अर्थव्यवस्था में सुस्ती के साथ साथ सऊदी तेल संकट और अन्य वैश्विक कारकों ने भारतीय शेयर बाजार को अस्थिर बना दिया है. डूबते-उतरते बाजार में निवेशकों के लाखों करोड़ रूपये डूब चुके हैं.
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मोदी सरकार सत्ता में सौ दिन पूरे होने पर अपने कामों का हिसाब देते हुए अपनी पीठ खुद ही थपथपा रही है. हालांकि इन्हीं सौ दिनों में देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती की खबरों ने सरकार के जोश में भी सुस्ती लाने का काम किया है. इस दौरान सबसे ज्यादा नुकसान शेयर बाजार में निवेश करने वालों को पहुंचा है. निवेशकों के अब तक लगभग 14 लाख करोड़ रूपये डूब चुके हैं.
भारी बिकवाली का दौर
मोदी सरकार की वापसी से झूमा बम्बई शेयर बाजार का सूचकांक 4 जून को 40 हजार की रिकॉर्ड ऊंचाई को पार कर गया था लेकिन उसके बाद गिरावट का ऐसा दौर शुरू हुआ है जो अब तक जारी है. बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में 30 मई के बाद से लगभग 14 लाख करोड़ की कमी आई है. घरेलू और वैश्विक परिस्थितिओं को देखते हुए जानकार बाजार में और गिरावट देख रहे हैं.
दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनियों में शामिल सऊदी अरामको के संयंत्रों पर 14 सितंबर को ड्रोन हमला किया गया. इससे इन संयंत्रों को काफी नुकसान पहुंचा और वैश्विक स्तर पर तेल की आपूर्ति में पांच फीसदी की अस्थायी कमी आ गई है. स्थिति जल्द सामान्य नहीं होगी तो भारतीय बाजारों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. अगर तेल की कीमतों में वृद्धि अधिक दिनों तक रह जाती है तो इसका सीधा असर तेल के खुदरा विक्रेताओं, पेंट, टायर कंपनियों पर देखने को मिलेगा. इससे जुड़ी कंपनियों के स्टॉक और हल्के हो सकते हैं.
विदेशी निवेशक बने बिकवाल
केंद्र सरकार ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों यानी एफपीआई पर बजट में सरचार्ज बढ़ा दिया था, इसके बाद विदेशी निवेशकों ने बाजार में भारी बिकवाली की. सरकार ने निवेशकों की नाराजगी दूर करते हुए बढ़ा हुआ सरचार्ज वापस ले लिया है, इसके बावजूद विदेशी निवेशकों की बिकवाली थम नहीं रही है.
जानकार कहते हैं कि विदेशी निवेशकों की हालिया बिकवाली की असली वजह चीन और अमेरिका के बीच जारी तनाव है. निवेश सलाहकार रितेश कुमार का मानना है कि अमरीका-चीन ट्रेड वॉर में नरमी आने से विदेशी निवेशकों की वापसी हो सकती है क्योंकि घरेलू बाजार से विदेशी निवेशकों की निकासी सिर्फ बजट में बढ़ाए गए सरचार्ज की वजह से नहीं थी.
स्टार्टअप कंपनियों में पैसा लगाने वाले बड़े निवेशक
भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में अब देसी-विदेशी कंपनियां दिल खोल कर निवेश कर रही हैं. अमेरिकी, जापानी और भारतीय कंपनियां तो बड़ी निवेशक रही ही हैं, अब चीनी कंपनियां भी बढ़-चढ़ कर पैसा लगा रही हैं.
तस्वीर: Getty Images
सिकोइया कैपिटल
कैलिफोर्निया की कंपनी सिकोइया कैपिटल ने साल 2018 में 34 भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में निवेश किया. सिकोइया ने ओयो रूम्स, ग्रोफर्स, बायजू, जस्ट डायल, फ्रीचार्ज, जोमैटो, ओला कैब, अर्बन लैडर और म्यू सिगमा जैसे कई स्टार्टअप में निवेश किया है.
सॉफ्ट बैंक
जापानी कंपनी सॉफ्ट बैंक स्टार्टअप की दुनिया में एक जाना माना नाम है. साल 2011 में भारतीय बाजारों में दाखिल हुई सॉफ्ट बैंक अब तक कई भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में निवेश कर चुकी है. सॉफ्ट बैंक ने इनमोबी, स्नैपडील, हाउसिंग, ओयो, पेटीएम, फ्लिपकार्ट, हाइक मैंसेजर और ग्रोफर्स में काफी निवेश किया.
एसेल पार्टनर
अमेरिकी कंपनी एसेल पार्टनर साल 1983 में बनी थी. 2018 में कंपनी ने करीब 33 भारतीय स्टार्टअप
में निवेश किया. कंपनी ने फ्लिपकार्ट, हॉलीडे आईक्यू, कवरफॉक्स, स्विगी, अर्बन क्लैप और बुक माय शो जैसी मशहूर कंपनियों में निवेश किया है.
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चिराते वेंचर्स
चिराते वेंचर्स की पेरेंट कंपनी है- आईडीजी वेंचर्स. साल 1996 में बनी आईडीजी वेंचर्स का मुख्यालय सेन फ्रांसिस्को में है. साल 2018 में कंपनी ने भारत के 20 स्टार्टअप में निवेश किया. कंपनी ने लेंसकार्ट, यात्रा डॉटकॉम, जिवामी, मिंत्रा, रेंटऑनमोजो, फर्स्ट क्राई, फ्लिपकार्ट और पॉलिसी बाजार जैसी कंपनियों में निवेश किया है.
सैफ पार्टनर्स
एशियाई बाजारों में काम करने वाली सैफ पार्टनर्स एक निजी इक्विटी फर्म है, जिसके भारत, चीन और हांगकांग में दफ्तर हैं. कंपनी स्टार्टअप कंपनियों के लिए एक बड़ी वेंचर कैपिटलिस्ट है, कंपनी ने बुक माय शो, मेक माय ट्रिप, जस्टडायल डॉट कॉम, होमशॉप 18, पेटीएम, जोवी और प्रॉपटाइगर जैसे स्टार्टअप में पैसा लगाया.
कलारी कैपिटल
कलारी कैपिटल एक वेंचर कैपिटल फर्म है जो स्टार्टअप के शुरुआती दौर में निवेश करती है. कंपनी मुख्य रूप से तकनीक, सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट्स, ई-कॉमर्स, एजुकेशन, हेल्थकेयर आदि कंपनियों में निवेश करती है. कलारी कैपिटल ने स्नैपडील, योरस्टोरी, पॉपएक्सो, स्कूपव्हूप और कैशकरो जैसी कंपनियों में निवेश किया. 2018 में कंपनी ने 17 भारतीय स्टार्टअप में निवेश किया
नेक्सस वेंचर कैपिटल
इस वेंचर कैपिटल फर्म का दफ्तर अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में है. कंपनी ने स्नैपडील, शॉपक्लूज और क्राफ्ट्सविला में निवेश किया है. कंपनी शुरुआती दौर में अधिक निवेश करती है. साल 2018 में कंपनी ने भारत के 17 स्टार्टअप में निवेश किया.
मैट्रिक्स पार्टनर्स
अमेरिकी प्राइवेट इक्विटी फर्म मैट्रिक्स पार्टनर्स आम तौर पर भारतीय और अमेरिकी कंपनियों में निवेश करती है. कंपनी के पोर्टफोलियो में सॉफ्टवेयर, कम्यूनिकेशन, सेमीकंडक्टर और डाटा स्टोरेज के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां शामिल हैं. 2018 में मैट्रिक्स ने भारत के 15 स्टार्टअप में निवेश किया. इसमें ओला, क्विकर, प्रेक्टो, डेलीहंट, लाइमरोड और ट्रीबो जैसे स्टार्टअप शामिल हैं.
ओमिड्यार नेटवर्क
ओमिड्यार नेटवर्क ईबे के संस्थापक पियरे ओमिड्यार और उनकी पत्नी पैम ओमिड्यार ने साल 2004 में बनाई थी. कंपनी मुख्य तौर पर गैरलाभकारी संस्थाओं और कंपनियों में निवेश करती है. कंपनी का जोर एजुकेशनल और फाइनेंशियल सर्विसेज क्षेत्र की स्टार्टअप कंपनियों में अधिक है. 2018 में कंपनी ने 15 स्टार्टअप में निवेश किया.
शुनवेई कैपिटल
चीन की कंपनी शुनवेई कैपिटल ने साल 2018 में 12 भारतीय स्टार्टअप में निवेश किया. कंपनी ने जस्टमनी, कैशिफाई, वोकल, समोसा लैब्स जैसे स्टार्टअप में काफी निवेश किया है.
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घबराए हुए हैं छोटे निवेशक
बाजार में उतार चढ़ाव का सबसे नकारात्मक असर छोटे निवेशकों पर पड़ा है. कई निवेशकों की रकम आधी से भी कम हो गयी है. पिछले एक साल में बाजार में उछाल कम और गिरावट ही अधिक आई है. लगातार जारी तेज गिरावट के चलते छोटे निवेशकों को बाज़ार से निकलने का मौका भी नहीं मिला. शेयर ब्रोकिंग फर्म एंजेल ब्रोकिंग के अमित रमन का मानना है कि रिटेल निवेशक इस समय घबराया हुआ है. इसके चलते वह इक्विटी ही नहीं बल्कि म्यूच्यूअल फंड से भी दूरी बना रहा है. अमित रमन का कहना है कि गिरावट के समय लोग अपना एसआईपी (नियमित अंतराल पर किया जाने वाला निवेश) बंद कर देते हैं जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए. हर बड़ी गिरावट में निवेश करने वाले पियूष सिंह कहते हैं कि उछाल की उम्मीद में उनका निवेश डूबता चला गया, हर गिरावट को आखिरी गिरावट समझने की उनकी भूल ने उनकी सारी बचत लील ली.
पिछले पांच साल के दौरान जोरदार उछाल दिखाने वाले ऑटो क्षेत्र पर मंदी की तेज मार पड़ रही है. इस सेक्टर में हाल फिलहाल में निवेश करने वालों को काफी नुकसान उठाना पड़ा है. रिटेल निवेशकों का सबसे चहेता स्टॉक मारुति पिछले 1 साल में लगभग 25 फीसदी तक गिर चुका है. इस क्षेत्र के कुछ स्टॉक 50 फीसदी से अधिक तक टूट चुके हैं. फार्मा, धातु और नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनीज, एनबीएफसी क्षेत्र के कई स्टॉक्स में निवेशकों ने अपनी आधी पूंजी गंवा दी है. रितेश कुमार कहते हैं कि अपने इसी बुरे अनुभव के चलते लोग अब शेयर में निवेश को असुरक्षित मानकर डरे हुए हैं. वैसे उनके अनुसार, "लंबे समय के निवेशकों के लिए अभी बाजार में बढ़िया मौका है."
विदेशी निवेशकों के भरोसे के मामले में भारत एक सीढ़ी ऊपर चढ़ा है. एटी केर्नी एफडीआई कॉन्फिडेंस इंडेक्स में इसका जिक्र किया गया है.
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1. अमेरिका
सीधे विदेशी निवेश के लिए भरोसेमंद माहौल के मामले अमेरिका लगातार पांचवें साल सबसे ऊपर है. बड़ा बाजार और बिजनेस फ्रेंडली नीतियों के कारण अमेरिका पंसदीदा ठिकाना बना हुआ है.
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2. जर्मनी
यह पहला मौका है जब जर्मनी इतना ऊपर आया है. बिजनेस फ्रेंडली माहौल और बेहतर आर्थिक संभावनाओं के साथ साथ ब्रेक्जिट का भी जर्मनी को फायदा मिला है.
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3. चीन
जब से यह इंडेक्स शुरू हुआ तब से चीन हमेशा टॉप-3 में रहा है. स्थिर अर्थव्यवस्था और सरकार द्वारा लालफीताशाही में भारी कटौती के चलते बीजिंग विदेशी निवेशकों को लुभाता है.
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4. यूनाइटेड किंगडम
यूके एक सीढ़ी ऊपर चढ़ा है. ब्रेक्जिट के बाद वहां के घरेलू बाजार में बड़ा बदलाव आएगा. सरकार भी विदेशी निवेशकों के खींचने के लिए व्यापक बदलाव करेगी. इन्हीं उम्मीदों ने यूके को ऊपर खींचा है.
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5. कनाडा
आधारभूत ढांचे में सरकारी खर्च और विदेशी कंपनियों के अधिग्रहण की आसान राह के चलते कनाडा पांचवें साल नंबर पांच पर बना हुआ है.
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6. जापान
आईटी और इलेक्ट्रॉनिक उद्योग की बात आते ही विदेशी निवेशकों की आंखें जापान पर टिक जाती हैं. आने वाले समय में जापान सरकार नियमों को और लचीला बनाने का संकेत दे रही है.
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7. फ्रांस
फ्रांस सरकार के हालिया सुधार कार्यक्रमों के चलते देश की रैंकिंग कुछ बेहतर हुई है. लेकिन राष्ट्रपति चुनाव रंग में भंग डाल सकते हैं.
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8. भारत
लगातार दूसरे साल भारत टॉप-10 में शामिल हुआ है. इस बार देश एक पायदान ऊपर चढ़ सातवें नंबर पर आया है. तेज आर्थिक विकास, टैक्स सुधार और एफडीआई संबंधी नियमों की उदारता का भारत का फायदा मिला है.
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9. ऑस्ट्रेलिया
ये महाद्वीपीय देश भी लगातार सातवीं बार टॉप-10 में है. दीर्घकालीन उदार नीतियों के चलते ऑस्ट्रेलिया निवेशकों को लुभाने में सफल हो रहा है.
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10. सिंगापुर
कारोबार के लिए बढ़िया माहौल और दक्षिण पूर्व एशिया के शिपिंग व फाइनेंशियल हब के रूप में पहचान का फायदा सिंगापुर को अब भी मिल रहा है. एशियाई निवेशक सिंगापुर को ज्यादा पसंद करते हैं.