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'भारत की कंपनियां सबसे भ्रष्ट'

२४ सितम्बर २००९

दुनिया भर में लगभग 30 प्रतिशत व्यवसायियों का मानना है कि भारतीय कंपनियां दुनिया की सबसे भ्रष्ट कंपनियों में शामिल हैं. भ्रष्टाचार पर नज़र रखने वाली ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल संस्था की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है.

डेनमार्क में सबसे कम भ्रष्टाचार

दुनिया भर में ढाई हज़ार से ज्यादा व्यवसायियों के साथ हुए सर्वेक्षण के मुताबिक, 30 प्रतिशत लोगों का मानना है कि भारतीय दुनिया के सबसे भ्रष्ट व्यवसायियों में हैं. अंतरराष्ट्रीय ग़ैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार रिपोर्ट में संगठन ने निजी कंपनियों में भ्रष्टाचार की जांच की और पाया कि चीन और भारत की कंपनियां विश्व व्यापार में एक अहम भूमिका निभाती हैं लेकिन विदेश में व्यापार के दौरान रिश्वत देने से पीछे नहीं हटतीं.

तस्वीर: AP

इस रिपोर्ट को तैयार करते समय 26 देशों का अध्ययन किया गया और हर देश में कम से कम 100 व्यवसायियों को सवाल पूछे गए.

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के मुताबिक़ इंटीग्रिटी पैक्ट एक तरीक़ा है जिसके ज़रिए उन्हें सरकारी कंपनियों में, ख़ासकर टेंडरों और व्यापार प्राप्ति के सिलसिले में भ्रष्टाचार को लेकर जानकारी पता चलती है. सरकारी कंपनियां तो इस इंटीग्रिटी पैक्ट अपनाने में दिलचस्पी दिखा रही हैं लेकिन निजी कंपनियों की अभी तक इसमें दिलचस्पी नहीं है.

रिपोर्ट ने इसके अलावा इस बात का भी आह्वान किया कि कई कंपनियों और उद्योगों की आर्थिक स्थिति राजनीतिक निर्णयों को भी अपने फ़ायदे के लिए बदलने में सफल रहती है. टीआईआई की कार्यवाही निर्देशक अनुपमा झा ने कहा कि कंपनियों के पास राजनीति में पैसा लगाने के साफ़ नियम नहीं हैं.

उनका कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कंपनियां उच्च स्तर की ज़िम्मेदारियों की जानकारी तो देतीं हैं लेकिन भ्रष्टाचार से बचे रहने के लिए कोई ख़ास कदम नहीं उठातीं हैं. रिपोर्ट के मुताबिक भ्रष्टाचार की वजह से हर योजना की लागत लगभग दस प्रतिशत तक बढ़ सकती है और इसका भार आख़िर में देश के नागरिकों पर ही पड़ता है.

रिपोर्ट के मुताबिक पारदर्शिता के मामले में डेनमार्क पहले स्थान पर है और वहां सबसे कम भ्रष्टाचार पाया गया. जर्मनी 14वें स्थान पर है, लेकिन रिपोर्ट में जर्मन कंपनी सीमेंस और कार कंपनी फ़ोल्क्सवागेन में भ्रष्टाचार के मामलों को याद करते हुए जर्मनी को हिदायत दी गई है कि सरकार को इन मामलों से सीखना चाहिए.

रिपोर्ट में टैक्स चोरों को आश्रय देने के लिए मशहूर यूरोपीय देश लीश्टेनश्टाइन के बारे में भी बताया गया है. माना जाता है कि टैक्स चोरों के बारे में लीश्टेन्श्टाइन की सरकार से जानकारी हासिल करने के लिए जर्मन खुफिया एजेंसी ने अब तक 60 लाख यूरो खर्च किए हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एम गोपालकृष्णन

संपादन: एस गौड़

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