लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाओं के बीच एक मुठभेड़ में भारतीय सेना के दो सिपाही और एक वरिष्ठ अधिकारी मारे गए हैं. ये 40 सालों में ऐसा पहला मौका माना जा रहा है जब वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जानें गई हैं.
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लद्दाख में लगभग 40 दिनों से भारत और चीन की सेनाओं के बीच चल रहे गतिरोध ने एक खतरनाक मोड़ ले लिया है. मीडिया में आई कई खबरों के अनुसार लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच मुठभेड़ हुई है जिसमें भारतीय सेना के दो सिपाही और एक वरिष्ठ अधिकारी मारे गए हैं. ये कम से कम 40 सालों में ऐसा पहला मौका माना जा रहा है जब दोनों देशों के बीच असल नियंत्रण रेखा पर जानें गई हैं.
बताया जा रहा है कि घटना सोमवार रात को हुई. कुछ मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि मुठभेड़ में चीनी सेना के सिपाही भी मारे गए. अभी यह पूरी तरह से साफ नहीं हो पाया है कि मौके पर गोलियां चली थीं या सिपाही हाथापाई में ही मारे गए. बताया जा रहा है कि तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तर पर बातचीत चल रही है.
खबरों के अनुसार चीन ने आरोप लगाया है कि भारतीय सिपाही वास्तविक नियंत्रण रेखा पार कर चीन के इलाके में घुस गए थे जिसके बाद दोनों देशों के सिपाहियों के बीच मुठभेड़ हुई. भारत में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत और तीनों सेना प्रमुखों के साथ बैठक की है, जिसमे स्थिति का आकलन किया गया और आगे की रणनीति पर विचार किया गया.
पिछले छह सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग कई बार मिल चुके हैं.तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Z. Ling
लद्दाख में दोनों देशों के बीच पांच मई से कम से कम चार अलग अलग इलाकों में गतिरोध चल रहा है. सबसे पहले गतिरोध की खबर पैंगोंग झील से आई थी जहां दोनों सेनाओं के बीच हाथापाई की अनौपचारिक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. उसके बाद से तना-तनी अभी तक बनी हुई है. पिछले कुछ दिनों से दोनों देशों के बीच सैन्य स्तर पर बातचीत चल रही थी और कहा जा रहा था कि कम से कम गलवान घाटी में दोनों सेनाएं अपनी अपनी जगहों से पीछे हटने लगी हैं.
लेकिन कई समीक्षक लगातार कह रहे थे कि चीन के सैनिक बड़ी संख्या में भारतीय इलाके में घुस आए हैं और वो पीछे नहीं हट रहे हैं. ताजा हालात पर भी जानकारों का कहना है कि स्थिति अत्यंत संवेदनशील बन चुकी है. भारतीय सेना से सेवानिवृत्त अधिकारी और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ अजय शुक्ला ने ट्वीट कर के कहा कि ये बेहद दुखद इसलिए भी है क्योंकि गलवान वैली वो इलाका है जो 1962 से भारत के नियंत्रण में रहा है.
सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग ने कहा कि पिछले चार सप्ताह से चीन के इरादों को लेकर साफ चेतावनी के बावजूद सीमा पर जवानों की जानें जाना बेहद दर्दनाक है.
भारत और चीन का सीमा विवाद दशकों पुराना है. तिब्बत को चीन में मिलाये जाने के बाद यह विवाद भारत और चीन का विवाद बन गया. एक नजर विवाद के अहम बिंदुओं पर.
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लंबा विवाद
तकरीबन 3500 किलोमीटर की साझी सीमा को लेकर दोनों देशों ने 1962 में जंग भी लड़ी लेकिन विवादों का निपटारा ना हो सका. दुर्गम इलाका, कच्चा पक्का सर्वेक्षण और ब्रिटिश साम्राज्यवादी नक्शे ने इस विवाद को और बढ़ा दिया. दुनिया की दो आर्थिक महाशक्तियों के बीच सीमा पर तनाव उनके पड़ोसियों और दुनिया के लिए भी चिंता का कारण है.
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अक्साई चीन
काराकाश नदी पर समुद्र तल से 14000-22000 फीट ऊंचाई पर मौजूद अक्साई चीन का ज्यादातर हिस्सा वीरान है. 32000 वर्ग मीटर में फैला ये इलाका पहले कारोबार का रास्ता था और इस वजह से इसकी काफी अहमियत है. भारत का कहना है कि चीन ने जम्मू कश्मीर के अक्साई चीन में उसकी 38000 किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है.
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अरुणाचल प्रदेश
चीन दावा करता है कि मैकमोहन रेखा के जरिए भारत ने अरुणाचल प्रदेश में उसकी 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन दबा ली है. भारत इसे अपना हिस्सा बताता है. हिमालयी क्षेत्र में सीमा विवाद को निपटाने के लिए 1914 में भारत तिब्बत शिमला सम्मेलन बुलाया गया.
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किसने खींची लाइन
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने मैकमोहन रेखा खींची जिसने ब्रिटिश भारत और तिब्बत के बीच सीमा का बंटवारा कर दिया. चीन के प्रतिनिधि शिमला सम्मेलन में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इस समझौते पर दस्तखत करने या उसे मान्यता देने से मना कर दिया. उनका कहना था कि तिब्बत चीनी प्रशासन के अंतर्गत है इसलिए उसे दूसरे देश के साथ समझौता करने का हक नहीं है.
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अंतरराष्ट्रीय सीमा
1947 में आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन रेखा को आधिकारिक सीमा रेखा का दर्जा दे दिया. हालांकि 1950 में तिब्बत पर चीनी नियंत्रण के बाद भारत और चीन के बीच ऐसी साझी सीमा बन गयी जिस पर कोई समझौता नहीं हुआ था. चीन मैकमोहन रेखा को गैरकानूनी, औपनिवेशिक और पारंपरिक मानता है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा का दर्जा देता है.
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समझौता
भारत की आजादी के बाद 1954 में भारत और चीन के बीच तिब्बत के इलाके में व्यापार और आवाजाही के लिए समझौता हुआ. इस समझौते के बाद भारत ने समझा कि अब सीमा विवाद की कोई अहमियत नहीं है और चीन ने ऐतिहासिक स्थिति को स्वीकार कर लिया है.
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चीन का रुख
उधर चीन का कहना है कि सीमा को लेकर कोई समझौता नहीं हुआ और भारत तिब्बत में चीन की सत्ता को मान्यता दे. इसके अलावा चीन का ये भी कहना था कि मैकमोहन रेखा को लेकर चीन की असहमति अब भी कायम है.
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सिक्किम
1962 में दोनों देशों के बीच लड़ाई हुई. महीने भर चली जंग में चीन की सेना भारत के लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में घुस आयी. बाद में चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा पर वापस लौटी. यहां भूटान की भी सीमा लगती है. सिक्किम वो आखिरी इलाका है जहां तक भारत की पहुंच है. इसके अलावा यहां के कुछ इलाकों पर भूटान का भी दावा है और भारत इस दावे का समर्थन करता है.
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मानसरोवर
मानसरोवर हिंदुओं का प्रमुख तीर्थ है जिसकी यात्रा पर हर साल कुछ लोग जाते हैं. भारत चीन के रिश्तों का असर इस तीर्थयात्रा पर भी है. मौजूदा विवाद उठने के बाद चीन ने श्रद्धालुओं को वहां पूर्वी रास्ते से होकर जाने से रोक दिया था.
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बातचीत से हल की कोशिश
भारत और चीन की ओर से बीते 40 सालों में इस विवाद को बातचीत के जरिए हल करने की कई कोशिशें हुईं. हालांकि इन कोशिशों से अब तक कुछ ख़ास हासिल नहीं हुआ. चीन कई बार ये कह चुका है कि उसने अपने 12-14 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद बातचीत से हल कर लिए हैं और भारत के साथ भी ये मामला निबट जाएगा लेकिन 19 दौर की बातचीत के बाद भी सिर्फ उम्मीदें ही जताई जा रही हैं.