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भारत का सबसे बड़ा सौर उर्जा बिजली घर

५ दिसम्बर २०११

एशियाई विकास बैंक की आर्थिक मदद से राजस्थान में भारत का सबसे बड़ा सौर ऊर्जा संयत्र लगाया जाएगा. संयंत्र 2012 तक बन जाएगा और 40 मेगावाट बिजली पैदा करेगा.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

एशियाई विकास बैंक पश्चिमी राजस्थान में सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए 4.80 करोड़ डॉलर का कर्ज देगा. संयंत्र निजी कंपनी रिलायंस पावर लिमिटेड बना रही है. 2012 की दूसरी तिमाही तक निर्माण का काम पूरा हो जाएगा. बैंक ने माना है कि भारत में राजस्थान ऐसी जगह है जहां सूरज की रोशनी सबसे ज्यादा मौजूद है. बैंक पर्यावरण के लिहाज से स्थायी ऊर्जा के विकास को बढ़ावा देने के काम में जुटा है. भारत ऐसी जगह है जहां साल में औसतन 300 दिन धूप खिली रहती है. एडीबी के निदेशक माइकल बैरो ने कहा, "दुनिया में उच्च स्तर के सौर ऊर्जा की क्षमता वाले देशों में भारत भी है और यह संयंत्र देश में बड़े स्तर पर निजी क्षेत्र में बिजली उत्पादन को शुरू करेगा."

तस्वीर: AP

अमेरिका का एक्सपोर्ट इंपोर्ट बैंक भी इस संयंत्र के लिए कुछ पैसा दे रहा है. उम्मीद की जा रही है कि यह रकम करीब 14.7 करोड़ डॉलर होगी. सौर ऊर्जा की दिशा में यह परियोजना रिलायंस पावर की पहली परियोजना है. इस संयंत्र से पैदा होने वाली बिजली मुंबई के घरों में इस्तेमाल की जाएगी.

एशियाई विकास बैंक का कहना है कि भारत को हर साल कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन 41 हजार टन की कमी कर लेगा. पारंपरिक जीवाश्म ईंधन यानी कोयले से चलने वाले बिजलीघरों की जगह साफ ईंधन और सौर ऊर्जा वाले बिजली घरों के जरिए यह मुमकिन हो सकेगा.

तस्वीर: ESA

भारत पवन चक्की से उर्जा उत्पादन के क्षेत्र में पहले ही दुनिया के बाकी देशों से आगे है अब उसने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी कदम बढ़ा दिए हैं. जुलाई 2009 में भारत ने 19 अरब अमेरिकी डॉलर के खर्च वाली एक योजना सामने रखी जिसके जरिए 2020 तक 20 गीगावाट बिजली का उत्पादन करने की योजना है. इस योजना के तहत सौर ऊर्जा वाले उपकरणों का इस्तेमाल सभी सरकारी इमारतों में जरूरी बना दिया जाएगा. इसके साथ ही होटलों और अस्पतालों के लिए भी यह सौर ऊर्जा का इस्तेमाल जरूरी की जा रही है. सौर उर्जा तो यहां बड़ी मात्रा में मौजूद है, मुश्किल है कि उसे इस्तेमाल के लिए जरूरी तकनीक की कमी. फिलहाज जिस तकनीक का इस्तेमाल किया रहा है उसे तकनीक से चलने वाले संयंत्रों को लगाने का खर्च बहुत ज्यादा है. जब तक इसकी जगह कोई सस्ती तकनीक नहीं आ जाती यह मुश्किल बनी रहेगी.

रिपोर्टः डीपीए/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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