दुनिया में परमाणु हमला झेल चुके इकलौते देश जापान ने पहली बार एनपीटी पर हस्ताक्षर ना करने वाले किसी देश के साथ ऐसी संधि की है. तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. तेज आर्थिक विकास के लिए भारत परमाणु उर्जा की प्रचुर आपूर्ति चाहता है. ऐसे में जापान के साथ हुआ यह परमाणु ऊर्जा समझौता काफी महत्वपूर्ण है.
संधि के अनुसार तमाम परमाणु आपूर्तियों का इस्तेमाल केवल असैन्य और शांतिपूर्ण मकसदों के लिए किया जाना है. इस बारे में दोनों देशों के बीच एक अतिरिक्त दस्तावेज पर भी हस्ताक्षर हुए हैं जिसमें साफ लिखा है कि यदि भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो जापान इस समझौते को अपनी तरफ से रद्द कर सकता है. सन 1998 के बाद से भारत ने खुद ही परमाणु परीक्षण पर रोक लगाई हुई है.
भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार सुबह जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मुलाकात की. उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एनपीटी भेदभावपूर्ण है और भारत को क्षेत्र के परमाणु-शक्ति संपन्न देशों चीन और पाकिस्तान को लेकर कुछ चिंताएं हैं.
अमेरिका स्थित वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक के साथ भारत की बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है. इसका स्वामित्व जापानी कंपनी तोशीबा के पास है. यह कंपनी दक्षिण भारत में छह परमाणु संयंत्र स्थापित करने वाली है. ये नए परमाणु संयत्र भारत की परमाणु क्षमता को 2032 तक दस गुना तक बढ़ाने की सरकारी योजना का हिस्सा हैं.
जापानी शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर 1945 में हुए परमाणु हमले अब तक अकेले परमाणु हमले हैं. दुनिया भर में बढ़ती हिंसा के बीच जापानी शहरों पर परमाणु हमले मानव सभ्यता के लिए चेतावनी है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Jiji Press6 अगस्त 1945. जापानी समय के अनुसार सुबह के 8 बजकर 15 मिनट. हिरोशिमा शहर के केंद्र से 580 मीटर की दूरी पर परमाणु बम का विस्फोट हुआ. शहर का 80 प्रतिशत हिस्सा इस विस्फोट की चपेट में आया. जैसे नाभिकीय आग का गोला फूटा हो जिसमें लोग, जानवर और पौधे जल गए. मलबे में तब्दील शहर और लोगों की त्रासदी के बीच मानव सभ्यता को एक नया प्रतीक मिला, परमाणु बम का कुकुरमुत्ते जैसा गुबार.
तस्वीर: picture-alliance/dpaजर्मनी द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान का पराजित साथी था. उसने मई में ही समर्पण कर दिया था.जुलाई 1945 में अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन युद्ध के बाद की स्थिति पर विचार करने के लिए जर्मनी के पोट्सडम शहर में मिले. प्रशांत क्षेत्र में युद्ध समाप्त नहीं हुआ था. जापान अभी भी मित्र देशों के सामने समर्पण करने से इंकार कर रहा था.
तस्वीर: Bundesarchiv-saपोट्सडम में ही अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रूमैन को यह खबर मिली कि न्यू मेक्सिको में परमाणु बम का परीक्षण सफल रहा है और लिटल बॉय नाम का बम प्रशांत क्षेत्र की ओर भेजा जा रहा है. परमाणु बम के इस्तेमाल की तैयारी पूरी हो चुकी थी और पोट्सडम में ही ट्रूमैन और चर्चिल के बीच इस बात पर सहमति बनी कि यदि जापान फौरन बिना शर्त हथियार डालने से इंकार करता है तो उसके खिलाफ परमाणु बम का इस्तेमाल किया जाएगा.
तस्वीर: gemeinfreiजापान के समर्पण नहीं करने पर हिरोशिमा पर हमले के लिए पहली अगस्त 1945 की तारीख तय की गई. लेकिन तूफान के कारण इस दिन हमले को रोक देना पड़ा. पांच दिन बाद इनोला गे विमान 13 सदस्यों वाले कर्मीदल लेकर हमले के लिए रवाना हुआ. लड़ाकू विमान के कर्मियों को उड़ान के दौरान पता लगा कि उन्हें लक्ष्य पर परमाणु बम गिराना है
तस्वीर: gemeinfreiकहते हैं कि परमाणु बम हमले के बाद हिरोशिमा के ढाई लाख निवासियों में 70-80 हजार की फौरन मौत हो गई. धमाके के कारण पैदा हुई गर्मी में पेड़ पौधे और जानवर भी झुलस गए. इस इमारत को छोड़कर कोई भी इमारत परमाणु बम की ताकत को बर्दाश्त नहीं कर पाई. यह इमारत थी धमाके से 150 मीटर दूर शहर के वाणिज्य मंडल की. लकड़ी के बने कुछ पुराने मकान परमाणु हमले और उसके बाद हुई तबाही की दास्तान सुनाने के लिए बच गए.
तस्वीर: APहिरोशिमा में परमाणु धमाके के आस पास के लोगों के लिए मौत से बचने की कोई गुंजाइश नहीं थी. दूर में जो बच गए उनका शरीर बुरी तरह जल गया था. जलने, विकिरण का शिकार और घायल होने के कारण लोगों का मरना कई दिनों और महीनों में भी जारी रहा. यह महिला सौभाग्यशाली रही, बच गई लेकिन गर्मी की वजह से शरीर पर कपड़ा चिपक गया. पांच साल बाद परमाणु हमलों में मरने वालों की संख्या 230,000 आंकी गई.
हिरोशिमा पर हुए हमले के बावजूद जापान समर्पण के लिए तैयार नहीं था. संभवतः अधिकारियों को हिरोशिमा में हुई तबाही की जानकारी नहीं मिली थी, लेकिन उसके तीन दिन बाद अमेरिकियों ने नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिराया. पहले क्योटो पर हमला होना था लेकिन अमेरिकी रक्षा मंत्री की आपत्ति के बाद नागासाकी को चुना गया. फैट मैन नामका बम 22,000 टन टीएनटी की शक्ति का था. हमले में करीब 40,000 लोग तुरंत मारे गए.
तस्वीर: picture-alliance/dpaनागासाकी 1945 में मित्सुबिशी कंपनी के हथियार बनाने वाले कारखानों का केंद्र था. नागासाकी के बंदरगाह पर उसका जहाज बनाने का कारखाना था. एक अन्य कारखाने में टारपीडो बनाए जाते थे जिनसे जापानियों ने पर्ल हार्बर में अमेरिकी युद्धपोतों पर हमला किया था. शहर में बहुत ज्यादा जापानी सैनिक तैनात नहीं थे, लेकिन युद्धपोत बनाने वाले कारखाने के छुपे होने के कारण उस पर सीधा हमला करना संभव नहीं था.
तस्वीर: picture-alliance/dpaनागासाकी पर परमाणु हमले के एक दिन बाद जापान के सम्राट हीरोहीतो ने अपने कमांडरों को देश की संप्रभुता की रक्षा की शर्त पर मित्र देशों की सेना के सामने समर्पण करने का आदेश दिया. मित्र देशों ने शर्त मानने से इंकार कर दिया और हमले जारी रखे. उसके बाद 14 अगस्त को एक रेडियो भाषण में सम्राट हीरोहीतो ने प्रतिद्वंद्वियों के पास "अमानवीय" हथियार होने की दलील देकर बेशर्त समर्पण करने की घोषणा की.
तस्वीर: gemeinfreiऔपचारिक रूप से युद्ध 12 सितंबर 1945 को समाप्त हो गया. लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु हमलों का शिकार होने वालों की तकलीफ का अंत नहीं हुआ है. इस तकलीफ ने जापान के बहुमत को युद्धविरोधी बना दिया है. हमले में बच गया हिरोशिमा के वाणिज्य मंडल की इमारत का खंडहर आज युद्ध और परमाणु हमले की विभीषिका की याद दिलाने के लिए स्मारक का काम करता है.
तस्वीर: picture-alliance/ZBअगस्त 1945 के हमले के बाद से दुनिया भर के लोग इस हमले की याद करते हैं. हिरोशिमा में बड़ी स्मारक सभा होती है जहां दुनिया को चेतावनी देने जीवित बचे लोगों के अलावा राजनीतिज्ञ और दुनिया भर के मेहमान भी आते हैं. बहुत से जापानी अब परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए सक्रिय हैं. ध्वस्त हिरोशिमा की तस्वीर के सामने सहमे हुए पिता-पुत्री.
तस्वीर: AP तोशीबा और मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज जैसी जापानी परमाणु संयंत्र निर्माता कंपनियों के लिए अपना कारोबार जापान से बाहर के देशों में फैलाना जरूरी है. 2011 में हुए फुकुशिमा परमाणु हादसे के कारण घरेलू बाजार में नए ऐसे संयंत्रों की मांग बहुत कम है.
भारत 2008 में अमेरिका के साथ ऐसा ही असैन्य परमाणु समझौता कर चुका है. कई दशकों तक परमाणु तकनीक के मामले में विश्व मंच पर अलग थलग पड़ने के बाद भारत के लिए वह एक महत्वपूर्ण बिंदु था. प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि जापान और भारत के प्रगाढ़ होते संबंधों से एशियाई और विश्व स्तर पर क्षेत्रीय शक्तियों के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद मिलेगी.
आरपी/एके (पीटीआई)