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भारत के लिए कौन अच्छा ओबामा या रोमनी

२६ अक्टूबर २०१२

भारत को एक डेमोक्रैट राष्ट्रपति से ज्यादा फायदा होगा या रिपब्लिकन से? भारत की अर्थव्यवस्था पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों का क्या प्रभाव होगा, भारत को क्या उम्मीद करनी चाहिए? भारतीय मीडिया अभी इन्हीं जवाबों की तलाश में

तस्वीर: AP

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का दिन जैसे जैसे करीब आ रहा है, वैसे वैसे भारत की राजनीतिक पार्टियां और उद्योगपति यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि मिट रोमनी और बराक ओबामा में से भारत अमेरिकी संबंधों के लिए कौन ज्यादा फायदेमंद होगा.

भारत में अब तक अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के उम्मीदवारों ने भारत बारे में साफ साफ कुछ नहीं कहा है. भारतीय राजनयिकों का मानना है कि भारत अमेरिका के लिए रणनीतिक तौर पर अहम है और इसलिए दोनों देश आपसी संबंध अच्छे बनाए रखना चाहते हैं.

भारत की कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता टॉम वडक्कन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि राष्ट्रपति कौन बनेगा. आपसी तालमेल ज्यादा जरूरी है और दोनो लोकतंत्र एक दूसरे को अनदेखा नहीं कर सकते. हमें एक दूसरे की मदद करनी होगी और संबंध आगे बढ़ेंगे."

बीजेपी के मुख्तार अब्बास नकवी याद दिलाते हैं कि राष्ट्रपति ओबामा ने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को 21वीं शताब्दी को "तय करने वाले संबंध" बताए हैं. "हमारे लिए ओबामा को परखा जा चुका है, उन पर विश्वास किया जा सकता है. इसका मतलब रोमनी के खिलाफ होना नहीं है. लेकिन मैं मानता हूं कि चाहे जो भी राष्ट्रपति बने, वह भारत को अनदेखा नहीं कर सकता."

आउटसोर्सिंग पर नजरतस्वीर: AP

दूसरों का मानना है कि 2000 में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के साथ संबंधों की बेहतरी की शुरुआत हुई जिसे जॉर्ज बुश और ओबामा ने आगे बढ़ाया और यह भविष्य में नए राष्ट्रपति भी करेंगे. भारत को सबसे फायदा होगा. राष्ट्रीय जनता दल के मदन कुमार ने डीडब्ल्यू से कहा, "2008-2009 में भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता आपसी संबंधों में एक बड़ा पड़ाव था. हमारे पुराने और जटिल संबंध अब लोकतांत्रिक आधारों और बहुसांस्कृतिक मूल्यों की नींव पर खड़े हैं और साथ ही चीन के बढ़ते प्रभाव को भी इससे कुछ कम करने की कोशिश की जा रही है."

हैरानी वाली बात यह है कि सोमवार को हुई राष्ट्रपति बहस में विदेश नीति पर ध्यान तो दिया गया, अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर बातचीत हुई, लेकिन इस दौरान भारत का नाम नहीं आया. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी नेतृत्व में बदलाव से भारत और अमेरिकी संबंधों में नई चुनौतियां सामने आएंगी. पूर्व राजनयिक सलमान हैदर कहते हैं, "अगले राष्ट्रपति के कार्यकाल में दक्षिण एशिया के प्रति अमेरिका की विदेश नीति में खास बदलावों की उम्मीद रखी जा सकती है. खास तौर से अफगानिस्तान में युद्ध को खत्म करने की बात होगी. " हैदर का मानना है कि इस इलाके में खुद अमेरिकी नीति का प्रभाव पड़ेगा और यह प्रभाव अफगानिस्तान से बाहर भी अपने असर दिखाएंगे.

लेकिन भारत में मध्यवर्ग अमेरिकी राजनीति पर करीब से नजर रख रहा है. कई यह सवाल उठा रहे हैं कि इससे भारत को आउटसोर्सिंग में क्या बदलाव आएंगे क्योंकि इससे भारत में नौकरियों पर सीधा असर पड़ेगा. साथ ही, भारत में मध्यवर्ग अमेरिकी वीजा नीति के बारे में काफी दिलचस्पी दिखाता आ रहा है. भारत से हजारों छात्र हर साल अमेरिका पढ़ने जाते हैं.

रिपोर्टः मुरली कृष्णन/एमजी

संपादनः आभा मोंढे

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