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'भारत की समस्याएं अस्थायी'

११ सितम्बर २०१३

भारत में जारी आर्थिक उथल पुथल के बीच पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा है कि देश की समस्याएं अस्थाई हैं, उनका समाधान ढूंढा जा सकता है, लेकिन उसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है.

तस्वीर: Mahesh Jha

यशवंत सिन्हा एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल के साथ इस समय जर्मनी के दौरे पर हैं. बर्लिन में भारतीय अर्थव्यवस्था पर फ्रीडरिष एबर्ट फाइंडेशन की बुलाई गोष्ठी के बाद डॉयचे वेले के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने माना कि भारत इस समय नकारात्मक मुद्दों पर खबरों में है, लेकिन साथ ही कहा कि चुनाव के बाद आने वाली नई सरकार समस्याओं का समाधान ढूंढेगी. उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार भी स्थिति को सुधारने की कोशिश कर रही है, लेकिन देश के भीतर की आर्थिक और सामाजिक परिस्थिति और देश के बाहर की आर्थिक विषमताओं के कारण उसमें रुकावट पैदा हो रही है.

भारत इस समय भयानक आर्थिक मुश्किलें झेल रहा है. पिछले हफ्तों में मुद्रा बाजार में रुपये की दर तेजी से गिरी है, जिसका असर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ रहा है. कुछ आर्थिक विशेषज्ञ 1991 जैसी स्थिति के पैदा होने की बात कर रहे हैं, जब भारत के लिए भुगतान संकट पैदा हो गया था. भारत का विदेश व्यापार संतुलन घाटे में चल रहा है और उसके आयात और निर्यात का अंतर करीब 80 अरब डॉलर हो गया है. रुपये को सहारा देने के लिए सरकार को ऐसे कदम उठाने पर बाध्य होना पड़ा है, जिसका असर देश में होने वाले निवेश पर भी पड़ रहा है.

तस्वीर: Mahesh Jha

भारत का लोकतंत्र और स्वतंत्र न्यायपालिका विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षण है लेकिन 2जी और कोयला घोटालों जैसे भ्रष्टाचार के मामलों पर अदालतों में चल रही कार्रवाई ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के टकराव को सामने ला दिया है. स्थिति से निबटने के लिए समझौतावादी रवैया दिखाने के बदले दोनों ही अपनी प्रमुखता साबित करने की कोशिश कर रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता यशवंत सिंहा इसे नेतृत्व का संकट नहीं मानते हैं. वे कहते हैं कि भारत में जब जब कार्यपालिका कमजोर हुई है, न्यायपालिका और संसद हावी हो जाते हैं. उनका कहना है कि कार्यपालिका संसद के प्रति जवाबदेह है, जबकि न्यायपालिका कभी कभी अपनी सीमा लांघ जाती है.

गिरफ्तार जनप्रतिनिधियों को चुनाव न लड़ने देने के फैसले को उन्होंने सरासर गलत फैसला बताया और इसीलिए संसद को कानून बनाकर इस फैसले के प्रभाव को रद्द करना पड़ा. यशवंत सिंहा ने कहा, "आवश्यकता इस बात की है कि हमारे प्रजातंत्र में संविधान की हर संस्था अपने दायरे में रहकर काम करे, और खासकर दूसरे के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करे." उन्होंने कहा कि ऐसा होने पर ही स्थिरता आएगी और वर्तमान स्थिति से मुक्ति मिलेगी.

खाद्य सुरक्षा कानून की चर्चा करते हुए पूर्व वित्त मंत्री ने माना कि सस्ता खाना देने की कानूनी योजना से सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा. उन्होंने उम्मीद जताई कि सरकार इसके लिए संसाधन जुटा लेगी. उन्होंने कहा कि जबतक किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य मिलता रहे उनके लिए परेशानी की बात नहीं होगी, लेकिन कुछ लोगों ने इस बात की ओर ध्यान दिलाया है कि क्या हम हर वर्ष इतना अनाज उपजाते रहेंगे जितनी हमें आवश्यकता है. सूखे की स्थिति में समस्या पैदा हो सकती है, "इसलिए हमें हर मोर्चे पर सावधान रहने की जरूरत है, ताकि हम इसके वित्तीय भार को संभाल सकें और किसानों को भी नुकसान न हो."

रिपोर्ट: महेश झा, बर्लिन

संपादन: निखिल रंजन

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