1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत चीन मिल कर नापेंगे अंतरिक्ष

१३ जनवरी २०१२

अंतरिक्ष की खोज पर अब भारत और चीन ने एक दूसरे का साथ देने का फैसला किया है. दोनों मिलकर अब हवाई की मौना कीया ज्वालामुखी पर दुनिया का सबसे विशाल टेलेस्कोप बनाने जा रहे हैं.

तस्वीर: Fotolia/Noel Powell

तीस मीटर लंबे शीशे वाले इस टेलीस्कोप को बनाने में भारत और चीन मिल कर एक अरब डॉलर से ज्यादा पैसे लगा रहे हैं. इस टेलीस्कोप में लगा आईना बहुत सारे छोटे शीशों से बना है और यह बाकी टेलीस्कोप के मुकाबले नौगुना ज्यादा रोशनी पकड़ सकेगा. इसकी छवियां भी आम उपकरणों के मुकाबले तीन गुना ज्यादा साफ होंगी.

तस्वीर: AP

टीएमटी की तैयारी

टेलीस्कोप को वैज्ञानिकों ने टीएमटी नाम दिया है और इससे खगोल वैज्ञानिक सौरमंडल के बाहर बाकी ग्रहों और तारों को देख पाएंगे. टीएमटी से अंतरिक्ष में 13 अरब प्रकाश वर्षों की दूरी तक देखा जा सकता है और इससे अंतरिक्ष की शुरुआत और अतीत के बारे में ऐसी जानकारी हासिल हो सकेगी, जिसकी कल्पना वैज्ञानिक अब तक केवल अपने आंकड़ों से ही कर पा रहे थे.

टेलीस्कोप बनाने की परियोजना यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी और कनाडा के विश्वविद्यालयों ने शुरू की थी. 2009 में चीन ने पर्यवेक्षक की हैसियत से प्रोजेक्ट में हिस्सा लिया और भारत ने फिर टेलीस्कोप के निर्माण में शामिल होने की इच्छा जताई. टीएमटी को बनाने में लग रहे पैसों का 10 प्रतिशत भारत से आएगा जिसमें से 70 प्रतिशत जरूरी मशीनें और तकनीक होंगी. प्रशांत महासागर में हवाई द्वीपों पर ज्वालामुखी मौना कीया टीएमटी के लिए चुना गया है. जापान ने पहले से ही ज्वालामुखी पर अपना टेलीस्कोप बना रखा है लेकिन अब वह इस विशाल प्रोजेक्ट में भी हिस्सा लेगा. 2018 तक यह टेलीस्कोप बन कर तैयार हो जाएगा.

तस्वीर: NASA, ESA, G. Illingworth (UCO/Lick Observatory and University of California, Santa Cruz) and the HUDF09 Team

सबसे बड़ा टेलीस्कोप

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ऐस्ट्रोफिजिक्स की जीसी अनुपमा के मुताबिक भारत के सबसे बड़े टेलीस्कोप का शीशा दो मीटर लंबा है और भारत इस वक्त चार मीटर लंबी टेलीस्कोप बनाने की कोशिश कर रहा है. उनका कहना है, "चार मीटर वाले टेलीस्कोप से 30 मीटर वाले तक जाना हमारे लिए एक बहुत बड़ा कदम है. भारत में खगोल विद्या को इससे बहुत फायदा होगा." अनुपमा का कहना है कि टीएमटी के निर्माण में शामिल होने से भारत उच्च तकनीक सीख सकेगा और देश में 10 मीटर लंबे टेलीस्कोप को बनाने में मदद मिलेगी. भारतीय वैज्ञानिक टीएमटी के जरिए आकाशगंगा और अंतरिक्ष में सबसे बूंढ़े तारों पर शोध कर सकेगा.

चीन में खगोल विद्या के प्रोफेसर शूदे माओ का कहना है कि चीन के लिए भी यह एक बहुत बड़ा कदम है. चीन के वैज्ञानिक टीएमटी के जरिए सौरमंडल से बाहर ग्रहों को जानना चाहते हैं. उनकी दिलचस्पी ब्लैक होल, डार्क मैटर और डार्क एनर्जी में भी है, जो अंतरिक्ष में कुछ ऐसे तत्व हैं जिनके बारे में वैज्ञानिक ज्यादा तो नहीं जानते लेकिन इनके बारे में पता चला है कि सौरमंडलों और तारों के जन्म और पतन पर इनका गहरा प्रभाव है. चीन में खगोल विद्या सैद्धांतिक स्तर पर तो बहुत आगे है लेकिन उपकरणों के अभाव को पूरा करने में टीएमटी से बहुत मदद मिलेगी. चीन ने पिछले साल अपने स्पेस स्टेशन के लिए परीक्षण शुरू कर दिए और स्पेस तकनीक में तेजी से आगे बढ़ रहा है. माओ का कहना है कि प्रॉजेक्ट विश्व में चीन की छवि के लिए भी बहुत ही फायदेमंद साबित होगा.

तस्वीर: AP/NASA

जल्द ही टीएमटी को मात देने वाला और भी बड़ा एक टेलीस्कोप बनाया जाने वाला है. यूरोपीय देश मिलकर यूरोपीयन एक्स्ट्रीमली लार्ज टेलीस्कोप बनाने वाले हैं जिसका शीशा 42 मीटर लंबा होगा. लेकिन जैसा कि चीन के प्रोफेसर माओ कहते हैं, तकनीक में साझेदारी चलती रहेगी और "वैज्ञानिक चाहे कहीं से भी देखें, सबके लिए आसमान एक ही है."

रिपोर्टः एपी/एमजी

संपादनः ए जमाल

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें