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भारत ने 26/11 से पहले किया था आगाह

३ फ़रवरी २०११

भारत ने 26/11 के आतंकवादी हमले से पहले ही अमेरिका को आगाह किया था कि पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों में अचानक 'गोरे चेहरे' बढ़ने लगे हैं और चरमपंथी देसी बमों को खतरनाक अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं.

तस्वीर: AP

खुफिया दस्तावेजों को सामने लाने वाली विकीलीक्स ने 30 मई, 2008 का एक केबल संदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि उस वक्त के भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन ने अमेरिकी सीनेटरों रुस फीनगोल्ड और बॉब केसी को दिल्ली में इस बात की जानकारी दी थी. केबल के मुताबिक नारायणन ने कहा है कि भारत और अमेरिका का सहयोग सिर्फ व्यापार और रक्षा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आपसी लगाव की हद तक पहुंच चुका है.

जब आतंकवाद पर बात हुई, तो नारायणन ने बताया कि पाकिस्तान अफगानिस्तान सीमा पर चल रहे कैंपों में अब ज्यादा सफेद चेहरे नजर आ रहे हैं. केबल में कहा गया है, "उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि चरमपंथी संगठन अब देसी बमों में खतरनाक मसाले जोड़ कर विध्वंसकारी बम बनाने की दहलीज तक पहुंच गए हैं."

इसमें कहा गया है कि भारत के मुंबई शहर में जब 2006 में भी आतंकवादी हमला हुआ, तो पता चला की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के बीच तालमेल नहीं है क्योंकि इसकी प्लानिंग 11 अलग अलग देशों में हुई थी.

उन्होंने उस साल 13 मई को जयपुर में हुए बम हमले के बारे में कहा कि भारत का शक हरकत उल जिहाद इस्लामी (हूजी) की ओर है. केबल के मुताबिक, "उन्होंने इशारा किया कि भारतीय खुफिया एजेंसियों को पता चला है कि दक्षिणी और उत्तर दक्षिण यूरोप के अलावा सोमालिया और मध्य पूर्व में हमलों की आशंका है लेकिन अमेरिका में नहीं. उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत की खुफिया एजेंसियां इस बात से चिंतित हैं कि अफगानिस्तान पाकिस्तान सरहद पर चरमपंथ गतिविधियों में सफेद चेहरे (गैर पाकिस्तानी) अचानक बढ़ गए हैं." उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में उन्होंने अपने स्तर के अफसरों को जानकारी दे दी है.

विकीलीक्स के केबल में यह बात भी साफ की गई है कि भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने इस बात पर चिंता जताई कि चरमपंथियों के पास इस बात की तकनीक आ चुकी है कि वे साधारण बम को खतरनाक बना सकते हैं.

नारायणन का कहना था कि उन्होंने अमेरिका के दौरे पर इस बात की चर्चा भी की और यह भी कहा कि हो सकता है कि अमेरिका के लिए यह सूचना उतनी महत्वपूर्ण न लगे, जितनी हमारे (भारत) के लिए है.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः ईशा भाटिया

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