कुल दूध उत्पादन में भारत का दुनिया में पहला स्थान है लेकिन प्रति पशु उत्पादन में देश सबसे पीछे है. अब कुछ कंपनियां किसानों को जागरुक कर उनके प्रति पशु दूध उत्पादन स्तर को बढ़ाने में मदद कर रही हैं.
विज्ञापन
पूरे विश्व में भारत दूध उत्पादन में तो सबसे आगे है, लेकिन प्रति पशु दूध उत्पादन में सबसे पीछे है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में दूध उत्पादन का औसत महज तीन लीटर प्रति पशु है. वहीं ये औसत ऑस्ट्रेलिया में 16 और इस्राएल में 36 लीटर प्रति पशु है.
प्रति पशु दूध उत्पादन में भारत को अगुवा बनाने की दिशा में काम कर रहे मू-फार्म के संस्थापक परम सिंह कहते हैं, "हम दूध उत्पादन में सबसे आगे इसलिए हैं कि हमारे पास 30 करोड़ पशु हैं. पशु और पशु पालकों के उत्थान के लिए यहां काम तो बहुत हो रहे हैं, लेकिन उन कामों का नतीजा जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहा है."
परम सिंह ने कहा, "मू-फार्म किसानों की आय में कम से कम 20 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए 2020 तक भारत के दो लाख डेयरी किसानों को प्रशिक्षित करेगी. वह पशु पोषण जैसे क्षेत्रों में किसानों के कौशल को बढ़ाने के लिए मदद करेगी."
गधी के दूध की बढ़ी मांग, हजारों में मिलता है एक लीटर
दक्षिण पूर्वी यूरोप के देश मोंटेनीग्रो में इन दिनों गधी के दूध की मांग खासी बढ़ गई है. इस दूध को बेहद स्वास्थ्यवर्धक बताया जा रहा है और एक लीटर 50 यूरो यानी साढ़े तीन हजार रुपए तक में बिक रहा है.
तस्वीर: Reuters
नई जिंदगी
समाचार एजेंसी एएफपी ने खबर दी है कि गधी के दूध की बढ़ती मांग को देखते हुए मोंटेनीग्री में गधों को एक नई जिंदगी मिल गई है.
तस्वीर: DW/G. Tedla
सेहत के लिए
गधी का दूध खरीदने वालों का कहना है कि यह सेहत के लिए बहुत ही अच्छा होता है.
तस्वीर: picture alliance/WILDLIFE
कम मिलता है दूध
डारको बताते हैं कि गधी से उतना दूध हासिल नहीं किया जा सकता है जैसे गाय और भैंस से मिलता है. यह जानवर बहुत कम मात्रा में दूध देता है.
तस्वीर: Getty Images/University of Idaho/P. Schofield
त्वचा के लिए फायदेमंद
गधों के एक फार्म के मालिक डारको स्वेलजिक का कहना है, “ये दूध त्वचा के लिए बहुत अच्छा होता है. और इसके इस्तेमाल से कई बीमारियों से बचा जा सकता है.”
तस्वीर: DW
फायदा हुआ
वेलेरिया मार्कोविक नाम की महिला का कहना है कि उनके बेटे को कई तरह की एलर्जी थी और गधी के दूध से उनके बेटे को काफी फायदा हुआ है.
तस्वीर: Reuters/P. Bulawayo
गधी के दूध से स्नान
वेलेरिया का कहना है कि उन्होंने ये भी सुन रखा है कि दुनिया में सुंदरता की मिसाल कही जाने वाली क्लियोपेट्रा गधी के दूध से नहाती थी.
तस्वीर: imago/United Archives
रिसर्च के संकेत
साइप्रस यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर फोटिस पापादेमस का कहना है कि रिसर्च से पुख्ता संकेत मिलते हैं कि कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए गधी का दूध फायदेमंद होता है.
तस्वीर: Munaf Al-saidy
सबसे महंगा चीज
वैसे गधी के दूध को मोंटेनीग्रो के पड़ोसी देश सर्बिया में भी पसंद किया जाता है. वहां इससे बने 50 ग्राम चीज को लगभग 48 यूरो में बेचा जाता है. इसे दुनिया का सबसे महंगा चीज माना जाता है. (फोटो सांकेतिक है)
मोंटेनीग्रो में 2010 के आंकड़ों के मुताबिक गधों की संख्या 500 थी. लेकिन गधों के एक फार्म के मालिक डारको का कहना है कि अब सिर्फ 150 गधे बचे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. Gul
मशीनों ने ली जगह
वो बताते हैं कि दशकों पहले मोंटेनीग्रो में लगभग हर घर में गधे पाए जाते थे, लेकिन वक्त के साथ इनकी जगह काम करने के लिए मशीनें इस्तेमाल की जाने लगीं.
तस्वीर: DW/M. Akinou
उम्मीद
वो उम्मीद करते हैं कि इस जानवर के प्रति अब लोगों में जागरूकता पैदा होगी जिससे इसे बचाने में मदद मिलेगी.
तस्वीर: Reuters
11 तस्वीरें1 | 11
परम सिंह मू-फार्म के जरिए पंजाब के 10 हजार किसानों से संपर्क स्थापित कर चुके हैं. मू-फार्म की टीम रोजाना किसानों से संपर्क स्थापित करती है और उसका विवरण मू-फार्म ऐप पर अपलोड किया जाता है. इससे किसानों में अपने पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ रही है. खुद किसान मान रहे हैं कि मू-फार्म से जुड़कर पशुपालन पर होने वाला उनका खर्च कम हुआ है और दूध उत्पादन बढ़ा है.
नए प्रयोगों के लिए नौजवानों को टीम में जोड़ने की बात कहते हुए परम सिंह ने कहा, "शुरू में जिन चीजों पर फोकस किया गया है, वे हैं एनीमल ब्रीडिंग, फीडिंग और फार्म मैनेजमेंट. पशु और पशु पालकों की समस्त जानकारी को एक ही मंच पर लाने के लिए मू-फार्म ऐप तैयार किया."
परम सिंह ने बताया, "हमारे प्रशिक्षक किसानों के कौशल स्तर को बढ़ाने के लिए जरूरी सुविधाएं दे रहे हैं, जिसे ग्राम स्तर के उद्यमियों के माध्यम से पहुंचाया जा रहा है. हम फिलहाल उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, हरियाणा और ओडिशा पर ध्यान दे रहे हैं."
सफेद सोना है ऊंटनी का दूध
यूनाइटेड अरब अमीरात को लोग बस तेल और विशाल इमारतों के लिए जानते हैं. लेकिन वहां एक चीज और मिलती है जिसकी दुनिया दीवानी है. ऊंटनी का दूध.
तस्वीर: DW/M. Marek
सबसे ज्यादा दूध दुबई में
ऊंटनी का दूध सबसे ज्यादा दुबई में होता है. शहर से आधे घंटे की दूरी पर एमिरेट्स इंडस्ट्री फॉर कैमल मिल्क्स एंड प्रॉडक्ट्स का सेंटर है जहां 2006 से उत्पादन हो रहा है.
तस्वीर: DW/M. Marek
विशाल जगह है
दुबई के निकट ऊंट के दूध का यह फार्म 4200 एकड़ में फैला है. कुल इलाका डेड़ वर्गकिलोमीटर का है यानी 210 फुटबॉल मैदान के बराबर.
तस्वीर: DW/M. Marek
ऊंट सामाजिक प्राणी है
एक घेरे में 25 ऊंट रखे जाते हैं. जैसे गायों को तबेले में बांध कर रख सकते हैं, ऊंट के साथ ऐसा नहीं है. वे अपने समूह में ही रहना पसंद करते हैं.
तस्वीर: DW/M. Marek
खाता-पीता जानवर
ऊंट एक खाता-पीता जानवर है. उन्हें चारे के साथ-साथ गाजर भी खूब खिलाई जाती हैं.
तस्वीर: DW/M. Marek
समझदार है ऊंट
ऊंट बहुत समझदार प्राणी होता है लेकिन जिद्दी भी. दूध आप तभी निकाल सकते हैं जब उनके बच्चों का पेट भर जाए. दूध निकालते वक्त भी बच्चे आसपास ही रहेंगे.
तस्वीर: DW/M. Marek
एक दिन में सात किलो
एक ऊंटनी एक दिन में अधिकतम सात किलो दूध दे सकती है. यूरोप की गायों के मुकाबले तो यह कुछ भी नहीं है जहां एक गाय 25 से 40 लीटर तक दूध देती है.
तस्वीर: DW/M. Marek
चलना फिरना जरूरी
दूध दिन में दो बार निकाला जाता है. इस बीच वे अहाते में घूम फिर सकते हैं.
तस्वीर: DW/M. Marek
ज्यादा सेहतमंद दूध
इस कैंप से रोजाना करीब 6 हजार लीटर दूध निकलता है. ऊंट के दूध में गाय से आधा फैट होता है. विटामिन सी तीन से पांच गुना ज्यादा होता है और कैल्शियम भी.
तस्वीर: DW/M. Marek
पाउडर भी बिकता है
कुल उत्पादन का दो तिहाई हिस्सा तो वैसे ही बेच दिया जाता है. बाकी दूध से पाउडर बनाया जाता है.
तस्वीर: DW/M. Marek
चॉकलेट
ऊंट के दूध से चॉकलेट बनाना 2008 से शुरू हुआ है. हर साल करीब 100 टन चॉकलेट बनाई जा रही है लेकिन इसके लिए दूध को ऑस्ट्रिया भेजा जाता है.
तस्वीर: DW/M. Marek
तीन देशों का काम
ऑस्ट्रिया में चॉकलेट मास बनाकर उसे वापस यूएई लाया जाता है. फिर कोकोआ आइवरी कोस्ट से आता है और वनीला मैडागास्कर से. तब दुबई में चॉकलेट बनता है.
तस्वीर: DW/M. Marek
अल नासमा
70 ग्राम के पैकेट की कीमत है छह यूरो. चॉकलेट बनाने वाली कंपनी का नाम अल नासमा है जिसमें 49 फीसदी हिस्सा ऑस्ट्रियाई कंपनी का है.