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भारत और चीन के बीच फंसा नेपाल

७ सितम्बर २०११

नेपाल के नए प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई तीन साल में चौथे प्रधानमंत्री हैं. माओवादी धड़े के भट्टराई नेपाल की उम्मीद हैं. लेकिन भारत और चीन दोनों ही हिमालय में बसे इस देश के भविष्य को गढ़ने में अपना हाथ लगाना चाहते हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

माओवादियों के हथियार डालने का समाचार एक ऐसा समाचार था जिसने लंबे समय के बाद उम्मीद जगाई. कई साल से जारी गृह युद्ध और 2008 में राजशाही खत्म होने के बाद कई राजनैतिक दल सत्ता के लिए दावेदारी साबित करना चाहते हैं.

कई मुश्किलें

छोटा सा नेपाल एक जटिल देश है जो भारत और चीन के बीच फंसा हुआ है. नेपाल को दोनों देशों के बीच प्रतिद्वंद्विता और दुश्मनी दोनों ही झेलनी होती है और दोनों देश लगातार उस पर अपना प्रभाव डालने की कोशिश करते हैं. 2006 में गृह युद्ध खत्म होने तक 16 हजार लोगों की जान गई और डेढ़ लाख लोग विस्थापित हो गए.

मूलभूत संरचना खड़ी करने की चुनौतीतस्वीर: AP

हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में नेपाल विशेषज्ञ लार्स श्टोवेसांड कहते हैं, "आप सोचिए कि नेपाल एक ऐसा देश है जहां 100 से ज्यादा अलग अलग समुदाय हैं. लोग 100 से ज्यादा भाषाएं बोलते हैं. 1990 में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू होने के समय से यह अलग अलग गुट राजनीति और समाज में ज्यादा हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं." श्टोवेसांड कहते हैं, "इसके अलावा और दो ऐसे गुटों को हमें आमने सामने बातचीत के लिए बिठाना है जो गृह युद्ध के दौरान कट्टर दुश्मन थे. वो भी कोशिश कर रहे हैं कि शांति प्रक्रिया आगे बढ़े. लेकिन वे भी ऐसा नहीं कर सके हैं."

विकास मुश्किल

कमजोर गठबंधन पिछले सालों में संविधान नहीं बना सकने का एक कारण था. हर बार तारीख आगे बढ़ा दी जाती है. नए प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई ने भी 30 नवंबर 2011 की तारीख तय की है. यह गतिरोध देश के विकास के लिए अच्छा नहीं. संयुक्त राष्ट्र के 2010 के ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडेक्स के मुताबिक नेपाल एशिया का दूसरा सबसे गरीब देश है. नेपाल मामलों के जानकार कार्ल हाइन्स क्रैमर कहते हैं, "संविधान के बनने के बाद शांति और नवीनीकरण की प्रक्रिया से ही पूरा देश राजनैतिक और आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकेगा."

पड़ोसियों की प्रतिद्वंद्विता

खस्ताहाल संरचना, बीमार स्वास्थ्य सेवा और बेहाल शिक्षा व्यवस्था के अलावा तेजी से बढ़ती महंगाई ने नेपाल के तीन करोड़ निवासियों को चूर चूर कर दिया है. कार्ल हाइन्स क्रैमर कई साल से नेपाल की राजनैतिक स्थिति पर नजर रख रहे हैं. उनका मानना है कि 57 साल के बाबूराम भट्टराई नई शुरुआत के लिए एकदम ठीक हैं. इसका एक कारण यह भी है कि दिल्ली की जवाहर लाल यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट करने वाले भट्टराई को चीन और भारत दोनों सही चुनाव मानते हैं. "मेरा मानना है कि भारत चीन और माओवादियों की निकटता को ज्यादा आंकता है. यह भी साफ है कि बाबुराम भट्टराई के तौर पर एक ऐसा प्रधानमंत्री चुना गया है जिससे भारत संबंध बढ़ा सकता है. यह इसलिए भी साफ है कि भट्टराई ने पिछले दिनों में कई बार यह कहा है कि माओवादियों को भारत के साथ संबंध बढ़ाना चाहिए जबकि माओवादी पार्टी इसके खिलाफ है."    

नई नजर के साथ

भट्टराई को अपनी विचारधारा के कारण दूरदर्शी नेता के तौर पर जाना जाता है. 2008 में माओवादी पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड की सरकार में वित्त मंत्री के तौर पर उन्होंने नेतृत्व करने की अपनी क्षमता को साबित किया था.

दोनों की उम्मीदें भट्टाराई परतस्वीर: picture-alliance/dpa

हिंदू राष्ट्र रहा नेपाल वैसे तो धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई तौर पर भारत के नजदीक है लेकिन कार्ल हाइन्स क्रैमर का कहना है कि चीन की आक्रामक नीतियां हैं जो नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है. लंबे समय तक चीन की नजर इसी पर थी कि नेपाल से होकर तिब्बती आते जाते थे जिन्हें दबाना जरूरी था. लेकिन पिछले सालों में नेपाल में चीन की रुचि बदली है. यह देखने लायक बात है कि जैसे ही भारत का कोई प्रतिनिधिमंडल आर्थिक समझौते के लिए नेपाल पहुंचता है उसके कुछ ही दिनों बाद चीन नेपाल में पैर जमाना चाहता है और भारत के प्रभाव को संतुलित करना चाहता है.

अनजान क्षमता

नेपाल का लुंबिनी बुद्ध की जन्मभूमि है और यहीं दुनिया का सबसे ऊंचा माउंट एवरेस्ट भी है. यह पर्यटन का सबसे बड़ा आकर्षण है. 2011 को नेपाल की सरकार ने पर्यटन वर्ष घोषित किया है. 2020 तक विदेशी यात्रियों की संख्या दुगनी होकर 20 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है. नेपाल पनबिजली का उत्पादन भी बढ़ाना चाहता है ताकि वह जल्दी खुद की ऊर्जा की जरूरतें पूरी कर सके और साथ ही भारत को बिजली का निर्यात भी कर सके. अब तक हर सरकार ने कहा कि वे लंबे समय तक सहायता राशि पर जीना नहीं चाहते बल्कि अपने पैरों पर खड़े रहना चाहते हैं. महत्वाकांक्षी योजनाएं. लेकिन इस बार बेहतर भविष्य की उम्मीद मजबूत है.

रिपोर्टः प्रिया एसेलबॉर्न/आभा एम

संपादनः महेश झा

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