पड़ोसी देशों के लिए सरकारी ठेकों के नियम कड़े किए गए
२४ जुलाई २०२०
भारत सरकार ने अब सरकारी ठेकों के लिए आवेदन करने वाली पड़ोसी देशों की कंपनियों के लिए पहले से पंजीकरण और सुरक्षा एजेंसियों से स्वीकृति को भी अनिवार्य कर दिया है. इसे चीन के खिलाफ उठाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है.
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केंद्र सरकार ने गुरूवार 23 जुलाई को कहा कि सरकारी ठेकों के लिए आवेदन करने वाली पड़ोसी देशों की कंपनियों को पहले से अपना पंजीकरण कराना पड़ेगा और सुरक्षा एजेंसियों से भी स्वीकृति लेनी होगी. इसे मुख्य रूप से चीन के खिलाफ उठाए गए कदम के रूप में देखा जा रहा है. सरकार ने कहा कि यह निर्णय "भारत की रक्षा और राष्टीय सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए" लिया गया."
भारत चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और भूटान से सीमा साझा करता है, लेकिन सरकार के वक्तव्य में किसी भी देश का नाम नहीं लिया गया. वक्तव्य में सरकार ने कहा, "भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों की कोई भी कंपनी भारत सरकार की किसी भी खरीद के लिए तभी आवेदन कर पाएगी जब वो "कॉम्पीटेंट अथॉरिटी" के साथ पंजीकृत हो. विदेश और गृह मंत्रालयों से राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी स्वीकृति भी अनिवार्य होगी."
गुरूवार देर रात जारी किए गए आदेश में केंद्र सरकार ने कहा कि नियम सरकारी बैंकों, वित्तीय संस्थानों और सरकारी उपक्रमों द्वारा जारी की गई सभी निविदाओं या टेंडरों पर लागू होंगे. कई चीनी कंपनियों को सलाह देने वाली कानूनी कंपनी लिंक लीगल के एक पार्टनर संतोष पाई का कहना है, "ये अपेक्षित था क्योंकि चीन को एक प्रभावशाली संदेश देने के लिए सरकारी खरीद ही सरकार के पास सबसे मजबूत तरीका है."
चिकित्सा संबंधी सामान को इस आदेश की परिधि से बाहर रखा गया है. सरकार ने कहा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी की रोकथाम के लिए 31 दिसंबर, 2020 तक चिकित्सा संबंधी सामान की खरीद को नए नियमों से छूट प्राप्त रहेगी. नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने टिप्पणी के लिए अनुरोध पर तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
ये घोषणा अप्रैल में जारी किए गए एक आदेश के बाद आई है जिसके तहत पड़ोसी देशों से निवेश के प्रस्तावों के लिए भी जांच से गुजरना अनिवार्य कर दिया गया था. उस आदेश में चीन का नाम नहीं लिया गया था, लेकिन उस कदम से वो चीनी कंपनियां नाराज जरूर हुई थीं जो भारत में बड़े रूप में मौजूद हैं. बीजिंग ने नीति को भेदभाव-पूर्ण बताया था.
जून में भारत-चीन सीमा पर हुई एक मुठभेड़ में 20 भारतीय सैनिकों के मारे जाने के बाद भारत में चीनी कंपनियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. भारत ने चीनी मूल के 59 ऐप्स बैन कर दिए हैं, जिनमें बाइटडांस का टिक टॉक ऐप और अली बाबा का यूसी ब्राउजर भी शामिल हैं. सरकार ने सुरक्षा संबंधी चिंताओं को इस बैन का आधार बताया है.
गलवान घाटी की घटना के बाद भारत में एक बार फिर चीन के उत्पादों के बहिष्कार की मांगें उठ रही हैं. क्या भारत चीन का आर्थिक बहिष्कार कर सकता है? इसका जवाब जानने के लिए दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों की तरफ देखना पड़ेगा.
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निवेश
मांग उठ रही है कि भारत में चीनी कंपनियों द्वारा निवेश को रोका जाए. भारत सरकार के अनुसार, 2019 में भारत में चीनी निवेश का मूल्य मात्र 19 करोड़ डॉलर था. हालांकि 100 से भी ज्यादा चीनी कंपनियां भारत में अपने दफ्तर खोल चुकी हैं.
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टेक्नोलॉजी क्षेत्र
एक अनुमान के मुताबिक 2019-20 में चीनी तकनीकी कंपनियों ने दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में ही निवेश किया. भारत में एक अरब डॉलर के मूल्य वाली 'यूनिकॉर्न' कही जाने वाली स्टार्टअप कंपनियों में से दो-तिहाई में भारी चीनी निवेश है.
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व्यापार घाटा
जानकार कहते हैं कि निवेश से ज्यादा चीन भारत पर व्यापार के जरिए हावी है. चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार पार्टनर है. भारत सरकार के अनुसार 2019 में दोनों देशों के बीच 84 अरब डॉलर का व्यापार हुआ. लेकिन इस व्यापार का तराजू चीन के पक्ष में भारी रूप से झुका हुआ है. 2019 में भारत ने चीन से 68 अरब डॉलर का सामान खरीदा और चीन ने भारत से सिर्फ 16.32 अरब डॉलर का सामान खरीदा.
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बिजली उपकरण
भारत चीन से सबसे ज्यादा बिजली की मशीनें और उपकरण खरीदता है. उद्योग संस्था पीएचडी चैम्बर्स के अनुसार 2016 में भारत ने चीन से 20.87 अरब डॉलर की कीमत के बिजली के उपकरण, मशीनें, पुर्जे, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन इत्यादि खरीदे.
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भारी मशीनें
2016 में ही भारत ने चीन से 10.73 अरब डॉलर मूल्य की भारी मशीनें, यंत्र, परमाणु रिएक्टर, बॉयलर और इनके पुर्जे खरीदे.
इसी अवधि में भारत ने चीन से 5.59 अरब डॉलर के ऑरगैनिक केमिकल खरीदे. इनमें बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक और दवाएं बनाने की केमिकल सामग्री शामिल हैं.
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प्लास्टिक
2016 में भारत ने चीन से 1.84 अरब डॉलर का प्लास्टिक का सामान खरीदा. इसमें वो सब छोटे छोटे सामान आते हैं जो आप बड़े सुपरमार्केट से लेकर खुली सड़क पर लगने वाली हाटों से खरीद कर घर लाते हैं.
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जहाज और नाव
भारत नाव, जहाज और अन्य तैरने वाले ढांचे भी बड़ी मात्रा में चीन से ही लेता है. 2016 में भारत ने चीन से 1.78 अरब डॉलर के नाव, जहाज इत्यादि खरीदे.
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लोहा और स्टील
इस श्रेणी में भी भारत चीन से बहुत सामान खरीदता है. 2016 में 1.65 अरब डॉलर मूल्य का लोहे और स्टील का सामान खरीदा गया था.