भारत और चीन सैन्य गतिरोध को शांत करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों में जुट गए हैं. बुधवार को दोनों देशों के सरकारी अधिकारियों के बीच में भी बात-चीत हो सकती है, लेकिन सैन्य गतिरोध जस का तस बना हुआ है.
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गलवान घाटी में भारतीय सेना के 20 सैनिकों के मारे जाने के लगभग 10 दिन बाद ऐसा लग रहा है कि भारत और चीन गतिरोध को शांत करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों में जुट गए हैं. समस्या यह है कि इन प्रयासों की पृष्ठभूमि में जो सैन्य गतिरोध है वह अपनी जगह जस का तस बना हुआ है.
मीडिया में आई खबरों में दावा किया जा रहा है कि सैन्य कमांडरों के बीच बातचीत के एक दिन बाद, बुधवार को दोनों देशों के सरकारी अधिकारियों के बीच में भी बातचीत होगी. बताया जा रहा है कि जॉइंट सेक्रेटरी स्तर की इस वर्चुअल बातचीत में भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय के पूर्वी एशिया विभाग में जॉइंट सेक्रेटरी और चीन की तरफ से विदेश मंत्रालय के बाउंड्री एंड ओशिएनिक विभाग के डायरेक्टर जनरल भाग लेंगे.
जानकारों का मानना है कि शुक्रवार से लेकर अभी तक के बयानों और बातचीत के अलग अलग दौर से संकेत यही मिलता है कि गतिरोध की तीव्रता को कम करने की मजबूत कोशिशें की जा रही हैं. माना जा रहा है कि स्थिति के स्थिर होने में रूस, चीन और भारत के विदेश मंत्रियों के बीच चल रही वर्चुअल बैठक का भी महत्वपूर्ण योगदान है. बैठक में मंगलवार को रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि भारत और चीन दोनों ने शांतिपूर्ण समाधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है.
लावरोव ने यह भी कहा कि दोनों देशों ने किसी भी तरह का गैर-कूटनीतिक कदम उठाने के विषय में कोई भी वक्तव्य नहीं दिया है. इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि इन हालात में इन दोनों को रूस या किसी भी और देश की मदद की जरूरत नहीं है. चीनी मीडिया की खबरों में यहां तक कहा जा रहा था कि बुधवार को मॉस्को में रक्षा-मंत्री राजनाथ सिंह चीन के रक्षा-मंत्री से भी मिलेंगे लेकिन भारत सरकार ने इस खबर का खंडन कर दिया है.
इस बीच जानकारों का यह भी कहना है कि कूटनीतिक प्रयास अपनी जगह हैं लेकिन इनके सामने सैन्य स्तर पर चल रहे गतिरोध को समाप्त करने की बड़ी चुनौती है. भारतीय सेना से सेवानिवृत्त अफसर और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ अजय शुक्ला का कहना है कि गलवान घाटी की घटना के बाद चीनी सेना ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपनी उपस्थिति 30 प्रतिशत बढ़ाई है और वे लद्दाख के डेपसांग में भी प्रवेश कर गई है.
शुक्ला के अनुसार ये भारत-चीन सीमा पर 1962 के बाद चीन की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती है और भारत को उत्तरी लद्दाख में अभी भी चीनी सेना से काफी खतरा है.
गलवान घाटी की घटना के बाद भारत में एक बार फिर चीन के उत्पादों के बहिष्कार की मांगें उठ रही हैं. क्या भारत चीन का आर्थिक बहिष्कार कर सकता है? इसका जवाब जानने के लिए दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों की तरफ देखना पड़ेगा.
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निवेश
मांग उठ रही है कि भारत में चीनी कंपनियों द्वारा निवेश को रोका जाए. भारत सरकार के अनुसार, 2019 में भारत में चीनी निवेश का मूल्य मात्र 19 करोड़ डॉलर था. हालांकि 100 से भी ज्यादा चीनी कंपनियां भारत में अपने दफ्तर खोल चुकी हैं.
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टेक्नोलॉजी क्षेत्र
एक अनुमान के मुताबिक 2019-20 में चीनी तकनीकी कंपनियों ने दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में ही निवेश किया. भारत में एक अरब डॉलर के मूल्य वाली 'यूनिकॉर्न' कही जाने वाली स्टार्टअप कंपनियों में से दो-तिहाई में भारी चीनी निवेश है.
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व्यापार घाटा
जानकार कहते हैं कि निवेश से ज्यादा चीन भारत पर व्यापार के जरिए हावी है. चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार पार्टनर है. भारत सरकार के अनुसार 2019 में दोनों देशों के बीच 84 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. लेकिन इस व्यापार का तराजू चीन के पक्ष में भारी रूप से झुका हुआ है. 2019 में भारत ने चीन से 68 अरब डॉलर का सामान खरीदा और चीन ने भारत से सिर्फ 16.32 अरब डॉलर का सामान खरीदा.
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बिजली उपकरण
भारत चीन से सबसे ज्यादा बिजली की मशीनें और उपकरण खरीदता है. उद्योग संस्था पीएचडी चैम्बर्स के अनुसार 2016 में भारत ने चीन से 20.87 अरब डॉलर की कीमत के बिजली के उपकरण, मशीनें, पुर्जे, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन इत्यादि खरीदे.
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भारी मशीनें
2016 में ही भारत ने चीन से 10.73 अरब डॉलर मूल्य की भारी मशीनें, यंत्र, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर और इनके पुर्जे खरीदे.
इसी अवधि में भारत ने चीन से 5.59 अरब डॉलर के ऑरगैनिक केमिकल खरीदे. इनमें बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक और दवाएं बनाने की केमिकल सामग्री शामिल हैं.
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प्लास्टिक
2016 में भारत ने चीन से 1.84 अरब डॉलर का प्लास्टिक का सामान खरीदा. इसमें वो सब छोटे छोटे सामान आते हैं जो आप बड़े सुपरमार्केट से लेकर खुली सड़क पर लगने वाली हाटों से खरीद कर घर लाते हैं.
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जहाज और नाव
भारत नाव, जहाज और अन्य तैरने वाले ढांचे भी बड़ी मात्रा में चीन से ही लेता है. 2016 में भारत ने चीन से 1.78 अरब डॉलर के नाव, जहाज इत्यादि खरीदे.
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लोहा और स्टील
इस श्रेणी में भी भारत चीन से बहुत सामान खरीदता है. 2016 में 1.65 अरब डॉलर मूल्य का लोहे और स्टील का सामान खरीदा गया था.