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भारत के हथियार आयात पर नजर

२३ मार्च २०११

पाकिस्तान में रेमंड डेविस की अचानक रिहाई. और सिप्री की रिपोर्ट कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है. इस पर इस सप्ताह जर्मन मीडिया की खास नजर रही.

तस्वीर: AP

पाकिस्तान में अचानक संदिग्ध सीआईए एजेंट रेमंड डेविस को रिहा कर दिया गया और तुरंत अमेरिका रवानगी भी हो गई. डेविस के मुताबिक उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई. पाकिस्तान में कुछ लोग उसे लूटने की कोशिश कर रहे थे. डेविस के गोली चलाने के कारण दो पाकिस्तानी नागरिकों की मौत हुई. पाकिस्तान में उस पर हत्या के आरोप में मुकदमा शुरू किया गया. इस बारे में स्यूडडॉयचे त्साइटुंग ने सीआईए के तरीकों और आईएसआई के समीकरणों के बारे टिप्पणी की हैः

आतंक के खिलाफ लड़ाई में सीआईए के तरीकों पर सवाल खड़े होते हैं. अक्सर सीमाओं का उल्लंघन भी होता है लेकिन यह केवल एक पक्ष है. पाकिस्तान चरमपंथ के खिलाफ लड़ाई में खुद की गलतियों को स्वीकार नहीं कर रहा है. सरकार और धर्म के बीच एक खुली बहस होना बहुत ही जरूरी है ताकि देश इस्लामिक क्रांति से बच सके. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने डेविस के मामले को सीआईए पर बेहतर नियंत्रण रखने के लिए इस्तेमाल किया. इसका असर होगा कि आईएसआई अफगानिस्तान में अपने प्रभाव को और बढ़ा सकता है. क्योंकि आज तक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी अब तक वहां के उग्रवादियों के साथ संपर्क में है. ताकि युद्ध खत्म होने के बाद वह अफगानिस्तान में प्रभाव बनाए रख सके. और यह सब पश्चिम को पसंद नहीं आ सकता.

तस्वीर: AP

भारत ने चीन को हथियारों के आयात के मामले में पीछे छोड़ दिया है. 2006 से 2010 के बीच पाकिस्तान चौथा सबसे बड़ा हथियार आयातक देश था. पिछले पांच सालों में भारत ने सबसे ज्यादा हथियार खरीदे. यह रिपोर्ट स्टॉकहोम के शांति शोध संस्थान सिप्री ने दी है. फ्रांकफुर्ट के दैनिक फ्रांकफुर्टर रुंडशाउ ने लिखा हैः

यह बात कि चीन ने अचानक हथियारों का आयात कम कर दिया है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह शांति दूत हो गया है बल्कि उसने अपने ही देश में हथियार बनाने वाले उद्योगों को विकसित किया है. ऐसे में भारत हथियार खरीदने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है. इसका कारण आंतरिक सुरक्षा समस्याओं के अलावा पाकिस्तान के साथ विवाद और चीन के साथ फिर उभरते तनाव हैं. भारत ज्यादातर रूस से हथियार खरीदता है जबकि पाकिस्तान अमेरिका और चीन से हथियार लेता है.

तस्वीर: AP

तिब्बत की सत्ता मिलने के 61 साल बाद दलाई लामा अपने सभी राजनैतिक पदों को छोड़कर लोकतांत्रिक चुनावों में अपने एक उत्तराधिकारी को खड़ा करना चाहते हैं. 76 साल के दलाई लामा ने यह बात तिब्बत के विद्रोह की 52वीं वर्षगांठ पर कहा. हालांकि चीन ने दलाई लामा की घोषणा की आलोचना की है. यही मानना है ज्यूरिख के नौए ज्यूरिषे त्साइटुंग काः

महीनों से इस घोषणा की उम्मीद की जा रही थी. इसे एक निर्णायक कदम माना जा रहा है. तिब्बत के निर्वासित समुदाय को नए तरीके से संगठित करने के लिए यह अहम है. अब तक निर्वासित समुदाय की एकता का एक कारण दलाई लामा के व्यक्तित्व का असर था. कई तिब्बतियों को आशंका है कि दलाई लामा के निधन के बाद समुदाय बिखर जाएगा. क्योंकि समुदाय में इस मुद्दे पर विवाद हैं कि बीजिंग के साथ कैसे रिश्ते रखे जाएं. चीन की सरकार ने दलाई लामा की इस घोषणा की आलोचना की है. विदेश मंत्रालय की एक प्रवक्ता ने कहा, हमें ऐसा लगता है कि यह दलाई लामा की अंतरराष्ट्रीय समुदाय को धोखा देने की एक चाल है. चीन की सरकार ने हमेशा दलाई लामा पर आरोप लगाया है कि वह अलगाववादी विचारधारा के हैं. दलाई लामा की लोकतांत्रिक चुनाव की घोषणा चीन की सरकार के मुताबिक मुश्किल है. चीन काफी समय से दलाई लामा को तानाशाह बताता है.

भारत में दुनिया की आबादी के 17 फीसदी लोग रहते हैं लेकिन उनके पास सिर्फ दुनिया का सिर्फ चार प्रतिशत पानी ही है. इसलिए भारत में पानी का संकट बढ़ता ही जा रहा है. पानी के अभाव को सरकार ने ऊर्जा के कमी से भी खतरनाक बताया है. क्योंकि देश में पानी की उपलब्धता को बढ़ाना बहुत ही मुश्किल है. फ्रांकफुर्टर अलगमाइने त्साइटुंग का कहना हैः

अगर भारत में पानी इस्तेमाल करने की आदत लोग नहीं बदलते तो अगले 20 साल में जरूरत का आधा ही पानी उपलब्ध हो सकेगा. आज ही गरीब रहने वाले 39 करोड़ लोगों को प्रति दिन औसतन सिर्फ तीन घंटे ही पानी मिल पाता है. इससे यह बिलकुल पता नहीं लगता कि पानी साफ है या नहीं. देश में करीब 80 करोड़ लोगों के पास शौचालय नहीं हैं. यह सिर्फ शर्म की बात नहीं है बल्कि यह रोगों के फैलने का कारण भी है. और तो और रोगों के इलाज में भी अरबों रुपए खर्च होते हैं. यानी पानी की कमी का असर गरीबों और महिलाओं पर पड़ता है. एशियाई विकास बैंक के विशेषज्ञ अर्जुन थर्पन के मुताबिक यदि पानी के अभाव को कम करने के लिए निवेश किया जाता है तो आप को नुकसान कम होगा लेकिन जीतने के लिए बहुत कुछ है. थर्पन चेतावनी देते हैं कि पानी के संकट से सामाजिक मुश्किलें पैदा हो सकती हैं.

रिपोर्टः अना लेहमान/आभा एम

संपादनः प्रिया एसेलबॉर्न

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