1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत की गरीबी से हैरान फॉर्मूला वन ड्राइवर

२८ अक्टूबर २०११

प्राइवेट जेट में उड़ान भरने वाले, पार्टियों और रईसी में रहने वाले फॉर्मूला वन ड्राइवर भारत में अमीर और गरीब के बीच का अंतर देख कर हैरान हैं. वहीं जर्मन ड्राइवर सेबास्टियान फेटल को भारत प्रेरणा देता है.

Red Bull driver Sebastian Vettel of Germany celebrates after winning the Korean Formula One Grand Prix at the Korean International Circuit in Yeongam, South Korea Sunday, Oct. 16, 2011. (Foto:Eugene Hoshiko/AP/dapd)
भारत से प्रभावित सेबास्टियान फेटलतस्वीर: dapd

कॉमनवेल्थ के झटके के बाद अमीर हाथों से तैयार बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट समय पर अपनी पूरी शानोशौकत और पांच सितारा सुविधाओं के साथ तैयार है. इसके लिए जिन किसानों की उपजाऊ जमीन ली गई है वह कहानी कुछ और है.

विशेष अनुभव
समाचार एजेंसी एएफपी ने ब्रिटिश ड्राइवर जेन्सन बटन के हवाले से लिखा है कि भारत आना ड्राइवरों के लिए एक 'मुश्किल' अनुभव रहा है. खासकर पांच सितारा होटलों से दिखती भारत की आम जिंदगी. बटन कहते हैं, "आप भारत की गरीबी नहीं भूल सकते. पहली बार आने वालों के लिए यह मुश्किल अनुभव है. आपको समझ में आता है कि यहां अमीर और गरीब लोगों के बीच का अंतर बहुत बड़ा है. उम्मीद है कि रेस के कारण सभी को मदद मिलेगी. यहां काफी कर्मचारी हैं. आशा है कि इससे उनकी जिंदगी थोड़ी आसान होगी."

मेकलारेन के लुइस हैमिल्टन और जेन्सन बटन(दाएं)तस्वीर: AP

खेतों की जमीन पर ट्रैक बनाकर महंगी गाड़ियों में पेट्रोल फूंकने वाले फॉर्मूला वन के ड्राइवर जैसे जानते ही न हों कि उनके रेस ट्रैक से बाहर की दुनिया कैसी है और यूरोप, अमेरिका में सरकारी खर्च पर जीने वाले गरीबों का जीवन कैसा होता है.

जर्मन चैंपियन सेबास्टियान फेटल भारत के आम जन जीवन से उस समय रूबरू हुए जब उन्होंने नई दिल्ली से आगरा के ताजमहल के बीच 200 किलोमीटर की दूरी सड़क से तय की. उन्होंने कहा, "यह निश्चित ही आपको जमीन पर ला पटकता है और आपको कई चीजें समझ में आती हैं. यह आपके लिए एक प्रेरणा है. आप उन चीजों का महत्व समझने लग जाते हैं जिन्हें आप अब तक हल्के में ले रहे थे."

रटी रटाई सोच

नई दिल्ली के पास के ग्रेटर नोएडा में बना जेपी ग्रीन्स स्पोर्ट्स सिटी रहने और व्यवसाय के लिए नया इलाका है जिसमें भारत के उच्च मध्यमवर्ग को अपना बसेरा बसाने का मौका है. पश्चिमी देश भले ही भारत के बाजार की ओर मुंह उठाकर देख रहे हों और उसके भरोसे बैठे हों, लेकिन जब भी भारत में कोई बड़ा आयोजन होता है तो उससे पहले गरीबी का गीत गाया जाता है और उसका महिमामंडन होता है. बाजार की मजबूरी और तीसरी दुनिया यानी थर्ड वर्ल्ड के बारे में रटी रटाई सोच इसका मुख्य कारण हैं.

यही है वह 'सवाल का निशान' जिसे आप तलाश रहे हैं. इसकी तारीख़ 28.29.30/10 और कोड 3344 हमें भेज दीजिए ईमेल के ज़रिए hindi@dw-world.de पर या फिर एसएमएस करें +91 9967354007 पर.तस्वीर: picture-alliance

आलोचना

यह भी परस्पर विरोधी है कि एक ओर करोड़ों का निवेश कर इस तरह का फॉर्मूला वन का सर्किट बनाया गया है जबकि राष्ट्रीय टीमें पैसे की कमी से जूझ रही हैं. पूर्व एथलीट पीटी ऊषा ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत के दौरान कहा, "मुझे बहुत बुरा लगता है कि इस तरह के हाई फाई काम 99 फीसदी भारत से बिलकुल जुड़ा हुआ नहीं है. यह आपराधिक फिजूलखर्ची है. पहले तो टी20 क्रिकेट ने भारतीय खेल भावना को बिगाड़ा और अब एक और अवतार आ गया है जो कॉर्पोरेट धन को खींचेगा. ऐसा कॉर्पोरेट जो खेल को आगे बढ़ाने के लिए कोई मदद नहीं करता. अब सिर्फ भगवान ही भारतीय खेल को बचा सकता है."

वहीं एक और खर्चीले खेल से जुड़े गगन नारंग का मानना है कि फॉर्मूला वन अधिकतर भारतीयों की पहुंच से बाहर है. नारंग कहते हैं, "एक लाख 20 हजार की क्षमता वाले सर्किट को भरने के लिए आयोजकों को टिकट की कीमतें कम करनी पड़ीं. हमें यह समझना ही होगा कि यह खेल सबके लिए नहीं है. सिर्फ अमीर लोग ही इससे जुड़ेंगे. मैंने विदेशों में रहने वाले अपने दोस्तों से सुना है कि भारतीय ग्रां प्री सिंगापुर ग्रां प्री से भी महंगी है. और यह उद्देश्य से बिलकुल विपरीत है."

ट्रैफिक चकराने वाला

जर्मन चालक फेटल को एक बात और जो आश्चर्यजनक लगी वह वहां का ट्रैफिक था. जहां सड़कों पर लोग हमेशा गलत साइड ही चलते हैं और सिग्नल का ध्यान नहीं रखते. वह कहते हैं, "मैंने अपनी कार के ड्राइवर से पूछा कि क्या यहां लोग सच में लाइसेंस लेते हैं तो उन्होंने मुझे कहा कि आप पैसे दो तो लाइसेंस मिल जाता है. मजेदार बात यह है कि यूरोप, जहां इतने सारे नियम हैं और कभी कभी तो वे इतने जटिल होते हैं कि उनका पालन करना ही मुश्किल हो जाता है. जबकि यहां, मैं ऐसा तो नहीं कहूंगा कि नियम नहीं हैं लेकिन बहुत कम हैं लेकिन काम करते हैं. आपको कहीं कोई क्रैश होता नहीं दिखता. हम कह सकते हैं कि यहां अव्यवस्था है लेकिन व्यवस्थित अव्यवस्था है."

2009 के चैंपियन जेन्सन बटनतस्वीर: AP

मैक्लॉरेन टीम के लुइस हैमिल्टन कहते हैं कि भारतीय फैन्स में फॉर्मूला वन के लिए बहुत जुनून है. वह बताते हैं, "उनमें फॉर्मूला वन का कीड़ा तो है. यहां आने के बाद लोगों ने हमें जो ऊर्जा दी है वह सम्मोहित करने वाली है. पिछली बार जब मैं यहां आया था तो सिर्फ पांच हजार लोगों के आने की संभावना थी लेकिन 40 हजार आ गए. वे मुझे देख कर इतने रोमांचित थे, मुझे छूना चाहते थे. वे बाड़ से कूद कर आने की कोशिश कर रहे थे. यह मेरे लिए बहुत खास था. मुझे उम्मीद है कि यहां भी ऐसा कुछ होगा."

बहरहाल शुक्रवार को हुए प्रैक्टिस सेशन में लुइस हैमिल्टन ने बाजी मारी है और दूसरे नंबर पर जर्मनी के रेड बुल चालक सेबास्टियान फेटल हैं. शनिवार को क्वालिफाइंग के बाद रविवार को रेस होनी है.

रिपोर्टः एएफपी, आभा मोंढे

संपादनः वी कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें