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भारत को कैर्न के 1.2 अरब डॉलर लौटाने का आदेश

ओंकार सिंह जनौटी
२३ दिसम्बर २०२०

एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता ट्राइब्यूनल ने भारत सरकार को स्कॉटिश कंपनी कैर्न के 1.2 अरब डॉलर लौटाने का आदेश दिया है. ब्याज अलग से देना है. क्या गड़े मुर्दे उखाड़ना भारत को महंगा पड़ रहा है?

Alaska Öl Bohrung Greenpeace Protest
तस्वीर: picture-alliance/dpa

वोडाफोन टैक्स विवाद के बाद कैर्न एनर्जी के टैक्स विवाद में भारत सरकार को झटका लगा है. नीदरलैंड्स में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता ट्राइब्यूनल ने भारत सरकार के कैर्न एनर्जी से टैक्स वसूलने को अवैध करार दिया. ट्राइब्यूनल ने भारत को टैक्स के तौर पर वसूली गई राशि ब्याज समेत वापस करने का आदेश दिया है.

ट्राइब्यूनल के जज ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत नए टैक्स कोड के जरिए बीते काल में हुए सौदे पर टैक्स नहीं ले सकता. टैक्स की इस वसूली को यूके-भारत की द्विपक्षीय निवेश सुरक्षा संधि के विरुद्ध माना गया. भारत ट्राइब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील कर सकता है.

फैसले के बाद कैर्न ने बयान जारी करते हुए कहा, "ट्राइब्यूनल ने एकमत से यह फैसला किया है कि भारत ने यूके-इंडिया बाइलैटरल इंवेस्टमेंट ट्रीटी के तहत कैर्न के साथ अपने वचन को तोड़ा है और कैर्न 1.2 अरब डॉलर का हर्जाना, ब्याज और खर्च की अदायगी का हकदार है.”

कुछ समय पहले वोडाफोन ने भी ऐसा ही मुकदमा जीता था.तस्वीर: REUTERS

गड़े मुर्दे उखाड़ने का खामियाजा?

2012 में भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल में भारत ने टैक्स कोड में बदलाव किया. यह बदलाव वोडाफोन-हचींसन सौदे से जुड़े कैपिटल गेन टैक्स विवाद में सुप्रीम कोर्ट से झटका मिलने के बाद किया गया. बजट पेश करते हुए तत्कालीन वित्त मंत्री मुखर्जी ने नए टैक्स कोड का एलान किया. इस कोड के बाद 1962 से भारतीय संपत्ति को लेकर हुए सभी मामलों को आईटी एक्ट के तहत ले लिया. इसे जनरल एंटी एवॉएडेंस रूल कहा गया, जो 2014 से लागू होना था. अब इन्हीं मोर्चों पर भारत को झटके लग रहे हैं.

यूके की ऑयल एक्सप्लोरर कंपनी कैर्न ने 2006 में भारत में रिस्ट्रक्चरिंग की. 2011 में कंपनी ने अपनी भारतीय यूनिट की ज्यादातर हिस्सेदारी 8.9 अरब डॉलर में वेदांता रिसोर्सेज को बेच दी. साथ ही कंपनी ने राजस्थान में बीते दो दशकों में खोजे गए सबसे बड़े ऑयल फील्ड का स्वामित्व भी कैर्न इंडिया को ट्रांसफर दिया. भारत के अधिकारियों ने इसे टैक्स चुराने की कोशिश माना और 2015 में कैर्न इंडिया के 10 फीसदी शेयर सीज कर लिए.

2012 में पेश किए गए टैक्स कोड के बारे में सरकार ने साफ किया था कि इसका इस्तेमाल राजस्व घाटे की भरपाई और बदला लेने के इरादे से नहीं किया जाएगा. तीन करोड़ रुपये से कम के मामलों पर यह लागू नहीं होगा. लेकिन कॉरपोरेट जगत ने इसे भूलसुधार के नाम पर कंपनियों को दंडित करने वाला करार दिया.

 

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