ग्लोबल इनोवेशन सूचकांक में भारत निचली मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में से तीसरा सबसे ज्यादा इनोवेटिव देश बन गया है. सरकार ने इसके लिए देश में सरकारी और निजी शोध संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले अद्भुत कार्य को श्रेय दिया है.
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भारत पहली बार ग्लोबल इनोवेशन सूचकांक में सबसे ऊपर के 50 देशों में अपनी जगह बनाने में सफल हो गया है. पिछले साल भारत 52वें स्थान पर था, पर इस साल अंकों में और सुधार कर 48वें स्थान पर पहुंच गया. यह सूची वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी आर्गेनाईजेशन (वीपो) , कॉर्नेल विश्वविद्यालय और इनसीएड बिजनेस द्वारा जारी की गई है. सूची में कुल 131 देश हैं जिनमें सबसे ऊपर स्विट्जरलैंड, उसके बाद स्वीडन, अमेरिका, यूके और फिर नीदरलैंड्स ने स्थान पाया है.
ऊपर के दसों स्थान धनी देशों ने हासिल किए हैं. वीपो ने एक बयान में कहा कि सूचकांक में शीर्ष स्थानों पर तो स्थिरता है लेकिन रैंकिंग का "इनोवेशन के एक ठिकाने के रूप में पूरब की तरफ लगातार खिसकना" भी नजर आ रहा है. सूचकांक के मुताबिक चीन, भारत, फिलीपींस और वियतनाम जैसी एशियाई अर्थव्यवस्थाएं पिछले कुछ सालों में रैंकिंग में काफी आगे बढ़ी हैं.
वीपो ने कहा कि भारत निचली मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में से तीसरा सबसे ज्यादा इनोवेटिव देश बन गया है. कुछ श्रेणियों में तो भारत का स्थान सबसे ऊपर के पंद्रह देशों के बीच है. इनमें सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, ऑनलाइन सरकारी सेवाएं, विज्ञान और इंजीनियरिंग में स्नातकों की संख्या और रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर ध्यान देनी वाली वैश्विक कंपनियों का होना शामिल है.
और मापदंडों में संस्थाएं, मानव संसाधन और शोध, इंफ्रास्ट्रक्चर, मार्केट सोफिस्टिकेशन और बिजनेस सोफिस्टिकेशन, नॉलेज और तकनीकी आउटपुट और रचनात्मक आउटपुट शामिल हैं. सूचकांक की शुरुआत 2007 में हुई थी. भारत सरकार ने रैंकिंग का स्वागत किया है और कहा है कि कोविड-19 महामारी के बीच यह खबर भारत के लिए प्रेरणादायक है और यह भारत के मजबूत रिसर्च एंड डेवलपमेंट इकोसिस्टम का सबूत है.
सरकार ने इस रैंकिंग में भारत के निरंतर सुधार के लिए देश में ज्ञान संसाधन के भंडार, मजबूत स्टार्टअप इकोसिस्टम और सरकारी और निजी शोध संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले अद्भुत कार्य को श्रेय दिया है. सरकार ने इस दिशा में नीति आयोग के प्रयासों की भी सराहना की है. आयोग ने इसी सूचकांक की तर्ज पर पिछले साल इंडिया इनोवेशन इंडेक्स भी शुरू किया था जिसके जरिए वो लगातार नीतिगत इनोवेशन के प्रति राष्ट्रीय कोशिशों को सबसे अनुकूल तरीके से काम में ला रहा है.
बिजली से चलने वाले वाहन, बायो टेक्नोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी, अंतरिक्ष, वैकल्पित ऊर्जा के स्त्रोत जैसे कई क्षेत्रों में इनोवेशन को बढ़ावा दिया जा रहा है. सरकार ने अगली सूची में 25वां स्थान हासिल करने का लक्ष्य तय किया है.
जीएसटी के ढांचे की वजह से सरकारी खजाने पर तालाबंदी की मार
तालाबंदी लागू होने के बाद से जीएसटी के तहत होने वाली सरकार की कमाई में गिरावट आई है. जानिए काम-धंधे शुरू हो जाने के बाद भी क्यों गिर रही है जीएसटी वसूली से होनी वाली सरकारी आय.
तस्वीर: DW/S. Bandyopadhyay
वसूली में कमी
जीएसटी वसूली से होने वाली सरकारी कमाई में पिछले साल के मुताबिक लगातार गिरावट आ रही है. जहां पिछले साल अप्रैल के महीने में 1,13,865 करोड़ रुपयों की वसूली हुई थी, इस साल अप्रैल में सिर्फ 32,172 करोड़ रुपए आए.
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तालाबंदी का असर
मई में जीएसटी वसूली लगभग दोगुनी हो कर 62,151 करोड़ तक जरूर पहुंची, लेकिन यह संख्या भी मई 2019 के 1,00,289 करोड़ रुपयों के मुकाबले काफी कम रही. सरकार ने कहा है कि महामारी की वजह से 2020-21 वित्त वर्ष में जीएसटी वसूली से कमाई में 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी आई है.
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करदाताओं की मेहरबानी
जून में इसमें और वृद्धि हुई और वसूली की राशि 90,917 करोड़ रुपयों पर पहुंच गई. लेकिन फिर भी यह एक साल पहले के 99,939 करोड़ रुपयों से कम ही रही. सरकार का कहना है कि जून में बड़ी संख्या में करदाताओं ने फरवरी, मार्च और अप्रैल का टैक्स भी जमा किया क्योंकि उन्हें जून तक कॉविड-19 की वजह से छूट मिली हुई थी.
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असलियत
जुलाई में इसी वजह से जीएसटी वसूली की रकम में संशोधन हुआ और वो गिर कर 87,422 करोड़ पर आ गई. यह जुलाई 2019 की वसूली (10,2082 करोड़ रुपए) के मुकाबले 14 प्रतिशत कम है.
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स्वाभाविक कमी
जानकारों का कहना है कि जीएसटी की वसूली में कटौती होना स्वाभाविक है, क्योंकि एक तो कई काम-धंधे और खरीद-बिक्री अभी भी बंद हैं, दूसरे तालाबंदी में ढील के बाद से जो आर्थिक गतिविधि शुरू हुई है वो उन्हीं उत्पादों और सेवाओं में हो रही है जिन पर कम दर से जीएसटी लगता है.
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जीएसटी का ढांचा
जीएसटी का ढांचा ही ऐसा है कि जरूरी सेवाएं और खाने-पीने की चीजों को निचली कर श्रेणी में रखा गया है, विलास यानी लक्जरी सेवाओं और वस्तुओं को ऊंची कर श्रेणी में रखा गया है. तालाबंदी में ढील भी सिर्फ जरूरी सेवाओं और उत्पादों की बिक्री में दी गई है. लक्जरी श्रेणी की सेवाएं तो अब तक बंद हैं.
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जीएसटी से छूट
रोज की खपत के सामान जैसे फल, सब्जियां, दूध, आटा, नमक, किताबें, अखबार और 1,000 रुपए से कम किराए वाले होटलों पर जीएसटी लगता ही नहीं. तालाबंदी में भी इनमें से अधिकतर चीजें बिक ही रही थीं.
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आवश्यक वस्तुएं
दवा, चाय, कॉफी, मसाले, पैकेज्ड खाने-पीने की चीजों, खाद, रेल टिकटों, इकोनॉमी श्रेणी की हवाई टिकटों और छोटे रेस्तरां इत्यादि पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगता है. यह भी लगभग आवश्यक वस्तुएं ही हैं और इनकी भी खपत हो रही है.
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12 प्रतिशत जीएसटी
मक्खन, चीज, घी, ड्राई फ्रूट, मोबाइल फोन, ताश, शतरंज और कैरम जैसे खेल, 1,000 रुपये से ज्यादा महंगे कपड़े, बिना एसी वाले रेस्त्रां, बिजनेस श्रेणी के हवाई टिकट, काम के अनुबंधों जैसी चीजों पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगता है. ये चीजें थोड़ी महंगी हैं और जिनके बजट सीमित हैं वो इन पर खर्च नहीं कर रहे हैं.
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लक्जरी की ओर
बिस्किट, कॉर्नफ्लेक्स, केक, पेस्ट्री, जैम, सूप, आइसक्रीम, कैमरा, स्पीकर, प्रिंटर, नोटबुक, स्टील का सामान, शराब परोसने वाले एसी रेस्त्रां, पांच-सितारा और लक्जरी होटलों के अंदर स्थित रेस्त्रां, टेलीकॉम सेवाएं, आईटी सेवाएं, ब्रांडेड कपड़े इत्यादि पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है. होटल, रेस्त्रां हाल तक बंद थे.
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शुद्ध लक्जरी श्रेणी
बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, डिओडरंट, शेविंग क्रीम, शैम्पू, वाटर हीटर, वॉशिंग मशीन, गाड़ियां, मोटरसाइकिलें, पांच-सितारा होटलों के किराए और 100 रुपए से महंगे सिनेमा-घर के टिकट इत्यादि पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगता है. सिनेमाघर अभी भी बंद हैं और गाड़ियों की बिक्री पहले से काफी कम हो रही है.