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भारत में घटा विकास तो बढ़ेगी दुनिया की चिंता

२६ सितम्बर २०१९

भारत के विकास की घटती रफ्तार का दुनिया भर में असर हो रहा है. खासतौर से तेल उत्पादन और बिक्री पर इसका खासा असर पड़ा है क्योंकि बीते दो दशकों से तेल उत्पादन के विकास की गाड़ी भारत के दम पर दौड़ती रही है.

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तस्वीर: AFP/Getty Images

भारत में तेल की खपत का बढ़ना इस साल बीते कई सालों और लंबे समय के अनुमानों के उलट रहा है. देश आर्थिक विकास की धीमी गति से जूझ रहा है दूसरी तरफ गाड़ियों की बिक्री में भारी कमी आई है.

भारत पिछले दो दशकों में पेट्रोलियम की मांग के बढ़ने के पीछे प्रमुख कारण रहा है इसलिए यहां की कमी दुनिया भर में उत्पादन और खपत के संतुलन को बिगाड़ रही है जिसका असर कीमतों पर भी नजर आ रहा है. भारत में विकास की गति धीमी पड़ने के कारण 2019 में दुनिया में तेल की खपत में होने वाली बढ़ोत्तरी कम से कम 100,000 बैरल प्रति दिन कम रहने की आशंका है. इसकी वजह से दुनिया में तेल की खपत में जो सालाना इजाफा होता है वह इस साल 10 लाख बैरल प्रति दिन या इससे भी कम रहा. 

पिछले दो दशकों में भारत की तेल खपत सालाना 5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी जबकि वैश्विक खपत में 1.5 फीसदी प्रति वर्ष का इजाफा हुआ. जाहिर है कि दुनिया में तेल की मांग के बढ़ने में भारत की बड़ी भूमिका रही है.

तस्वीर: Getty Images

स्टैटिस्टिकल रिव्यू ऑफ वर्ल्ड एनर्जी, बीपी, 2019 के मुताबिक दुनिया भर में 1998 से 2018 के बीच तेल की खपत में जो इजाफा हुआ उसमें 13 फीसदी हिस्सेदारी भारत की रही. 2013-18 के बीच तो यह हिस्सेदारी बढ़ कर 18 फीसदी तक पहुंच गई. बीते तीन महीनों में यह खपत पिछले साल के इसी वक्त के मुकाबले महज 1.45 फीसदी बढ़ी. अगर साल दर साल के हिसाब से देखें तो 2018 की शुरुआत की तुलना में करीब 8 फीसदी कम है. 

भारत के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत में निजी कार चलाने वालों की गैस की खपत में इजाफा साल दर साल 10 फीसदी से कम हो रहा है. पिछले साल की पहली तिमाही में यह दर 13 फीसदी थी.

डीजल का इस्तेमाल सड़कों और रेल से माल ढुलाई के अलावा कृषि और छोटे स्तर पर बिजली के उत्पादन में होता है. आम तौर पर इस ईंधन को आर्थिक गतिविधियों से ज्यादा जोड़ कर देखा जाता है. इसकी खपत महज 1.3 फीसदी की दर से बढ़ रही है जो कि 2018 की शुरुआत में 9 फीसदी थी.

इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास बहुत कम हुआ है. इसकी वजह है व्यापारिक निवेश और घरेलू खपत में कमी. घरेलू सवारी गाड़ियों की बिक्री जून, जुलाई अगस्त में 27 फीसदी घट गई जो बीते सत्रह सालों में सबसे बड़ी गिरावट है. गाड़ियों की बिक्री में आई गिरावट के कारण गाड़ी बनाने वाली कंपनियों, कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों और डिस्ट्रीब्यूटरों ने दसियों हजार से ज्यादा लोगों की छुट्टी कर दी है. इसका असर बाकी की अर्थव्यवस्था और श्रम बाजारों पर हो रहा है. कम बिक्री का असर ईंधन की खपत पर भी होगा जो अगले कुछ सालों में नजर आएगा.

भारत का केंद्रीय बैंक केवल इसी साल अब तक चार बार ब्याज दरों में कटौती कर चुका है और केंद्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कॉरपोरेट टैक्स की दरों में भारी कटौती का एलान किया है. हालांकि जब तक अर्थव्यवस्था अपनी रफ्तार नहीं पकड़ लेती, वह वैश्विक तेल बाजार और कीमतों को पीछे खींचने का बड़ा कारण बनी रहेगी.

एनआर/आरपी (रॉयटर्स)

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