मलेरिया की एक दवा प्रतिरोधी किस्म भारत और म्यांमार के बॉर्डर तक पहुंच गई है. विशेषज्ञ आशंका जता रहे हैं कि प्रचलित दवाओं से ठीक ना होने वाला रोग महामारी का रूप ले सकता है.
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दक्षिण पूर्व एशिया के कई इलाकों में मलेरिया की ड्रग रेसिस्टेंट किस्म फैल चुकी है. यह रोग अब म्यांमार की ओर से भारत की सीमा पर दस्तक दे रहा है. हाल ही में प्रकाशित स्टडी बताती है कि मलेरिया की सबसे आम दवा आर्टेमिसिनिन का इस किस्म पर असर नहीं होता.
यह स्टडी लांसेट इंफेक्शस डिजीजेस जर्नल में प्रकाशित हुई है. इसमें पाया गया कि मलेरिया पैदा करने वाले परजीवियों की सबसे जानलेवा किस्म प्लाज्मोडियम फाल्सिपेरम अब दक्षिण पूर्व एशिया के करीब 39 फीसदी इलाके में सामान्य रूप से पाई जाने लगी हैं. वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अगर मलेरिया की यह दवारोधी किस्म भारत पहुंच जाती है तो परिणाम भयानक हो सकते हैं.
वेलकम ट्रस्ट में इंफेक्शन एंड इम्यूनोबायोलॉजी के प्रमुख प्रोफेसर माइक टर्नर बताते हैं, "ड्रग रेसिस्टेंट मलेरिया परजीवी की शुरुआत 1960 के दशक में दक्षिण पूर्व एशिया में हुई. फिर ये म्यांमार से होते हुए भारत और दुनिया के दूसरे देशों में फैले जिसके कारण लाखों लोगों की जानें जा चुकी है." प्रोफेसर टर्नर कहते हैं, "नयी रिसर्च दिखाती है कि इतिहास खुद को दोहरा रहा है."
स्टडी में यह चेतावनी भी दी गई है कि मलेरिया के फैलने की दर "भयानक" है. मलेरिया परजीवियों की यह प्रतिरोधी किस्म म्यांमार के होमालिन शहर में पाई गई है, जो कि भारतीय सीमा से केवल 25 किलोमीटर दूर है.
इस स्टडी के सीनियर ऑथर और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ट्रॉपिकल मेडिसिन रिसर्च युनिट के ही डॉक्टर चार्ल्स वुड्रो बताते हैं, "म्यांमार को आर्टेमिसिनिन से बेअसर किस्म के खिलाफ जंग की आखिरी सीमा माना जाता है, क्योंकि इसके आगे फैलने पर यह प्रतिरोधी किस्म को पूरे विश्व में ले जा सकता है."
अनुमान है कि हर साल मलेरिया के कारण 6 लाख से भी ज्यादा लोगों की जान चली जाती है, जिनमें से ज्यादातर पांच साल से कम उम्र के बच्चे हैं.
आरआर/आईबी(डीपीए)
मलेरिया: मौत के लिए एक ही डंक काफी
एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
तस्वीर: AP
मच्छर से मलेरिया
अफ्रीका का सबसे खतरनाक जीव सिर्फ 6 मिलीमीटर लंबा है. इसे मादा एनोफेलीज मच्छर के नाम से जाना जाता है. यह संक्रामक रोग मलेरिया के लिए जिम्मेदार है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल दुनिया में 10 लाख लोगों की मौत मलेरिया के कारण होती है. कंपकपी के साथ तेज बुखार मलेरिया के संकेत हैं. इस बीमारी के कारण बच्चों की मौत की संभावना सबसे अधिक होती है.
मलेरिया पीड़ित को अगर मच्छर काट ले तो वह मलेरिया के विषाणु को औरों तक फैला देता है. शोधकर्ताओं ने इस मच्छर में विषाणु को प्रोटीन से चिह्नित किया है जो हरे रंग में चमकता है. लार ग्रंथि में जाने से पहले मच्छर की आंत में पैरासाइट प्रजनन करता है.
मलेरिया पैरासाइट का जैविक नाम प्लाज्मोडियम है. बीमारी की शोध के लिए वैज्ञानिकों ने एनोफेलीज मच्छरों को संक्रमित किया और उसके बाद पैरासाइट को लार ग्रंथि से अलग किया. इसमें पैरासाइट का संक्रामक रूप जमा है. इस तस्वीर में दाहिनी तरफ मच्छर है और बीच में है हटाई गई लार ग्रंथि.
तस्वीर: Cenix BioScience GmbH
विषाणु चक्र
मलेरिया पैरासाइट घुमावदार होते हैं, वो एक दायरे में घुमते हैं. यहां शोधकर्ताओं ने उन्हें तरल पदार्थ के साथ शीशे के टुकड़े पर रखा. पैरासाइट को यहां पीले रंग से चिह्नित किया गया है. और जिस पथ पर घूमते हैं उसे नीले रंग से पहचाना जा सकता है. वो तेजी से चलते हैं. एक पूरा चक्कर लगाने के लिए सिर्फ 30 सेकेंड लेते हैं. बाधा पहुंचने पर वे अपने घुमावदार पथ से हट जाते हैं. सीधी रेखा पर भी चल सकते हैं.
इंसान के शरीर में दाखिल होने के बाद विषाणु मनुष्य के लीवर में कुछ दिनों के लिए ठहर जाता है. इस दौरान मरीज को पता नहीं चलता. प्लाज्मोडियम मरीज की लाल रक्त कणिकाओं को तेजी से प्रभावित करता है, और लीवर में इस परजीवी की संख्या तेजी से बढ़ती चली जाती है. लीवर में यह मेरोजोइटस का रूप लेता है, जिसके बाद रक्त कोशिकाओं पर हमला शुरू हो जाता है और इंसान बीमार महसूस करने लगता है.
तस्वीर: AP
शरीर में बढ़ता पैरासाइट
रक्त कोशिका में दाखिल होने के बाद पैरासाइट एक से तीन दिन के भीतर बढ़ने लगता है. इसके बाद वे लाल रक्त कणिका या लीवर कोशिका में प्रवेश कर जाता है. यहां परजीवी का विखंडन होता है. परजीवियों की संख्या बढ़ने पर कोशिका फट जाती है. नतीजतन इंसान को ठंड के साथ बुखार आने लगता है. माइक्रोस्कोप में इसे आसानी के साथ देखा जा सकता है. बैंगनी रंग का यह रोगाणु अलग नजर आ रहा है.
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मच्छरदानी में मौत
शोधकर्ताओं ने एक ऐसी मच्छरदानी बनाई है जिसमें जाल में कीटनाशक लगे हुए हैं. मच्छरदानी के संपर्क में आते ही मच्छर मर जाते हैं.
तस्वीर: Edlena Barros
दवा का छिड़काव
जब मलेरिया का प्रकोप हद से ज्यादा बढ़ जाता है तो उसके लिए दूसरे उपाए किए जाते हैं. मुंबई की इस तस्वीर में मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव किया जा रहा है. डीडीटी कीटनाशक का इस्तेमाल प्रभावशाली होता है. हालांकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए खतरनाक होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
रैपिड टेस्ट
खून की एक बूंद से किया गया रैपिड टेस्ट मिनटों में बता सकता है कि मरीज को मलेरिया है या नहीं. यहां डॉक्टर विदआउट बॉर्डर की एक कार्यकर्ता, अफ्रीकी देश माली में लड़के पर रैपिड टेस्ट कर रही हैं. इस लड़के में मलेरिया की पुष्टि हुई. उपचार के दो दिन बाद वह स्वस्थ हो गया. हालांकि रैपिड टेस्ट हमेशा भरोसेमंद नहीं होते.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दवा बेअसर
दवाइयों की मदद से रक्त में मौजूद विषाणु को खत्म या फिर बढ़ने से रोका जा सकता है. हालांकि दवाओं का असर पैरासाइट पर कम होता जा रहा है. लंबे समय से इस्तेमाल की जा रही मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन अब कुछ इलाकों में प्रभावशाली नहीं है. नई दवाओं की खोज मलेरिया की प्रतिरोधक क्षमता की समस्या से निपटने का एक रास्ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कब आएगा टीका
मलेरिया के लिए अब तक कोई टीका नहीं है. शोधकर्ता टीका बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं. रिपोर्टों के मुताबिक इस मामले में सफलता जल्द मिल सकती है.