चंद्रयान-2 ऑर्बिटर ने चांद की सतह पर गिरे लैंडर विक्रम को खोज लिया है. इसरो के वैज्ञानिक अब यह जानना चाहते हैं कि लैंडर आखिरी पलों में इतनी तेजी से चांद पर कैसे गिरा.
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक चांद की सतह पर गिरे लैंडर विक्रम से संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं. रविवार को चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे ऑर्बिटर ने लैंडर को खोज लिया. ऑर्बिटर ने लैंडर की थर्मल इमेज भी ली. ये तस्वीरें बेंगलुरू में इसरो के ट्रैंकिंग सेंटर में आ रही हैं. इसरो के चैयरमैन के सिवन ने कहा, "वह एक हार्ड लैंडिंग रही होगी."
हार्ड लैंडिंग का मतलब है कि लैंडर चांद की सतह पर बड़ी तेजी से गिरा होगा. इसरो के मुताबिक लैंडर को 18 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से लैंड करने लायक बनाया गया था. शनिवार को चांद की सतह पर उतरने की फाइलन एप्रोच के दौरान लैंडर से संपर्क टूट गया. इसरो के मुताबिक चांद की सतह से 2.1 किलोमीटर की दूरी तक सब कुछ योजना के मुताबिक जा रहा था. वैज्ञानिकों को आशंका है कि आखिरी फेज में ब्रेकिंग के दौरान कोई चूक हुई.
1,471 किलोग्राम के लैंडर विक्रम के भीतर प्रज्ञान नाम का एक रोवर (रोबोटिक व्हीकल) भी था. 27 किलोग्राम भारी और छह पहियों वाले प्रज्ञान रोवर को चांद के दक्षिणी ध्रुव के करीब पानी का सुराग खोजना था. लेकिन रोवर अब भी लैंडर के भीतर ही बंद है. अभी यह भी पता नहीं चल सका है कि लैंडर चांद की सतह पर सीधा गिरा है या उल्टा या पलटा पड़ा है.
करीब 14 करोड़ डॉलर के चंद्रयान-2 मिशन का लक्ष्य 2008 की खोज को आगे बढ़ाना था. इसरो ने 2008 में चंद्रयान-1 चांद पर भेजा था. उस मिशन ने पृथ्वी के प्राकृतिक उपग्रह चंद्रमा पर बर्फ के रूप में मौजूद पानी के पुख्ता सुराग जुटाए थे.
चंद्रयान-2 को 22 जुलाई 2019 को आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था. 13 अगस्त को यान ने पृथ्वी की अंतिम कक्षा छोड़ चांद का रुख किया. 20 अगस्त को यान चंद्रमा के पोलर ऑर्बिट में पहुंचा. इसके बाद दो सितंबर को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर से विक्रम लैंडर अलग हुआ और चार दिन बाद लैंडर की चांद के दक्षिणी ध्रुव पर क्रैश लैंडिंग हुई.
चंद्रमा की सतह पर सफलता से उतरने का कारनामा अब तक अमेरिका, रूस (सोवियत काल में) और चीन ही कर सके हैं. विफल लैंडिंग के बावजूद भारत की इस कोशिश की प्रशंसा हो रही है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी का कहना है कि मिशन 90 से 95 फीसदी लक्ष्य प्राप्त कर चुका है. ऑर्बिटर योजना के मुताबिक चांद की परिक्रमा कर रहा है और जानकारी जुटा रहा है.
लैंडर से संपर्क साधने की कोशिश 20 सितंबर तक जारी रहेगी. उसके बाद चांद के दक्षिणी छोर पर अंधकार छा जाएगा. लैंडर को प्रकाश वाले दो हफ्तों के दौरान ही वहां सक्रिय रहना था. उम्मीद थी कि इसी दौरान प्रज्ञान चांद की सतह की मैपिंग करेगा, उसके नमूने लेगा और उनकी समीक्षा करेगा.
'नंगे भूखों का देश आसमान को छूने चला है' - भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर पश्चिम के कुछ देशों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों की मेहनत ने ऐसे आलोचकों को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Indian Space Research Organisation
1962
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विक्रम साराभाई के अगुवाई में इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की स्थापना की. संस्थापकों में साराभाई के साथ वैज्ञानिक केआर रमणनाथन भी थे.
तस्वीर: Keystone/Getty Images
1963
केरल के थुंबा गांव में पहला रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र बनाने की तैयारी हुई. विषुवत रेखा के करीब होने के वजह से इस जगह का चुनाव किया गया. लेकिन बिल्कुल उपयुक्त जमीन पर सेंट मैरी माग्देलेने चर्च था. साराभाई ने चर्च के पादरी से बातचीत की. अंतरिक्ष में भारत का सपना पूरा करने के लिए चर्च ने भी अपनी जमीन विज्ञान के नाम कर दी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1963
चर्च की जमीन पर बने थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉचिंग स्टेशन से ही भारत ने पहली बार ऊपरी वायुमंडल तक जाने वाला रॉकेट लॉन्च किया. यह भारत के अंतरिक्ष इतिहास का पहला प्रक्षेपण था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. D´Souza
1969
अंतरिक्ष रिसर्च को भारत के विकास से जोड़ने के इरादे से एक खास संगठन इसरो की स्थापना की गई. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना में भी विक्रम साराभाई का अहम योगदान था.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
1971
आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्पेस सेंटर की स्थापना की गई. लेकिन इसी साल विक्रम साराभाई का निधन भी हुआ. उनके निधन के बाद मशहूर गणितज्ञ सतीश धवन इसरो के चैयरमैन बने. धवन की याद में अब श्रीहरिकोटा के सेंटर को सतीश धवन स्पेस सेंटर कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ISRO
1975
19 अप्रैल 1975 को भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट अंतरिक्ष में लॉन्च किया. पूरी तरह भारत में ही डिजायन की गई इस सैटेलाइट को रूस के सहयोग से अंतरिक्ष में भेजा गया. भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान में यह घटना भी मील का पत्थर है.
तस्वीर: ISRO
1979
भारत ने पहली एक्सपेरिमेंटल रिमोट-सेंसिंग सैटेलाइट भास्कर-1 अंतरिक्ष में भेजी. इसके द्वारा भेजी गई तस्वीरों से जंगलों और मौसम के बारे में जानकारियां मिली.
तस्वीर: picture-alliance/AP
1980
भारत ने पहली बार अंतरिक्ष तक जाने वाले रॉकेट सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल-3 (एसएलवी-3) का परीक्षण किया. इसके सफल परीक्षण के बाद भारत खुद अपने उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने में सक्षम हो गया. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ही इस प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे. 1980 में इसी रॉकेट की मदद से सैटेलाइट रोहिणी को अंतरिक्ष में भेजा गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Kodikara
1984
एक संयुक्त मानव मिशन के तहत सोवियत संघ और भारत ने अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा. इसी अभियान के जरिए राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय एस्ट्रोनॉट बने. शर्मा ने सोवियत अंतरिक्ष स्टेशन में आठ दिन बिताए.
तस्वीर: Dibyangshu Sarkar/AFP/Getty Images
1993
भारत ने बेहद भरोसेमंद लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी बनाया. 1994 के बाद से अब तक पीएसएलवी भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट बना रहा. इसने दर्जनों सैटेलाइटें और चंद्रयान व मंगलयान जैसे ऐतिहासिक मिशनों को अंजाम दिया.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times
1999
पीएसएलवी लॉन्च व्हीकल की मदद से भारत ने विदेशी सैटेलाइटों को भी अंतरिक्ष में स्थापित करना शुरू किया. भारत अब तक 33 देशों की 200 से ज्यादा सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में पहुंचा चुका है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendran
2008
इस मोड़ तक आते आते भारत अंतरिक्ष के मामले में बड़ी शक्ति बन गया. देश ने संचार, प्रसारण, शोध और सामरिक उद्देश्यों के लिए सैटेलाइटों का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया. 2008 में चांद को छूने की ख्वाहिश में भारत ने भरोसेमंद पीएसएलवी से चंद्रयान-1 भेजा. यह भी ऐतिहासिक सफलता थी.
तस्वीर: picture alliance/Indian Space Research Organisati/ISRO
2014
जनवरी 2014 में भारत ने पहले अंतरग्रहीय मिशन का आगाज करते हुए मंगलयान भेजा. सितंबर में मंगल की कक्षा में पहुंचे मंगलयान ने अंतरिक्ष में भारत की कामयाबी का एक और झंडा गाड़ा.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Sajjad Hussain
2017
एक ही रॉकेट से 104 सैटेलाइटों की उनकी कक्षा में स्थापित कर भारत ने सबको चौंका दिया.
तस्वीर: AFP/Getty Images/Manjunath Kiran
2018
15 जुलाई को भारत ने चंद्रमा के लिए अपना दूसरा मानवरहित मिशन चंद्रयान-2 भेजा. चंद्रयान-1 के जरिए दुनिया को चांद पर पानी होने के ठोस सबूत मिले. चंद्रयान-2 अब रिसर्च को और गहराई में ले जाएगा.