पिछले पांच वर्षों में भारत की जेलों में कैदियों की संख्या काफी बढ़ गई है. उनकी जरूरतों को पूरा करने में मुश्किल हो रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायिक प्रक्रिया में नए सुधारों को लागू करने का समय आ गया है.
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भारत की जेलों में बढ़ती भीड़ को देखते हुए, आलोचक न्यायिक प्रक्रिया में नए सुधारों की मांग कर रहे हैं, ताकि मुकदमों को निपटाने में लगने वाले समय को कम किया जा सके. साथ ही, जेल में रहने वाले कैदियों की संख्या भी घटे.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल ही में ‘जेल सांख्यिकी भारत 2020' रिपोर्ट जारी की है. एनसीआरबी के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत की जेलों में बंद हर चार में से तीन कैदी ऐसे हैं जिन्हें विचाराधीन कैदी के तौर पर जाना जाता है. दूसरे शब्दों में कहें, तो इन कैदियों के ऊपर जो आरोप लगे हैं उनकी सुनवाई अदालत में चल रही है. अभी तक इनके ऊपर लगे आरोप सही साबित नहीं हुए हैं.
रिपोर्ट में यह जानकारी भी दी गई है कि देश के जिला जेलों में औसतन 136 फीसदी की दर से कैदी रह रहे है. इसका मतलब यह है कि 100 कैदियों के रहने की जगह पर 136 कैदी रह रहे हैं. फिलहाल, भारत के 410 जिला जेलों में 4,88,500 से ज्यादा कैदी बंद हैं.
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा कि भारत में विचाराधीन कैदियों की संख्या ‘दुनिया भर के अन्य लोकतांत्रिक देशों की तुलना में काफी ज्यादा है.' 2017 तक, जेल में बंद सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदियों के मामले में भारत एशिया में तीसरे नंबर पर था.
जेलों में बढ़ती भीड़
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 के मुकाबले 2020 में दोषी कैदियों की संख्या में 22 फीसदी की कमी देखी गई है, लेकिन विचाराधीन कैदियों की संख्या बढ़ी है. वहीं, दिसंबर में कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई) के एक अध्ययन से पता चला है कि पिछले दो वर्षों में जेल में रहने वालों की संख्या में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है. कोरोना महामारी के दौरान नौ लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया. नतीजा ये हुआ कि जेल में रह रहे कैदियों की औसत दर 115 फीसदी से बढ़कर 133 फीसदी हो गई.
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सीएचआरई के जेल सुधार कार्यक्रम की प्रमुख मधुरिमा धानुका ने डॉयचे वेले को बताया, "जेल में बंद कैदियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. पिछले पांच वर्षों में, मुकदमे के नतीजे के इंतजार में जेल में बिताया जाने वाला उनका समय भी बढ़ गया है. जेलों में बढ़ती भीड़भाड़ कम करने के लिए तत्काल कारगर उपाय लागू करने की आवश्यकता है.” 2020 में, जेल में बंद कैदियों में 20 हजार से ज्यादा महिलाएं थीं जिनमें से 1,427 महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी थे.
वर्ष 2020 में कोरोना महामारी की वजह से देशव्यापी लॉकडाउन लगने की घोषणा के बाद, देश की सर्वोच्च अदालत ने जेलों की भीड़ को कम करने के लिए हर राज्य में समितियों का गठन करने का निर्देश दिया था. हालांकि, उस समय कई कैदियों को अस्थायी रूप से रिहा किया गया और एक साल के भीतर उन्हें फिर से जेल में बंद कर दिया गया.
विशेषज्ञों का कहना है कि अदालतों को जमानत की प्रक्रिया को आसान बनाने के नए मानदंड निर्धारित करने के लिए विशेष कदम उठाना चाहिए, खासकर उन मामलों में जहां मुकदमे लंबे समय तक चलते हैं और आरोपी वर्षों से जेल में है.
दुनिया की सबसे खतरनाक जेल
जेल का नाम सुनते ही ऐसी तस्वीर मन में उभरती है जहां से निकल पाना मुश्किल है लेकन शातिर अपराधी जेल तोड़ने की तरकीबें निकालते रहते हैं. यहां देखिए दुनिया की उन जेलों को जहां से निकल पाना अपराधियों के लिए नामुमकिन सा है.
तस्वीर: picture-alliance/empics/A. Devlin
एडीएक्स फ्लोरेंस सुपरमैक्स, अमेरिका
490 बिस्तरों वाला जेल परिसर 37 एकड़ में फैला है. मुख्य रूप से जमीन के ऊपर है. 7 गुना 12 फीट की हर कोठरी में टीवी के अलावा, टॉयलेट, शॉवर, बिस्तर और एक टेबल है. सबकुछ कंक्रीट का बना है. बाहर देखने वाली खिड़की महज कुछ इंच की है. पूरे परिसर में रिमोट कंट्रोल वाले 14,000 दरवाजे हैं, कैदी हर वक्त हरकत पकड़ने वाले कैमरे की निगाह में रहते हैं.
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क्विनचेंग प्रिजन, चीन
चीन की राजधानी बीजिंग के चांगपिंग इलाके की यह जेल रूस के सहयोग से 1958 में बनाई गई थी. 20 वर्गमीटर की कोठरियों में फर्नीचर के नाम पर सिर्फ बिस्तर है. दरवाजे लकड़ी के बने हैं जिनमें दोनों तरफ लोहे की पट्टियां हैं. खाना कमरे में ही दिया जाता है और कैदी कसरत करने के लिए हर इमारत के सामने बने खास यार्ड में जाते हैं.
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एचएमपी बेलमार्श, यूके
दक्षिण पूर्व लंदन में मौजूद यह जेल 1991 में शुरू हुई. आमतौर पर आतंकवादी गतिविधियों में शामिल लोगों को यहां हिरासत में रखा जाता है. इसे ग्वांतानामो बे का ब्रिटिश संस्करण कहा जाता है. यहां 60 फीसदी कैदी दूसरे कैदियों के साथ जबकि 40 फीसदी अकेले रहते हैं. जेल में पढ़ाई के साथ ही खेलकूद, कसरत और कई तरह के प्रशिक्षण भी दिए जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/A. Devlin
कैम्प डेल्टा, अमेरिका
कैम्प डेल्टा ग्वांतानामो बे में अमेरिका की एक स्थायी जेल है जहां. यहां 2002 में पहला कैंप बनाया गया था. यहां कैदियों को हिरासत में रखने के लिए छह अलग अलग कैम्प हैं जिनके अलग अलग नाम हैं. जेल के कैदियों के अधिकार बहुत अनिश्चित और सीमित हैं क्योंकि यह जेल अमेरिकी जमीन पर नहीं. कैदियों के साथ अक्सर ज्यादती और दुर्व्यवहार की शिकायतें आती हैं.
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फेडरल करेक्शनल कंप्लेक्स, अमेरिका
अमेरिका की यह संघीय जेल इंडियाना राज्य में है. यहां पुरुष कैदियों को रखा जाता है. जेल में अलग तरह की सुरक्षा व्यवस्था के साथ हर तरह के कैदियों के लिए अलग व्यवस्था है. ज्यादा खतरनाक कैदियों को अकेले रखा जाता है जहां वो 23 घंटे निगरानी में रहते हैं. बाकी बचे समय में वो बस खाना खाने और कसरत के लिए साथ आते हैं.
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आर्थर रोड जेल, भारत
मुंबई की इस जेल को 1994 में सेंट्रल जेल का दर्जा मिला लेकिन 1926 में बनी इस जेल को लोग अब भी इसी नाम से जानते हैं. 2 एकड़ में फैली 800 कैदियों की क्षमता वाली जेल में अमूमन 2000 कैदी रहते हैं. फरार कारोबारी विजय माल्या को लंदन से प्रत्यर्पण के बाद इसी जेल की एक कोठरी में रखने की तैयारी है.
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फुशु प्रिजन, जापान
फुशु शहर में मौजूद जापान की सबसे बड़ी इस जेल में दूसरे विश्व युद्ध के खत्म होने से पहले कम्युनिस्ट नेताओं, प्रतिबंधित धार्मिक नेताओं और कोरियाई स्वतंत्रता सेनानियों को रखा जाता था. करीब 56 एकड़ में फैली जेल में 2000 से ज्यादा कैदी रहते हैं. यहां विदेशी, मानसिक रोगी, विकलांग और आम कैदियों को अलग अलग रखा जाता है.
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ला सांते प्रिजन, फ्रांस
पेरिस के इलाके में मौजूद इस कुख्यात जेल में आम अपराधियों के साथ ही कुछ मशहूर हस्तियों ने भी दिन काटे हैं. कोठरियां 4 मीटर लंबी, 2.5 मीटर चौड़ी और तीन मीटर ऊंची हैं. जेल में कुल 2,000 कैदियों को रखने की व्यवस्था है. यह वो जगह है जहां फ्रांस में कभी सार्वजनिक मौत की सजा भी दी गई थी.
100 साल से ज्यादा पुरानी यह जेल पहले सेना के लिए बनाई गई थी. अत्याधुनिक सुरक्षा उपायों और तकनीक से लैस जेल सैन फ्रांसिस्को की खाड़ी में है. चारों ओर फैला ठंडा समुद्री पानी कैदियों के लिए यहां से भाग पाना नामुमिकन बनाता है. 1963 में इसे बंद कर म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया.
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ट्रायल के समय को घटाने की मांग
इतिहासकार और फिल्म निर्माता उमा चक्रबर्ती कहती हैं, "हमारे पास ऐसा कोई तंत्र या संस्था नहीं है जिसके जरिए कैदियों की बात सुनी जाए. तकनीकी तौर पर, जेल में बंद कैदी इस बात के हकदार हैं कि उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक सम्मान और अधिकार मिले. हालांकि, मेरा मानना है कि भारतीय संविधान के तहत मिले अधिकार जेलों के दरवाजों तक ही सीमित रह जाते हैं.”
आंकड़े यह भी बताते हैं कि भारतीय जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों में से 70 फीसदी से अधिक कैदी हाशिए पर मौजूद वर्ग, जाति, धर्म और लिंग से हैं. दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के इलाके में सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदियों की संख्या है. इसके बाद बिहार, पंजाब, ओडिशा और महाराष्ट्र का स्थान है. इनमें से कई राज्यों की जेलों की ऑक्युपेंसी दर 100 फीसदी से अधिक है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस की एसोसिएट प्रोफेसर प्रतीक्षा बक्षी ने जेल से जुड़े सुधार कार्यक्रमों पर काम किया है. वह कहती हैं कि 2020 में हिरासत में होने वाली मौतों की दर में 7 फीसदी की वृद्धि हुई है.
बढ़ती जा रही है जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या
एनसीआरबी के ताजा आंकड़े दिखाते हैं कि देश की जेलों में ऐसे कैदियों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ आरोपों पर सुनवाई अभी चल ही रही है. जानिए और क्या बताते हैं ताजा आंकड़े.
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कितनी जेलें
2019 में देश में कुल 1,350 जेलें थीं, जिनमें सबसे ज्यादा (144) राजस्थान में थीं. दिल्ली में सबसे ज्यादा (14) केंद्रीय जेलें हैं. कम से कम छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी केंद्रीय जेल नहीं है.
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जेलों में भीड़
इतनी जेलें भी बंदियों की बढ़ती संख्या के लिए काफी नहीं हैं. ऑक्यूपेंसी दर 2018 में 117.6 प्रतिशत से बढ़ कर 2019 में 118.5 प्रतिशत हो गई. सबसे ज्यादा ऊंची दर जिला जेलों (129.7 प्रतिशत) है. राज्यों में सबसे ऊंची दर दिल्ली में है (174.9 प्रतिशत).
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महिला जेलों का अभाव
'पूरे देश में सिर्फ 31 महिला जेलें हैं और वो भी सिर्फ 15 राज्यों/केंद्रीय शासित प्रदेशों में हैं. देश की सभी जेलों में कुल 4,78,600 कैदी हैं, जिनमें 19,913 महिलाएं हैं.
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कर्मचारियों का भी अभाव
2019 में जेल स्टाफ की स्वीकृत संख्या थी 87,599 लेकिन वास्तविक संख्या थी सिर्फ 60,787. सबसे बड़ा अभाव प्रोबेशन अधिकारी, कल्याण अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक आदि जैसे सुधार कर्मियों का था.
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कैदियों पर खर्च
2019 में देश में कैदियों पर कुल 2060.96 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जो कि जेलों के कुल खर्च का 34.59 प्रतिशत था. इसमें से 47.9 प्रतिशत (986.18 करोड़ रुपए) भोजन पर खर्च किए गए, 4.3 प्रतिशत (89.48 करोड़ रुपए) चिकित्सा संबंधी खर्च पर, 1.0 प्रतिशत (20.27 करोड़ रुपए) कल्याणकारी गतिविधियों पर, 1.1 प्रतिशत (22.56 करोड़ रुपए) कपड़ों पर और 1.2 प्रतिशत (24.20 करोड़ रुपए) शिक्षा और ट्रेनिंग पर किया गया.
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70 प्रतिशत कैदियों के मामले विचाराधीन
2019 में देश की सभी जेलों में अपराधी साबित हो चुके कैदियों की संख्या (1,44,125) ऐसे कैदियों की संख्या से ज्यादा थी जिनके खिलाफ मामले अभी अदालतों में विचाराधीन ही हैं (3,30,487). एक साल में विचाराधीन कैदियों की संख्या में 2.15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. इनमें से लगभग आधे कैदी जिला जेलों में हैं और 36.7 प्रतिशत केंद्रीय जेलों में.
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न्याय के इंतजार में
विचाराधीन कैदियों में 74.08 प्रतिशत कैदी (2,44,841) एक साल तक की अवधि तक, 13.35 प्रतिशत कैदी (44,135) एक से दो साल की अवधि तक, 6.79 प्रतिशत (22,451) दो से तीन सालों तक, 4.25 प्रतिशत (14,049) तीन से पांच सालों तक और 1.52 प्रतिशत कैदी (5,011) पांच साल से भी ज्यादा अवधि से जेल में बंद थे.
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शिक्षा का स्तर
सभी कैदियों में 27.7 प्रतिशत (1,32,729) अशिक्षित थे, 41.6 प्रतिशत (1,98,872) दसवीं कक्षा तक भी नहीं पढ़े थे, 21.5 प्रतिशत (1,03,036) स्नातक के नीचे तक पढ़े थे, 6.3 प्रतिशत (30,201) स्नातक थे, 1.7 प्रतिशत 8,085 स्नातकोत्तर थे और 1.2% प्रतिशत (5,677) कैदियों के पास टेक्निकल डिप्लोमा/डिग्री थी.
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मृत्युदंड वाले कैदी
सभी कैदियों में कुल 400 कैदी ऐसे थे जिन्हें मौत की सजा सुना दी गई थी. इनमें से 121 कैदियों को 2019 में मृत्युदंड सुनाया गया था. 77,158 कैदियों (53.54 प्रतिशत) को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.
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जेल में मृत्यु
2018 में 1,845 कैदियों के मुकाबले 2019 में 1,775 कैदियों की जेल में मृत्यु हुई. इनमें से 1,544 कैदियों की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई. अप्राकृतिक कारणों से मरने वाले कैदियों की संख्या 10.74 प्रतिशत बढ़ कर 165 हो गई. इनमें से 116 कैदियों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई, 20 की मौत हादसों की वजह से हुई और 10 की दूसरे कैदियों द्वारा हत्या कर दी गई. कुल 66 मामलों में मृत्यु का कारण पता नहीं चल पाया.
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पुनर्वास
2019 में कुल 1,827 कैदियों का पुनर्वास कराया गया और 2,008 कैदियों को रिहाई के बाद वित्तीय सहायता दी गई. कैदियों द्वारा कुल 846.04 करोड़ रुपए मूल्य के उत्पाद भी बनाए गए.
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कोर्ट को आदेश देने की जरूरत
बक्षी ने कहा कि तथाकथित अप्राकृतिक मौतों में 18 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है. इनमें आत्महत्याएं, दुर्घटनाएं और जेलों में होने वाली हत्याएं शामिल हैं. 2020 में 56 कैदियों की मौत क्यों हुई, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. ये आंकड़े साबित करते हैं कि लॉकडाउन के दौरान लागू किए गए नियम से जेलों में हिंसा और बीमारी में वृद्धि हुई.
वह आगे कहती हैं, "अब समय आ गया है कि सरकार और अदालतें विचाराधीन कैदियों के स्वास्थ्य और उनके लिंग के आधार पर संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाए. हिरासत में होने वाली मौतों और अन्य घटनाओं को लेकर जेल निरीक्षकों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए.”
कई लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया है कि कैदियों को नियमित जमानत पर रिहा करने के उपायों की तलाश की जाए और उन्हें लागू किया जाए, ताकि जेल की भीड़भाड़ को कम किया जा सके. सीएचआरआई की धानुका ने कहा, "अदालत को उन मामलों और अपीलों को प्राथमिकता देने के लिए भी निर्देश जारी करना चाहिए जहां आरोपी जेल में बंद है. जरूरी होने पर मुकदमों की सुनवाई हर दिन होनी चाहिए, ताकि जिन मामलों में पांच साल से अधिक समय से मुकदमा चल रहा है वे जल्द से जल्द समाप्त हो जाएं.”
पिछले एक साल में, अदालतों ने कैदियों की कई याचिकाओं पर सुनवाई की है. इनमें कई याचिकाएं इलाज कराने के लिए अस्पताल में भर्ती कराने से इनकार, पत्रों की जब्ती, घर के खाने की मांग, परिवार के लोगों से मिलने की मांग से जुड़ी हुई थी.
जेल से कैसे भागा ड्रग्स की दुनिया का "बेताज बादशाह"
कभी ड्रग्स की दुनिया पर राज करने वाले "एल चापो" के घर को मेक्सिको की सरकार लॉटरी में दे रही है. देखिए इस मशहूर ड्रग्स व्यापारी के जेल से फरार होने की ये अनूठी तस्वीरें.
तस्वीर: Adriana Gomez/AP/picture alliance
जेल से फरार
वोकिम गुजमान लोएरा को उसके छोटे कद की वजह से "अल चापो" (छोटू) के नाम से जाना जाता है. वो कुख्यात सिनालोआ ड्रग्स कार्टेल का नेता था और उसे पहली बार ग्वातेमाला में 1993 में गिरफ्तार किया गया था. वहां से प्रत्यर्पण कर उसे मेक्सिको भेज दिया गया, जहां उसे ड्रग्स की तस्करी और हत्या के लिए 20 साल जेल की सजा सुनाई गई. लेकिन जनवरी 2001 में वो मेक्सिको की अधिकतम सुरक्षा वाली जेल से भाग निकला.
तस्वीर: AFP
आजादी का रास्ता
उसके बाद "अल चापो" 2014 तक फरार ही रहा. दुनिया के सबसे वांछित ड्रग्स व्यापारी को अंत में मेक्सिको के शहर मजात्लान में 2014 में गिरफ्तार किया गया, लेकिन 2015 में वो फिर भाग निकला. इस बार उसने भागने के लिए अल्तीप्लानो जेल के स्नान घर के नीचे खोदी गई एक सुरंग का इस्तेमाल किया. कैमरा फुटेज में वो नहाने के लिए अंदर जाता हुआ दिखाई दिया, लेकिन फिर बाहर नहीं आया.
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एक विस्तृत योजना
स्नान घर के नीचे लगभग 1.5 किलोमीटर लंबी सुरंग खोदी गई थी जिसके अंत में विशेष रूप से बिछाई गई पटरियों पर एक मोटरसाइकिल को फिट किया गया था. मोटरसाइकिल के आगे लोहे के दो ठेले लगाए गए थे. सिनालोआ कार्टेल पहले ही ड्रग्स को भेजने के लिए जमीन के नीचे निर्माण की कला में निपुण हो चुका था. इस तरह की सुरंगें बनाने में महीनों का समय और लाखों रुपए लगते हैं.
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निकलने का रास्ता
"अल चापो" इसी चोर दरवाजे से बाहर निकला जिसे एक आधे बने घर के अंदर छुपा दिया गया था. हालांकि उसकी आजादी क्षणभंगुर ही रही. वो एक तरह से अपने ही किंवदंतियों का शिकार हो गया.
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फिर से गिरफ्तार
"अल चापो" को सिर्फ छह महीनों बाद ही सिनालोआ में ही उसके अंगरक्षकों और सेना के कमांडो दल के बीच हुई गोलीबारी के बाद गिरफ्तार कर लिया गया. हॉलीवुड अभिनेता शॉन पेन को एक इंटरव्यू दे कर संभव है उन्होंने अपने पतन में खुद ही योगदान दे दिया. मेक्सिको के विदेश मंत्रालय ने मई 2016 में उसे प्रत्यर्पण कर अमेरिका भेजने की अनुमति दे दी.
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अमेरिका में सजा
अमेरिका में एक लंबी सुनवाई की बाद फरवरी 2019 में उसे हत्या, ड्रग्स की तस्करी, धन शोधन के षड़यंत्र में शामिल होने समेत सभी आरोपों का दोषी पाया गया. उसे बिना पैरोल की संभावना के आजीवन कारावास और उसके ऊपर से 30 साल और कारावास की सजा सुनाई गई.
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लोकप्रियता
धीरे धीरे ड्रग्स की दुनिया के इस कुख्यात बादशाह के नाम और जीवन के इर्द गिर्द एक "कल्ट" बन गया है. मेक्सिको के कार्टेल सरगनाओं के जीवन का जश्न मनाने वाली संगीत की एक उप विधा ही बन चुकी है. "अल चापो" को भी दर्जनों गीत समर्थित किए गए हैं, जिन्हें "नार्कोकोर्रिदोस" कहा जाता है. आप अल चापो टी-शर्ट और टोपियां भी खरीद सकते हैं.
तस्वीर: ULISES RUIZ AFP via Getty Images
कोड 701
2009 में फोर्ब्स पत्रिका ने "अल चापो" को दुनिया में सबसे अमीर लोगों की सूची में 701वां स्थान दिया. पत्रिका ने अनुमान लगाया कि उस समय उसकी संपत्ति एक अरब डॉलर थी. इसलिए उस से जुड़ी कई तरह की चीजों पर उसके प्रशंसकों ने 701 अंक लिखवा रखा है.
तस्वीर: ULISES RUIZ AFP via Getty Images
गुनाह हुए नजरअंदाज
आप "अल चापो" ब्रांडिंग की टेकीला बोतलें या मास्क भी खरीद सकते हैं. बहुत कम ही लोग इस बात से चिंतित लगते हैं कि वोकिम गुजमान एक खूनी ड्रग्स युद्ध के लिए जिम्मेदार था, जिसमें 2006 के बाद से 1,50,000 से भी ज्यादा लोग मारे गए. एक ब्रांड लाइन का पंजीकरण तो उसकी बेटी ने ही कराया हुआ है.
तस्वीर: ULISES RUIZ AFP via Getty Images
जीत सकते हैं उसका "सेफ हाउस"
कभी "अल चापो" द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाले एक "सेफ हाउस" को राज्य सरकार की एक लॉटरी में दिया जा रहा है. दो कमरे और गहरे पीले रंग की टाइलों की रसोई वाले इस घर में कुछ भी असाधारण नहीं है, सिवाय नहाने के एक टब के. इसे उठाया जा सकता है और इसके नीचे सुरंगों की एक जाल में प्रवेश करने का रास्ता छुपा हुआ है. (क्लॉडिया डेन)
तस्वीर: Adriana Gomez/AP/picture alliance
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एक्टिविस्टों के मुताबिक, जेलों में भीड़ बढ़ने की एक वजह लिंग से भी जुड़ी हुई है जिसकी अक्सर अनदेखी की जाती है, खासकर जब यह मामला जमानत, पैरोल, फरलो और नजरबंदी से संबंधित होता है. नारीवादी शोधकर्ता नवशरण सिंह कहती हैं, "कैदियों की कुल संख्या में महिलाएं पांच फीसदी से भी कम हैं. हम यह मानते हैं कि इन महिला और लैंगिक तौर पर अल्पसंख्यक विचाराधीन कैदियों से समाज को कोई गंभीर खतरा नहीं है. मुकदमे के नतीजे आने तक उन्हें हिरासत में नहीं रखने का विकल्प भी चुना जा सकता है.”
अधिकारियों ने पहले भी स्वीकार किया है कि जेलों में भीड़भाड़ एक समस्या है. हालांकि, उनका कहना है कि विचाराधीन कैदियों को जेल से रिहा करने के लिए ‘व्यवस्थागत परिवर्तन' की जरूरत होगी. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह फैसला शीर्ष राजनीतिक स्तर पर लिया जाना है. राज्य सरकारों को भी जेल की आबादी की समीक्षा करनी होगी और जेल की भीड़भाड़ के मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटना होगा.”