'भारत जर्मनी की विश्व राजनीति में अहम भूमिका'
१६ जुलाई २०१२![](https://static.dw.com/image/15734375_800.webp)
भारत में जर्मनी के नए राजदूत मिशाएल श्टाइनर ने औपचारिक तौर पर पद संभालने के बाद कहा कि भारत और जर्मनी के संबंध हर हालात में एक आदर्श जोड़े की तरह हैं और दनिया इस समय जिन चुनौतियों से गुजर रही है, उसमें दोनों काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं. उन्होंने कहा कि यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और जर्मनी भारत का सबसे बड़ा यूरोपीय साझेदार है. दोनों देशों ने इस साल 20 अरब यूरो के कारोबार का लक्ष्य तय किया है और उम्मीद है कि सभी परेशानियों के बावजूद इस लक्ष्य को हासिल किया जा सकेगा. हालांकि उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच सहयोग की जितनी व्यापक संभावना हैं, उनका पूरा फायदा नहीं उठाया जा सका है.
श्टाइनर के मुताबिक भारत में बहुत सारे प्रशिक्षित लोग हैं और आने वाले दो दशक युवाओं के होंगे. जर्मनी में आबादी के घटने से उसे अपने औद्योगिक विकास को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित और कुशल लोगों के लिए बाकी देशों पर निर्भर रहना होगा. ऐसे में जर्मनी ने भारत में युवाओं को वोकेशनल ट्रेनिंग देने की विशेष योजना तैयार की है जिस पर काम शुरू हो गया है. उन्होंने कहा कि जर्मनी विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत के उच्च शोध संस्थानों के साथ विश्वविद्यालय और कॉलेज के स्तर पर भी सहयोग कर रहा है.
दुनिया में मुसलमानों की दूसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में रहती है. इस सिलसिले में श्टाइनर से पूछा गया कि क्या उन्होंने मुसलमानों के साथ संपर्क का विशेष कार्यक्रम बनाया है, तो जर्मन राजदूत ने कहा कि जब वह जर्मनी और भारत के बीच संबंधों को बेहतर बनाने के लिए अपनी जिम्मेदारियों की बात करते हैं तो इसमें मुसलमानों के साथ संपर्क भी शामिल है. मिशाएल श्टाइनर ने कहा, "मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि किसी भी देश में रहने वाले सभी समूहों में अगर यह विश्वास जगाया जाए कि उनका सम्मान किया जाता है, कि यह देश उनका अपना देश है और उनके साथ समान व्यवहार किया जाय तो यह सबके लिए अच्छा है.''
मिशाएल श्टाइनर नई दिल्ली में राजदूत का पद संभालने से पहले पाकिस्तान और अफगानिस्तान के लिए जर्मनी के राजदूत की जिम्मेदारियां निभा चुके हैं. उन्होंने स्वीकार किया कि अफगानिस्तान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने और जर्मनी ने खुद भी कई गलतियां कीं, "गलती करना एक बात है, लेकिन दूसरी बात यह है कि मौजूदा हालात में आप क्या कर सकते हैं. हमने काफी कोशिशें की, जिसमें सफल भी रहे और हमने कई चीजें सीखी हैं." उन्होंने कहा, "हमने सीखा है कि सोवियत रूस ने अफगानिस्तान में जो गलतियां की वह हमें नहीं करनी चाहिएं".
जर्मन राजदूत ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि जर्मनी या अमेरिका में ज्यादातर लोग अफगानिस्तान में उनकी सेनाओं की मौजूदगी के पक्ष में नहीं हैं और विदेशी सेना किसी देश में शांति और स्थिरता का काम हमेशा नहीं कर सकती. इसके लिए राजनीतिक हल निकालना होगा. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में स्थिरता के लिए जारी विकास में पाकिस्तान को साथ लेना होगा और अगर इसमें कोई शक है तो उसे दूर किया जाना चाहिए. श्टाइनर ने इसे सकारात्मक प्रगति बताया कि तालिबान भी बातचीत के लिए तैयार हैं. उन्होंने बहरहाल विश्वास के साथ कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान के दोबारा सत्ता में आने की संभावना नहीं है .
रिपोर्टः इफ्तिखार गिलानी, नई दिल्ली
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन