गर्मियों में जब आप नया एसी खरीदने जाएंगे तो आपको 24 डिग्री पर चलने वाले एसी ही मिलेंगे. ऊर्जा मंत्रालय ने एयर कंडीशनर में डिफॉल्ट तापमान 24 डिग्री तय कर दिया है. एसी शुरू होने के बाद तापमान को कम ज्यादा किया जा सकेगा.
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तापमान की डिफॉल्ट सेंटिंग 24 डिग्री पर एसी चलने से सालाना 4000 रुपये की बिजली की बचत संभव है. हालांकि अगर एसी शुरू होने के बाद कोई तापमान को डिफॉल्ट सेंटिंग से कम या ज्यादा करना चाहता है तो वह कर पाना मुमकिन होगा. ऊर्जा मंत्रालय के नोटिफिकेशन के मुताबिक नए साल में नई सेटिंग के साथ ही रूम एयर कंडीशनर बनेंगे. सभी ब्रांडों के स्टार रेटिंग वाले एसी के लिए सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किए हैं. नए नियम 1 जनवरी 2020 से लागू हो चुके हैं. इस नियम के तहत सभी रूम एयर कंडीशनरों में 24 डिग्री सेल्सियस की डिफॉल्ट तापमान सेंटिंग होगी.
बिजली बचत के नियम तय करने वाली एजेंसी ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई) के साथ विचार करने के बाद सरकार ने रूम एसी के लिए नए उर्जा कार्य प्रदर्शन मानक तय किए हैं. नए मानकों के मुताबिक, "स्टार लेबल वाले सभी ब्रांड और सभी प्रकार के रूम एयर कंडीशनरों यानी मल्टी स्टेज कैपेसिटी एयर कंडीशनर और स्प्लिट एयर कंडीशनरों को 10,465 वॉट (9,000 किलो कैलोरी/घंटा) की कूलिंग क्षमता तक की आपेक्षिक ऊर्जा, दक्षताओं के आधार पर एक से पांच स्टार तक रेटिंग दी गई है. जिन मशीनों का भारत में निर्माण किया गया है या व्यावसायिक रूप से खरीदा या बेचा गया है, वे सभी 1 जनवरी 2020 से चौबीस डिग्री सेल्सियस पर कमरे के एयर कंडीशनर में तापमान की डिफॉल्ट सेटिंग सुनिश्चित करेंगे."
ऊर्जा और पैसे की बचत
बीईई के मुताबिक एसी के 24 डिग्री सेल्सियस तापमान डिफॉल्ट सेटिंग होने से 24 फीसदी तक की ऊर्जा की बचत हो सकती है. जापान और अमेरिका जैसे देश पहले ही एसी के तापमान को लेकर नियम तय कर चुके हैं. जापान ने एसी में डिफॉल्ट तापमान को 28 डिग्री सेल्सियस पर तय किया है. अमेरिका के कुछ इलाकों में एसी के तापमान को 26 डिग्री से कम नहीं करने का नियम है.
बीईई ने 2006 में स्थिर गति रूम एयर कंडीशनरों के लिए स्टार लेबलिंग कार्यक्रम शुरू किया था. यह कार्यक्रम 12 जनवरी 2009 को अनिवार्य बना दिया गया. बीईई के मुताबिक रूम एयर कंडीशनरों के लिए स्टॉर लेबलिंग कार्यक्रम ने अकेले वित्तीय वर्ष 2017-18 में अनुमानित 4.6 अरब यूनिट ऊर्जा बचत की है और इसके अलावा 3.8 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन कम करने में मदद मिली है. बीईई को उम्मीद है कि सभी उपभोक्ता अगर इस नियम का पालन कर लेते हैं तो भारत भविष्य में 23 अरब यूनिट बिजली की बचत कर लेगा.
तेजी से गर्म होती दुनिया का लोगों पर क्या हो रहा है असर
मौसम विज्ञानियों ने चेतावनी दी कि पिछला दशक अब तक का सबसे गर्म दशक साबित हो सकता है. स्पेन में हो रहे जलवायु सम्मेलन में विशेषज्ञों ने तेजी से गल रहे समुद्री बर्फ और समुद्र की भयावहता का चित्रण किया.
तस्वीर: Imago Images/Science Photo Library
बाढ़ और गर्म हवाओं का बढ़ा प्रकोप
जेनेवा स्थित विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा पृथ्वी की जलवायु का वार्षिक मूल्यांकन किया गया. इसमें ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के उद्देश्य से 2015 के पेरिस समझौते की मुख्य बातों को रेखांकित किया गया. डब्ल्यूएमओ सेक्रेट्री जनरल पेटेरी टालस ने कहा, "पहले सैकड़ों सालों में एक बार बाढ़ या गर्म हवाएं चलने जैसी बात होती थी लेकिन अब यह अकसर हो रहा है."
तस्वीर: Reuters/A. Campeanu
रिकॉर्ड स्तर पर तापमान
पेटेरी ने कहा, "बहामास और जापान से लेकर मोजाम्बिक तक के देशों ने विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के प्रभाव को झेला है. आर्कटिक और ऑस्ट्रेलिया तक के जंगलों में आग लगी." पांच साल (2015-2019) और 10 साल (2010-2019) की अवधि का औसत तापमान रिकॉर्ड स्तर पर होना लगभग तय है. साल 2019 दूसरा या तीसरा सबसे गर्म वर्ष हो सकता है.
तस्वीर: Lamd Rover/N. Dimbleby
समुद्री जीवन पर प्रभाव
इस समय समुद्र का पानी औद्योगिक युग की शुरुआत के वक्त से 26 प्रतिशत ज्यादा अम्लीय हो चुका है. इसका सीधा असर समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ा है. कई सारे समुद्री जीवों के विलुप्त होने का खतरा उत्पन्न हो गया है.
आर्कटिक समुद्र में सितंबर और अक्टूबर महीने में सबसे कम बर्फ रिकॉर्ड किया गया. इस साल अंटार्कटिका में भी कई बार कम बर्फ देखा गया.
तस्वीर: Imago Images/ingimage
लोगों को नहीं मिल रहा खाना
जलवायु परिवर्तन का असर भोजन पर भी पड़ रहा है. वैश्विक स्तर पर भूख से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ी है. 2018 में 82 करोड़ से ज्यादा लोग भूख से प्रभावित हुए.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua
प्राकृतिक आपदा का कहर
जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया के कई हिस्सों में प्राकृतिक आपदाएं आ रही है. लोग बेघर हो रहे हैं. भारत से लेकर उत्तरी रूस तक में बारिश का पैटर्न बदल गया है. कहीं ज्यादा बारिश की वजह से बाढ़ आ रही है तो कहीं बारिश न होने की वजह से सुखाड़.
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Karumba
वातावरण में बढ़ रही कार्बन की मात्रा
रिपोर्ट में कहा गया है कि वातावरण में कार्बन की मात्रा तेजी से बढ़ रही है. वातावरण में CO2 की सांद्रता 2018 में 407.8 पार्ट्स प्रति मिलियन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. 2019 में यह और बढ़ने की संभावना है. जबकि संयुक्त राष्ट्र ने 400 पार्ट्स प्रति मिलियन को ही 'अकल्पनीय' बताते हुए चेतावनी दी थी.