यह खबर आपको मिल ही गयी होगी कि इस साल साहित्य का नोबेल पुरस्कार जापानी मूल के अंग्रेज लेखक काजियो इशीगुरो को मिला है. समृद्ध साहित्यिक परंपराओं के बावजूद क्यों छूट जाते हैं भारतीय लेखक इस दौड़ में?
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सवा अरब की आबादी और लगभग आठ सौ भाषाओं वाले देश के खाते में अब तक साहित्य का सिर्फ एक नोबेल होना, आपको कुछ कम सा नहीं लगता? सौ साल से भी ज्यादा अरसा बीत गया जब भारत को साहित्य का पहला और इकलौता नोबेल पुरस्कार मिला था. तब से रवींद्र नाथ टैगोर साहित्य के क्षेत्र में भारत के अकेले नोबेल विजेता होने का भार उठाते चले आ रहे हैं.
साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के सूखे की क्या वजह समझी जाए? क्या भारत में ऐसा कुछ नहीं लिखा जा रहा है जो दुनिया को अपनी तरफ खींच पाये? या फिर भारत में जो लिखा जा रहा है वह दुनिया तक नहीं पहुंच रहा है?
सबसे ज्यादा साहित्य का नोबेल जीतने वाले देशों की सूची पर नजर डालें तो 15 पुरस्कारों के साथ फ्रांस सबसे ऊपर नजर आता है. इसके बाद 10-10 पुरस्कारों के साथ ब्रिटेन और अमेरिका दूसरे पायदान पर हैं. जर्मनी और स्वीडन के लेखकों को आठ-आठ बार और इटली और स्पेन के लेखकों को छह-छह बार साहित्य के इस सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया है. पोलिश भाषा के चार लेखक इस सम्मान को हासिल कर चुके हैं जबकि इस भाषा को बोलने वालों की तादाद साढ़े पांच करोड़ के आसपास है. चर्चा में वही साहित्य आता है जिसे पाठक पसंद करते हैं और फिर उसे दुनिया तक पहुंचाने की जरूरत महसूस होती है.
साहित्य का नोबेल
पिछले सालों में साहित्य का नोबेल पुरस्कार भावनाओं की विविधता दिखाने वाले लेखकों को मिला है. 2021 का पुरस्कार ब्रिटेन में रहने वाले और तंजानिया में जन्मे लेखक अब्दुलरजाक गुरना को दिया गया है.
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2021 अब्दुलरजाक गुरना
तंजानिया में जन्मे अब्दुर्रज्जाक गुरना को 2021 के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए चुना गया है. 72 साल के गुरना के लेखन में उस यात्रा का दर्द दिखता है जो वह बतौर एक शरणार्थी तमाम जिंदगी करते रहे हैं.
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2020 लुइज ग्लुक
अमेरिकी लेखिका लुइज ग्लुक को उनके काव्य संग्रह एवेर्नो के लिए 2020 का नोबेल साहित्य पुरस्कार दिया जाएगा.
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2019 पीटर हांडके
ऑस्ट्रियाई लेखक पीटर हांडके को 2019 के नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित दिया गया.
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2018 ओल्गा तोकार्जुक
2018 के लिए पोलिश लेखिका ओल्गा तोकार्जुक को साहित्य का बेल पुरस्कार दिया गया.
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2017 का नोबेल काजुओ इशिगुरो को
साल 2017 के साहित्य का नोबेल पुरस्कार ब्रिटिश लेखक काजुओ इशिगुरो को दिया गया. "द रिमेंस ऑफ द डे" से मशहूर हुए उपन्यासकार काजुओ इशिगिरो का जन्म तो जापान में हुआ लेकिन वह अब ब्रिटेन में रहते हैं और अंग्रेजी में लिखते हैं.
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2016 बॉब डिलन
अमेरिकी गायक और गीत लेखक बॉल डिलन को 2016 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया.
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स्वेतलाना अलेक्सिएविच
2015 का साहित्य का नोबेल पुरस्कार बेलारूस की महिला पत्रकार स्वेतलाना अलेक्सिएविच को मिला है. वे यह पुरस्कार पाने वाली पहली पत्रकार हैं. उन्हें भावनाओं के इतिहास को संकलित करने वाली उनकी खोजी किताबों के लिए सम्मानित किया गया है.
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पाट्रीक मोदियानो
2014 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार फ्रांसीसी लेखक मोदियानो ने जीता है. फ्रांस में 1940 से 1944 तक रही जर्मन सत्ता के दौर के बारे मे उन्होंने काफी लिखा है.
इस बार की विजेता हैं कनाडा की एलिस मुनरो. हर साल साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार देने वाली स्वीडिश अकादमी ने उन्हें समकालीन लघुकथा का मास्टर बताया. आलोचक उन्हें कनाडा का चेखव कहते हैं.
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2012: मो यान
मो यान के नाम से प्रख्यात गुआन मोए को नोबेल पुरस्कार देते हुए स्वीडिश अकादमी ने उनकी प्रशंसा में कहा था कि वे जनकथाओं, इतिहास और वर्तमान को भ्रामक हकीकत के साथ जोड़ देते हैं.
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2011: टोमास ट्रांसट्रोएमर
अकादमी ने ट्रांसट्रोएमर का चुनाव इसलिए किया कि वे "अपनी गहरी और निर्मल छविओं से हमारा हकीकत के साथ मेल कराते हैं." मनोवैज्ञानिक रहे कवि की रचनाओं का 60 भाषाओं में अनुवाद हुआ है.
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2010: मारिया वार्गास ल्योसा
पेरू के उपन्यासकार को सत्ता के ढांचे का नक्शा बनाने और हर एक के प्रतिरोध, विद्रोह और पराजय को रेखांकित करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया. उन्हें उनके बेबाक बयानों के लिए भी जाना जाता है.
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2009: हैर्टा मुलर
जर्मन-रोमेनियन लेखिका को पुरस्कार देते हुए अकादमी ने उन्हें ऐसी लेखिका बताया "जो पद्य के संकेंद्रन और गद्य की बेबाकी से विस्थापितों के लैंडस्केप का वर्णन करती हैं." वे 1987 से बर्लिन में रहती हैं.
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2008: ले क्लेजियो
फ्रांस के जां मारी गुस्ताव ले क्लेजियो को स्वीडिश अकादमी ने "लीक से हटकर लिखने वाला, काव्यात्मक साहस और संवेदनात्मक आनंद का लेखक बताया जो सभ्यता के बाहर की मानवता की खोज करता है."
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2007: डोरिस लेसिंग
ब्रिटिश लेखिका डोरिस लेसिंग ने उपन्यास, नाटक और लघु कथाएं लिखी है. अकादमी ने 93 साल की लेखिका को संशय, जोश और दूरदर्शी ताकत के साथ विभाजित सभ्यता की छानबीन करने वाला लेखक बताया.
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2006: ओरहान पामुक
नोबेल पुरस्कार देते हुए अकादमी ने कहा, "अपने शहर की उदास आत्मा की खोज में निकले पामुक ने संस्कृतियों के संघर्ष के नए प्रतीक पाए." ओरहान पामुक नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले तुर्क लेखक हैं.
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2005: हैरॉल्ड पिंटर
"उत्पीड़न के बंद कमरों में जबरदस्ती घुसने वाले" पिंटर ने अपने नाटकों पर बनी फिल्मों में भी काम किया.
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वहीं, भारत में हिंदी बोलने वालों की तादाद 55 करोड़ से ज्यादा है. दस सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भारतीय भाषाओं में उड़िया दसवें नंबर पर आती है जिसे तीन करोड़ से ज्यादा लोग बोलते हैं. यह भाषायी विविधता सांस्कृतिक विविधता की कोख से जन्मी है. इस लिहाज से देखें तो साहित्य सृजन के लिए भारत में भरपूर उर्वरक जमीन नजर आती है. लेकिन उसमें पैदा होने वाले साहित्य की खुशबू दुनिया तक नहीं पहुंच रही है. दुनिया का सवाल तो बाद में आता है, पहले यह सोचने की जरूरत है कि भारत के एक कोने में रहने वाले लोग दूसरे कोने में रचे जा रहे साहित्य को कितना जानते हैं या उसमें कितनी दिलचस्पी लेते है?
एक भाषा के लोगों तक दूसरी भाषा के साहित्य को पहुंचाने के लिए अनुवाद ही अकेली कड़ी है. इसी के सहारे आप दुनिया तक भी पहुंच सकते हैं. फिलहाल भारत में यह कड़ी उतनी मजबूत नहीं दिखती, जितनी होनी चाहिए. रवींद्रनाथ टैगोर की जिस कृति 'गीतांजलि' ने उन्हें नोबेल दिलाया, वह भी दुनिया तक अनुवाद के जरिए ही पहुंची थी.
न कहानियों की कमी है और न ही कहने वालों की. सवाल यह है कि भारत के लोग खुद अपने साहित्य और उसे दुनिया तक पहुंचाने को लेकर कितना गंभीर हैं. जरूरत भारत के साहित्य को इस तरह पेश करने की है कि भाषा और संस्कृति के बंधनों से परे दुनिया के किसी भी कोने में रहने वाला शख्स उन्हें महसूस कर सके. अगर साहित्य समाज का आईना है तो भारत में बहुत कुछ ऐसा है जो दुनिया को अपनी तरफ खींचने की ताकत रखता है. लेकिन खींचने वाली इस डोर को और मजबूत करना होगा.
जहां बीते गुरुदेव के दिन
सात मई, 1861 को कलकत्ता में जन्मे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) में बिताया. कुश्तिया और कुमारखाली में उनके निवास और कामकाज की जगह पर अब स्मारक है.
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पद्मा नदी के किनारे यह कोठी अपनी जमींदारी की देखभाल करने के लिए टैगोर ने बनवायी थी. कुश्तिया जिले में स्थित यह कोठी आज बहुत महत्वपूर्ण स्मारक है.
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टैगोर सन 1889 में यहां पहली बार पहुंचे. अपने किशोरावस्था और जवानी में वे कई बार यहां आते जाते रहे. फिर 1891 से 1901 तक वे यहां थोड़े थोड़े समय के लिए रहे.
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अपने इसी कमरे में महाकवि ने कई कालजयी रचनाएं रचीं. चित्रा, चैताली, कई संक्षिप्त कहानियां और कविताएं उन्होंने यहीं लिखीं. तस्वीर में उनके बिस्तर समेत कमरे का नजारा.
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कुठीबाड़ी कहे जाने वाले इस घर के एक मुख्य हॉलनुमा कमरे में सजायी गयी हैं उनकी कई दुर्लभ तस्वीरें.
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अब स्मारक बन चुके उनके इस निवास में रवीन्द्रनाथ ठाकुर की इस्तेमाल की गयी पालकी भी रखी गयी है. इससे वे अपनी जमींदारी के इलाकों में जाया करते.
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यह है टैगोर की इस्तेमाल की गयी स्पीड बोट, जिसका नाम था चपला. इससे वे अक्सर पास बहने वाली पद्मा नदी में जाते.
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यह है प्रसिद्ध बोकुलतला घाट. यहां बैठ कर उन्होंने कई स्मरणीय गीत लिखे.
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करीब 11 एकड़ में फैले इस कोठी के इलाके की चाहरदीवारी लहरों के आकार की बनी है. जैसे पद्मा नदी की लहरें हों.
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कुमारखाली में टैगोर का एक प्रसिद्ध ठिकाना और भी है. रेलने स्टेशन के करीब बना उनके कामकाज का केंद्र टैगोर लॉ भी अब स्मारक है.
(मुस्ताफिज मामुन/आरपी)