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क्यों भिड़ रहे हैं भारत और चीन के सैनिक

चारु कार्तिकेय
२० मई २०२०

हाल के ही कुछ हफ्तों में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के कम से कम चार प्रकरण हो चुके हैं. क्या ये सामान्य घटनाएं हैं या ये किसी और बात की तरफ इशारा करती हैं?

BRICS Forum in Brasilien
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Z. Ling

आखिर इन दिनों लद्दाख और सिक्किम में भारतीय और चीनी सेना के सिपाहियों के बीच इतना तनाव क्यों है? हाल के ही कुछ हफ्तों में दोनों पक्षों के बीच झड़प के कम से कम चार प्रकरण हो चुके हैं, जिनमें पांच मई को लद्दाख में और नौ मई को सिक्किम में दोनों तरफ के सिपाहियों के बीच हाथा-पाई तक हो गई थी. अब बताया जा रहा है कि लद्दाख के पांगोंग सो तालाब में चीनी सेना ने गश्ती नावों की संख्या बढ़ा दी है.

उत्तरी सिक्किम के नाकु ला और पूर्वी लद्दाख के पांगोंग सो तालाब इलाके में दोनों सेनाओं के बीच हाथापाई और पत्थरबाजी हुई थी और दोनों तरफ के वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप करने के बाद मामला शांत हुआ था. मीडिया में आई कुछ खबरों में सेना का बयान आया था कि दोनों प्रकरण स्थानीय थे और इनका ना तो आपस में कोई संबंध था और ना किसी और स्थानीय या वैश्विक घटना से. लेकिन यह बात सही है कि इस तरह के प्रकरण आए दिन होते रहते हैं क्योंकि दोनों देशों के बीच की सीमा विवादित है. 

क्या है एलएसी?

भारत और चीन के बीच की सीमा रेखा को लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल कहा जाता है. माना जाता है कि दोनों देशों की सीमा 4000 किलोमीटर से भी ज्यादा लंबी है और कम से कम भारत के पांच उत्तरी और पूर्वोत्तरी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरती है - लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश. एलएसी को 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद दोनों देशों ने एक समझौते के तहत माना था लेकिन उसकी असल परिभाषा को लेकर दोनों देशों के बीच आज भी विवाद है. 

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग अक्तूबर 2019 में तमिल नाडु के ममल्लपुरम में मिले थे.तस्वीर: Reuters

एलएसी को लेकर दोनों देशों की अपनी अपनी समझ है और इस वजह से दोनों के बीच टकराव होते रहते हैं. लद्दाख एलएसी करीब 134 किलोमीटर पांगोंग सो झील के बीच से गुजरती है और भारतीय सेना झील में करीब 45 किलोमीटर के इलाके पर पहरा देती है. भारतीय सेना का कहना है कि चीनी सिपाही हर साल सैकड़ों बार एलएसी का उल्लंघन कर भारत की सीमा में घुस आते हैं. कई बार स्थिति गंभीर भी हो जाती है.

2013 में लद्दाख की देपसांग घाटी में दोनों देशों के सैनिक तीन हफ्तों तक आमने-सामने तने रहे थे. बाद में वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप पर सेनाएं पीछे हटी थीं. 2017 में इसी तरह का एक प्रकरण सिक्किम से सटे दोकलाम में हुआ था जो भारत, चीन और भूटान के बीच एक तरह का ट्राई-जंक्शन है. यहां तीन महीनों तक दोनों देशों की सेना एक दूसरे के सामने तनी रही थीं.

क्यों हो रहे हैं ये प्रकरण?

तो सवाल ये उठता है कि जहां सीमा को लेकर झड़पों और छिट-पुट वारदात का इतना लंबा और गंभीर इतिहास है, ऐसे में पिछले कुछ सप्ताह में होने वाले प्रकरणों को कैसे देखा जाना चाहिए? क्या इन्हें सामान्य घटनाएं कहा जाए या ये किसी और चीज की तरफ इशारा करती हैं. कई जानकारों का मानना है कि इस अवधि में हर साल सीमा पर कुछ ना कुछ होता ही है. ऐसा शायद इसलिए होता हो क्योंकि बर्फ पिघलने की वजह से दोनों सेनाएं अपनी अपनी तरफ से सीमा तक गश्त लगाने के लिए ज्यादा बार पहुंचती हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अप्रैल 2018 में चीन गए थे.तस्वीर: Reuters/China Daily

वरिष्ठ पत्रकार नीलोवा रॉय चौधरी कहती हैं उनकी राय में ये हर साल होने वाली झड़पों जैसा ही है और इनमें कुछ नया नहीं है. उनका मानना है कि ये प्रकरण 2013 और 2017 में हुई घटनाओं जैसे बिल्कुल भी नहीं हैं और जब तक दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का अंत नहीं हो जाता ये होते रहेंगे. लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कि इन झड़पों के पीछे कोई और ट्रिगर हो इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन के असेंबली में ताइवान की भागीदारी.

पूर्व विदेश सचिव शशांक ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि वैसे तो इस मामले की ज्यादा चर्चा मीडिया में ही है लेकिन फिर भी यह तथ्य अपनी जगह है कि भारत अब विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष है और ताइवान को आब्जर्वर से सदस्य का दर्जा देने और कोरोनावायरस के स्रोत की तलाश के लिए शुरू की गई जांच, दोनों में भारत की अहम् भूमिका रहेगी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ये मामला पूरी तरह से समझ में नहीं भी आता है क्योंकि भारत चीन को ये लगातार समझाने की कोशिश कर रहा है कि दोनों देशों के कई क्षेत्रों में साझा हित हैं.

सीमा तक सड़कें

सीमा पर एक और चिंता का विषय है. चीन की तरफ सीमा के काफी पास तक सड़कें और अच्छी व्यवस्था है जिनसे चीनी सिपाही सीमा तक आसानी से पहुंच सकते हैं. नीलोवा रॉय चौधरी बताती हैं कि भारत ने दशकों तक सीमा तक जाने वाली सड़कें, पुल इत्यादि नहीं बनाए थे, इस डर से कि कहीं उनकी वजह से चीनी सैनिकों का भारत में और अंदर तक घुस आना आसान ना हो जाए. इस डर को भारत ने हाल ही में खत्म किया है और अब सीमा के इस तरफ भी सड़कें, पुल इत्यादि बनाए जा रहे हैं और कुछ जानकार ये आशंका व्यक्त करते हैं कि संभव है कि ये बात चीन को अखर रही हो.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच अप्रैल 2018 में चीन के वूहान में भी मुलाकात हुई थी.तस्वीर: Reuters/Handout

शशांक कहते हैं कि संभव है कि चीन इन झड़पों के जरिए इस निर्माण प्रक्रिया में रुकावटें खड़ी करने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन ये सड़कें भारत के लिए बहुत जरूरी है और इन पर काम आगे बढ़ना चाहिए.

हाथापाई वाली घटना को छोड़ कर इस साल अभी तक कोई और बड़ी घटना नहीं हुई है. लेकिन जब तक दोनों देशों के सीमा विवाद का समाधान नहीं हो जाता तब तक इन झड़पों के चलते रहने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. नीलोवा राय चौधरी कहती हैं कि दोनों देशों के बीच विशेष प्रतिनिधियों के बीच सीमा-विवाद पर जो बातचीत चल रही थी, वो पिछले दो सालों से बंद पड़ी है और अब तो वो तभी शुरू हो सकती हैं जब उन्हें कोई राजनीतिक धक्का मिले.

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