भारत और चीन भी महसूस करेंगे अमेरिकी प्रतिबंधों की आंच
९ मई २०१८
अमेरिका के ईरान डील से हटने के बाद भारत और चीन समेत कई एशियाई देशों के सामने तेल संकट सा खड़ा हो सकता है. भारत और चीन ईरानी तेल पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं.
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पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के तीसरे बड़े तेल उत्पादक ईरान पर फिर से प्रतिबंध लगने जा रहे हैं. ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते से अमेरिका के बाहर निकलने के बाद अब तेहरान पर फिर से अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों की तैयारी चल रही है. माना जा रहा है कि नए प्रतिबंध ईरान के तेल और जहाजरानी उद्योग को निशाना बनाएंगे. ये ईरान की अर्थव्यवस्था के सबसे मजबूत स्तंभ हैं.
मित्सुबिशी यूएफजे फाइनेंशियल ग्रुप के मध्य पूर्व एशिया और उत्तरी अफ्रीका के रिसर्च हेड एहसान खोमान मानते हैं कि ईरान के साथ डील कर रही कंपनियों को 180 दिन का समय दिया जाएगा. इस दौरान कंपनियों को खुद को एडजस्ट करना होगा. खोमान कहते हैं, "एलान करके अमेरिका ईरान के खिलाफ उच्चतम स्तर के प्रतिबंध लगाएगा- इसका असर तमाम देशों की ओर से ईरान को दी जा रही मदद पर भी पड़ेगा. राष्ट्रपति ट्रंप इस बात संकेत दे रहे हैं कि ईरान के साथ किसी अन्य वैकल्पिक संधि की उनकी इच्छा बहुत कम है."
कहां जाता है हर दिन अरबों लीटर कच्चा तेल
दुनिया भर में हर दिन अरबों लीटर पेट्रोल और डीजल फूंका जाता है. ज्यादातर ईंधन खाड़ी के देशों से आता है. कौन है कौन से सबसे ज्यादा तेल खरीदने वाले.
पिछली बार जब ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगे थे तो तेहरान की तेल सप्लाई 10 लाख बैरल प्रतिदिन कम हो गई थी. लेकिन जनवरी 2016 में प्रतिबंध हटाने के बाद ईरान ने दुनिया भर में खूब तेल की सप्लाई की. मार्च 2018 में ही ईरान ने 38.10 लाख बैरल प्रतिदिन तेल सप्लाई किया. यह पूरी दुनिया में होने वाली तेल सप्लाई का चार फीसदी है. विश्लेषकों का अनुमान है कि नए अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान की तेल सप्लाई तीन से 10 लाख बैरल प्रतिदिन गिरेगी. इसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा.
एनर्जी कंल्सटेंसी संस्था ट्राइफेक्टा के डायरेक्टर सुकृत विजयकर कहते हैं, "इस साल के आखिर में यूरोप और एशिया को निर्यात होने वाले ईरानी तेल में गिरावट पक्के तौर पर आएगी. 2019 में कुछ देश वॉशिंगटन द्वारा खड़ी गई मुश्किल से निपटने के लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशेंगे और तब प्रतिबंधों का असर होता दिखने लगेगा."
इस बात की बहुत ज्यादा संभावना है कि रूस, चीन, तुर्की और भारत अमेरिकी प्रतिबंधों का विरोध करेंगे. एहसान खोमान के मुताबिक ये चारों देश कच्चे तेल के लिए ईरान पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं. ईरानी तेल के बिना इन देशों के लिए मौजूदा तेल आपूर्ति को बरकरार रखना मुश्किल होगा.
फिलहाल ईरान के कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार चीन है. 2018 में हर दिन चीन ईरान से छह लाख बैरल कच्चा तेल खरीदता रहा है. वहीं 2017 में भारत ने हर दिन ईरान से पांच लाख बैरल कच्चा तेल खरीदा. पुराने अमेरिकी प्रतिबंधों के दौरान भारत को ईरान से अपनी मुद्रा रुपये में तेल खरीदने की छूट मिली थी. अगर अमेरिका ने इस बार ऐसी छूट नहीं दी तो भारत के लिए भी मुश्किल खड़ी होगी. भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के रिफाइनरीज हेड आर रामचंद्रन कहते हैं, "नए प्रतिबंधों का असर भारत पर भी होगा लेकिन उतना ज्यादा नहीं."
ईरान पर लगने जा रहे अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच एक बात साफ है कि आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ेंगे. ईरान पर प्रतिबंध लगते ही दूसरे देश महंगा तेल बेचेंगे और इसका फायदा तेहरान के कट्टर प्रतिद्ंवद्वी सऊदी अरब को भी होगा.
कच्चे तेल से क्या क्या मिलता है
कच्चे तेल से सिर्फ पेट्रोल या डीजल ही नहीं मिलता है, इससे हर दिन इस्तेमाल होने वाली ढेरों चीजें मिलती हैं. एक नजर कच्चे तेल से मिलने वाले अहम उत्पादों पर.
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ब्यूटेन और प्रोपेन
कच्चे तेल के शोधन के पहले चरण में ब्यूटेन और प्रोपेन नाम की प्राकृतिक गैसें मिलती हैं. बेहद ज्वलनशील इन गैसों का इस्तेमाल कुकिंग और ट्रांसपोर्ट में होता है. प्रोपेन को अत्यधिक दवाब में ब्युटेन के साथ कंप्रेस कर एलपीजी (लिक्विड पेट्रोलियम गैस) के रूप में स्टोर किया जाता है. ब्यूटेन को रेफ्रिजरेशन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.
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तरल ईंधन
प्रोपेन अलग करने के बाद कच्चे तेल से पेट्रोल, कैरोसिन, डीजल जैसे तरल ईंधन निकाले जाते हैं. सबसे शुद्ध फॉर्म पेट्रोल है. फिर कैरोसिन आता है और अंत में डीजल. हवाई जहाज के लिए ईंधन कैरोसिन को बहुत ज्यादा रिफाइन कर बनाया जाता है. इसमें कॉर्बन के ज्यादा अणु मिलाए जाते हैं. जेट फ्यूल माइनस 50 या 60 डिग्री की ठंड में ही नहीं जमता है.
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नैफ्था
पेट्रोल, कैरोसिन और डीजल बनाने की प्रक्रिया में जो अपशेष मिलता है, उससे बेहद ज्वलनशील तरल नैफ्था भी बनाया जाता है. नैफ्था का इस्तेमाल पॉकेट लाइटरों में किया जाता है. उद्योगों में नैफ्था का इस्तेमाल स्टीम क्रैकिंग के लिए किया जाता है. नैफ्था सॉल्ट का इस्तेमाल कीड़ों से बचाव के लिए किया जाता है.
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नैपाम
कच्चे तेल से मिलने वाला नैपाम विस्फोटक का काम करता है. आग को बहुत दूर भेजना हो तो नैपाम का ही इस्तेमाल किया जाता है. यह धीमे लेकिन लगातार जलता है. पेट्रोल या कैरोसिन के जरिए ऐसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि वे बहुत जल्दी जलते हैं और तेल से वाष्पीकृत भी होते हैं.
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मोटर ऑयल
गैस और तरल ईंधन निकालने के बाद कच्चे तेल से इंजिन ऑयल या मोटर ऑयल मिलता है. बेहद चिकनाहट वाला यह तरल मोटर के पार्ट्स के बीच घर्षण कम करता है और पुर्जों को लंबे समय तक सुरक्षित रखता है.
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ग्रीस
मोटर ऑयल निकालने के साथ ही तेल से काफी फैट निकलता है. इसे ऑयल फैट या ग्रीस कहते हैं. लगातार घर्षण का सामना करने वाले पुर्जों को नमी से बचाने के लिए ग्रीस का इस्तेमाल होता है.
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पेट्रोलियम जेली
आम घरों में त्वचा के लिए इस्तेमाल होने वाला वैसलीन भी कच्चे तेल से ही निकलता है. ऑयल फैट को काफी परिष्कृत करने पर गंधहीन और स्वादहीन जेली मिलती है, जिसे कॉस्मेटिक्स के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
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मोम
ऑयल रिफाइनरी में मोम का उत्पादन भी होता है. यह भी कच्चे तेल का बायप्रोडक्ट है. वैज्ञानिक भाषा में रिफाइनरी से निकले मोम को पेट्रोलियम वैक्स कहा जाता है. पहले मोम बनाने के लिए पशु या वनस्पति वसा का इस्तेमाल किया जाता था.
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चारकोल
असफाल्ट, चारकोल, कोलतार या डामर कहा जाने वाला यह प्रोडक्ट भी कच्चे तेल से मिलता है. हालांकि दुनिया में कुछ जगहों पर चारकोल प्राकृतिक रूप से भी मिलता है. इसका इस्तेमाल सड़कें बनाने या छत को ढकने वाली वॉटरप्रूफ पट्टियां बनाने में होता है.
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प्लास्टिक
कच्चे तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए भी किया जाता है. दुनिया भर में मिलने वाला ज्यादातर प्लास्टिक कच्चे तेल से ही निकाला जाता है. वनस्पति तेल से भी प्लास्टिक बनाया जाता है लेकिन पेट्रोलियम की तुलना में महंगा पड़ता है.