कहा कि नई सरकार ने डिजिटल इंडिया के रूप में एक महत्वाकांक्षी पहल की है. इसका मकसद भारत को डिजिटल दृष्टि से सशक्त समाज और एक ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था में तब्दील करना है. उन्होंने बताया कि डिजिटल इंडिया पहल से न केवल एक मजबूत इंटरनेट ढांचे के जरिए उच्च स्पीड वाली कनेक्टिविटी सुनिश्चित होगी, बल्कि इसके जरिए वाई फाई हॉट स्पॉट की भी स्थापना हो सकेगी. ये हॉट स्पॉट विभिन्न संस्थान, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्पताल और पुस्तकालय को आपस में जोड़ने में मददगार साबित होंगे. शर्मा ने तुर्की के इस्तांबुल में आयोजित इंटरनेट गवर्नेंस फोरम की नौवीं बैठक में ये बातें कही.
एए/ (वार्ता)
इंटरनेट में कैसे रहें सतर्क
आप इंटरनेट में इस वक्त इस वेबसाइट पर ये तस्वीरें देख रहे हैं, यह बात सिर्फ आप ही नहीं जानते. इंटरनेट में मौजूद हैकर भी आपको यह करते देख रहे हैं. जानिए कैसे रहें इंटरनेट में सतर्क.
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अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए ने केवल अमेरिकी नागरिकों और नेताओं की ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लोगों की जासूसी की. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के मोबाइल फोन की जासूसी पर काफी बवाल खड़ा हुआ.
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फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों के पास आपकी अलग अलग जानकारी होती है. पूरी जानकारी को कंपनी का हर सदस्य नहीं देख सकता है. उनके पास आपका नियमित डाटा होता है, वे आपके मेसेज नहीं खोल सकते हैं.
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लेकिन जब खुफिया एजेंसी के पास आपके कंप्यूटर पर चल रहे माइक्रोसॉफ्ट प्रोसेसर से लेकर आपके गूगल, फेसबुक और दूसरे अहम अकाउंट की जानकारी होती है तो उनके पास सब कुछ होता है.
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इन एजेंसियों के पास ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं कि वे जब चाहें आपके कंप्यूटर से खुद अपने कंप्यूटर को जोड़ कर आपकी हर हरकत का पता कर सकते हैं.
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हालांकि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित कानून के अनुसार केवल जिस व्यक्ति पर शक है, उसके अकाउंट से जुड़ी जानकारी के लिए खुफिया एजेंसी को पहले अदालत से अनुमति लेनी होती है. इसके आधार पर उन्हें इंटरनेट कंपनियां सर्वर तक की पहुंच देती हैं.
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थोड़ी बहुत इंटरनेट जासूसी सभी देशों की सरकार करती है. यह देश की सुरक्षा के लिए अहम भी है. इसमें कंप्यूटर के डाटा के साथ साथ आपके फोन की सारी जानकारी भी मौजूद है.
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बड़े कैमरे से कोई आप पर नजर रखे तो आप उस से बच भी सकते हैं, लेकिन जासूसी ऐसे स्तर पर हो रही है कि आईक्लाउड और एयर एंड्रॉयड जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल भी सुरक्षित नहीं है.
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ऐसा नहीं है कि ये मामले यहीं थम जाएंगे. ऐसे सिस्टम की कमी है जो निजता को पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए आश्वस्त कर सके.