27 साल के अमेरिकी नागरिक जॉन चाउ स्थानीय मछुआरों के साथ नाव पर नॉर्थ सेंटीनल द्वीप की तरफ गए थे. यहां कुछ आदिम समुदाय संसार से बिल्कुल अलग थलग प्राचीन तरीकों से अपना जीवन बिताते हैं. इनका बाहरी दुनिया से कोई संपर्क नहीं है. अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही जॉन चाउ ने द्वीप पर कदम रखा आदिवासियों ने उन पर तीरों की वर्षा कर दी. हिंद महासागर के इन द्वीपों पर रहने वाले लोगों से संपर्क रखने की सरकार की तरफ से सख्त मनाही है. ये लोग खुद को नितांत अलग रखना चाहते हैं.
पुलिस ने हत्या का मुकदमा दर्ज किया है और सात आरोपियों को इस मामले में गिरफ्तार भी किया गया है. वरिष्ठ पुलिस अधिकारी दीपक यादव ने बयान जारी कर कहा है, "इस मामले में जांच जारी है." चाउ ने हाल के दिनों में कई बार अंडमान का दौरा किया था और स्थानीय मछुआरों को पैसे दे कर आखिरकार इस सुदूर इलाके में जाने में सफल हुआ.
कुदरत की सबसे ज्यादा अहमियत समझने वाले आदिवासी दुनिया भर में अनूठे तरीकों से इसकी रक्षा कर रहे हैं.
तस्वीर: Toby Nicholas/ Survivalब्राजील की आवा जनजाति की महिलाएं बंदरों के अनाथ हो गए बच्चों का खयाल रखती हैं. इन दिनों उनके जंगलों में गैरकानूनी ढंग से पेड़ों की कटाई हो रही है. यहां तक कि जमीन की बढ़ती चोरी और हमलों के बीच उनका खुद का अस्तित्व खतरे में आ गया है.
तस्वीर: Domenico Pugliese/Survivalअर्जेंटीना की विची जनजाति के लोग नदी की सतह पर होने वाली मामूली हलचल के आधार पर मछली का शिकार करते हैं. आदिवासियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था सरवाइवल इंटरनेशनल का मानना है कि आदिवासियों ने समय के साथ अपना हुनर भी बढ़ाया है.
तस्वीर: John Palmer/Survivalआदिवासी जातियों को प्रकृति के संकेतों का पता होता है. अंडमान में रहने वाले मोकेन आदिवासियों की नजर आम लोगों की नजर से काफी तेज होती है. समुद्र तल में बैठी मछलियों और जीवों को खाने के लिए ढूंढ निकालने की उनमें अलग ही क्षमता है.
तस्वीर: James Morgan/Survivalप्रमोकेन समुदाय का इतिहास समुद्र, वायु और चन्द्रमा के चक्र की जानकारियों से भरा है. उन्हें समुद्र की खतरनाक लहरों के बारे में पता चल जाता है. 2004 में सुनामी से पहले ही मोकेन के बड़े बूढ़ों ने इस खतरे से आगाह कर दिया था और लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले गए थे.
तस्वीर: Cat Vintonजंगलों में रहना मुश्किल तो है लेकिन इन्हें शिकार करने की जुगत पता है. बोर्नियो के वर्षा वनों में रहने वाले आदिवासी जंगली सुअर के शिकार के लिए इस तरह के पाइप का इस्तेमाल कर खास पेड़ों से निकला जहर फूंकते हैं, जिससे जानवरों के दिल की धड़कन रुक जाती है.
तस्वीर: Victor Barro/Survival1960 तक बोर्नियो के आदिवासी जंगलों में खानाबदोश जीवन जीते थे. वे पत्तियों और पेड़ों की डंठलों का इस्तेमाल कर एक जटिल सिग्नल सिस्टम के जरिए एक दूसरे को संदेश भेजा करते थे. उनकी भाषा में इसे ऊरू कहते हैं. खेती और पनबिजली बनाने के लिए जंगल काट दिए गए हैं.
तस्वीर: Sophie Grig/Survivalसमय के साथ आदिवासियों ने अपने इलाज के देसी तरीके और दवाइयां भी खोज निकाली हैं. पेड़ की छाल से आंखों का इलाज और खुशबूदार पत्तियों से जुकाम का इलाज. पश्चिमी चिकित्सा की कई औषधियों में इस्तेमाल होने वाले तत्वों की खोज आदिवासियों ने ही की है.
तस्वीर: William Milliken/Survivalतंजानिया के हजदा आदिवासी समुदाय के हथियार उनके माहौल और जरूरतों के अनुकूल बनाए गए हैं. अपने धनुष का तार वे पशुओं के ऊतकों से और बाण लकड़ी से बनाते हैं. बाण की नोक को वे झाड़ियों से निकाले गए जहरीले अर्क में डुबोते हैं.
तस्वीर: Joanna Eede/Survival Internationalकुछ पशु पक्षियों से हजदा जाति के लोगों ने दोस्ती भी कर ली है. ये चिड़ियां पेड़ों पर फुदक फुदक कर उन्हें मधुमक्खियों के छत्ते का पता बताती हैं. मधुमक्खियों को धुएं से भगाकर शहद निकाला जाता है. इन चिड़ियों को इनाम में बचा हुआ शहद मिलता है.
तस्वीर: Joanna Eede/Survival Internationalआदिवासियों को अपने आसपास के पशुओं की आदतों और आवाजों का भी खूब अंदाजा होता है. जानवरों को झाड़ियों से बाहर बुलाने के लिए वे अक्सर इसी हुनर का इस्तेमाल करते हैं. साइबेरिया के शिकारी बारहसिंघे के बच्चे की ऐसी आवाज निकालते हैं कि जैसे वह अपनी मां को पुकार रहा हो.
तस्वीर: Kate Eshelby/Survivalसाइबेरिया के आदिवासियों के बीच बारहसिंघा सबसे पसंदीदा शिकार है. वे इसे कच्चा, उबालकर या ठंडा करके भी खाते हैं. खून को भी अलग नहीं करते जिसमें अच्छी मात्रा में विटामिन होता है. बारहसिंघे के दूध में भैंस के दूध के मुकाबसे 6 गुना ज्यादा वसा होती है.
तस्वीर: Steve Morganआवा आदिवासी इस बात का भी खयाल रखते हैं कि वे संसाधनों का जरूरत भर ही इस्तेमाल करें.
तस्वीर: Toby Nicholas/ Survival सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, "उसने 14 नवंबर को भी वहां जाने की कोशिश की थी लेकिन पहुंच नहीं पाया था. दो दिन बाद वह खूब तैयारी के साथ वहां गया, उसने बीच रास्ते में ही बोट छोड़ दी और कानू लेकर अकेला ही द्वीप पर चला गया. उस पर तीरों से हमला हुआ लेकिन वह चलता रहा. मछुआरों ने उसके गले में रस्सी बांध कर उसे घसीटते देखा. वे डर कर वहां से भाग गए और अगले दिन जब आए तो समुद्र किनारे उसका शव मिला."
अंडमान में 400 से ज्यादा जरावा समुदाय के लोग रहते हैं. सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्हें बाहरी लोगों से डर लगता है. अकसर स्थानीय अधिकारियों को रिश्वत दे कर लोग उनके पास जाने की कोशिश करते हैं. हालांकि ये लोग इनके संपर्क में नहीं आना चाहते और उन्हें हमेशा यही लगता है कि बाहरी लोग उनके इलाके में घुस कर कब्जा कर लेंगे.
अंडमान के नॉर्थ सेंटीनल आइलैंड को भारतीय नौसेना की भी पहुंच से बाहर रखा गया है ताकि इन लोगों को बचाया जा सके. अब इनकी तादाद 150 के करीब ही है. कुछ साल पहले कुछ विदेशी लोगों ने इन आदिवासियों का वीडियो बना लिया था जिस पर काफी बवाल मचा था.
एनआर/एमजे (एएफपी)