भारत पाकिस्तान का तनाव इन किसानों का सब कुछ छीन रहा है
३० अक्टूबर २०१९मकान बनाने का सामान जब आधे दर्जन ट्रकों में भर कर उनके खेतों में पहुंचा तो बारयाम सिंह और उनके पड़ोसी समझ गए कि बहुत जल्द उनकी कुछ और जमीन सेना के हाथ में चली जाएगी. ये लोग भारत के बोबिया गांव में रहते हैं जो भारत पाकिस्तान की सीमा पर बसा है.
किसानों ने ठेकेदारों और मजदूरों को खदेड़ दिया और टायरों को पंचर करने की धमकी दी, हालांकि वो जानते थे कि इन सबसे कुछ दिन की ही राहत मिल सकती है. बारयाम सिंह बताते हैं, "हमारे गांव में सेना के लिए निर्माण बढ़ता जा रहा है और खेती की जमीन सिमटती जा रही है. हमारी 50 फीसदी से ज्यादा खेती की जमीन सेना की घेरेबंदी में है."
पिछले 15 सालों से भारतीय सेना और सीमा सुरक्षा बल यानी बीएएफ जम्मू कश्मीर की सीमा पर बसे जिलों में जमीनों का अधिग्रहण करती जा रही हैं ताकि इलाके की सुरक्षा मजबूत की जा सके.
जम्मू कश्मीर की उपजाऊ जमीन पर जहां पाकिस्तान का नियंत्रण शुरू होता है वहां कांटेदार बाड़ और बारुदी सुरंगें बिछी हुई हैं. बोबिया गांव के लोग बताते हैं कि अकसर उन्हें खेतों से बाहर कर दिया जाता है और इसके लिए ना तो पहले से कोई चेतावनी दी जाती है ना ही कोई मुआवजा. बायराम सिंह ने कहा, "इससे किसानों की आर्थिक मुसीबतें और बढ़ जा रही हैं जिनके पास कमाई का और कोई विकल्प नहीं है."
इस साल अगस्त में जब भारत ने जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया तो सीमावर्ती इलाकों के किसानों में और जमीन खोने का डर बैठ गया. भारत जम्मू और कश्मीर पर अपने नियंत्रण को मजबूत कर रहा है. ऐसे में, केंद्र सरकार के पास सीमावर्ती इलाकों में राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर जमीन को अपने कब्जे में लेने की ज्यादा ताकत होगी. जम्मू कश्मीर पीस फोरम फॉर टेरिटोरियल इंटीग्रिटी के आईडी खजूरिया कहते हैं, "चुने हुए स्थानीय राजनीतिक प्रतिनिधियों की (जम्मू कश्मीर) सरकार के कामकाज में बहुत सीमित भूमिका होगी."
जम्मू के डिविजनल कमिश्नर संजीव वर्मा ने बताया कि जम्मू राज्य के सभी किसानों को उनकी जमीन के लिए मुआवाजा दिया जाएगा. उन्होंने कहा, "जो भी नई जमीन अधिग्रहित की जा रही है, किसान को उसके लिए आर्थिक मुआवजा मिलेगा." उन्होंने यह भी कहा है कि बहुत से किसानों को तो पहले ही मुआवजा दिया जा चुका है, हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि कितने किसानों को.
"मैं अब भूमिहीन हूं"
नए सुरक्षा तंत्र में भारत की सीमा के कई किलोमीटर भीतर 900 किलोमीटर लंबी बाड़ लगाई जानी है. यह बाड़ गांवों और बड़ी मात्रा में खेती की जमीन को टुकड़ों में बांट देगी. बीएसएफ के मुताबिक भारत सरकार पाकिस्तान से लगती सीमा पर एक "सुरक्षा की दीवार" बनाने पर भी काम कर रही है. इस प्रोजेक्ट में 10 मीटर ऊंची मिट्टी की बांध जैसी संरचना बनाई जाएगी जो अकसर होने वाले युद्ध विराम के उल्लंघनों से गांव के लोगों की रक्षा करेगी. भारत और पाकिस्तान एक दूसरे पर इन उल्लंघनों का आरोप लगाते हैं.
इसके अलावा उच्च तकनीक वाला निगरानी तंत्र लगाने की भी योजना है. जिन जगहों की निगरानी में मुश्किलें पेश आती हैं उन्हें इनके दायरे में लाया जाएगा. पिछले साल ही भारत के गृह मंत्रालय ने इसका एलान किया था. सीमा पर बसे गांव के लोगों की भलाई के लिए काम करने वाले कठुआ के संगठन बॉर्डर वेलफेयर कमेटी का कहना है कि हजारों हेक्टेयर जमीन बाड़ के उस पार होने की वजह से अब अछूती रह जा रही है. कमेटी से जुड़े भरत शर्मा ने बताया कि तकनीकी रूप से किसान अब भी बाड़ के उस पार जा सकते हैं. हालांकि बाड़ के दरवाजे कुछ खास समय पर ही खुलते हैं और किसानों को अपने खेतों तक जाने के लिए कई घंटे पैदल चलना पड़ता है. भरत शर्मा बोबिया गांव के प्रमुख भी हैं. उनका कहना है कि अगर वे फसल उगा भी लें तो, "हमेशा सीमा पार से गोलीबारी का अंदेशा रहता है और फिर वो अपनी फसल जंगली जानवरों से भी नहीं बचा सकते."
कमेटी के अध्यक्ष नानक चंद 87 साल के हैं. 2004 में जब पहली बार बाड़ लगाई गई तो उनकी आठ हेक्टेयर जमीन बाड़ में चली गई. उन्होंने बताया, "तीन महीने पहले सेना ने उनकी बाकी बची दो हेक्टेयर जमीन भी अपने कब्जे में ले ली. अब मैं भूमिहीन हूं."
अब जब सरकार राज्य में विकास की गति तेज करना चाहती है तो ऐसे में जमीन की कीमतें भी तेजी से बढ़ेंगी और सीमा पर बसे इन लोगों के लिए शांतिपूर्ण इलाकों में जमीन खरीदना मुश्किल हो जाएगा.
2018 में नानकचंद ने जम्मू और कश्मीर हाईकोर्ट में सीमा पर बसे किसानों की तरफ से एक याचिका दायर की. याचिका में मांग की गई कि सरकार पाकिस्तान की तरफ पड़ने वाली जमीन का किराया किसानों को दे और जब कभी खेती संभव नहीं हो पाती, तब उस फसल के लिए किसानों को मुआवजा दिया जाए.
भारत के गृह मंत्रालय, बीएसएफ और स्थानीय प्रशासन ने इस मामले में अब तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है. जम्मू-पुंछ संसदीय क्षेत्र के प्रतिनिधि जुगल किशोर शर्मा भारतीय जनता पार्टी के हैं. वो यह नहीं बता सके कि सीमा पर सेना कितनी खेती की जमीन का इस्तेमाल कर रही है. हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि सीमावर्ती इलाकों में अधिकारी जमीन की पैमाइस कर रहे हैं, इसके बाद, "सरकार किसानों को जमीन का किराया देना शुरू करेगी."
अमन का इंतजार
अकसर जब सीमा की बाड़ किसी खेत से गुजरती है तो वह उस गांव को भी अलग कर देती है जिसमें वह खेत होता है. इसके नतीजे में वहां रहने वालों को बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ता है. पुंछ जिले के बेहरूती गांव का भी यही हाल है. कांटेदार तारों ने एक तरह से बेहरूती गांव को स्थानीय लोगों के मुताबिक "खुली जेल" में तब्दील कर दिया है.
गांव में रहने वाले 30 साल के निसार खान कहते हैं, "हमारे गांव में ना सड़कें हैं ना स्वास्थ्य सेवाएं. मोबाइल और इंटरनेट की कनेक्टिविटी भी नहीं है. चिड़ियाघर में भी लोगों को रोज वहां जाने की इजाजत होती है लेकिन हमारे गांव में तो बाहर का भी कोई नहीं आ सकता. सामाजिक रूप से हम बिल्कुल कट गए हैं."
अब उच्च तकनीक के निगरानी उपकरण वाली बाड़ों की जो खबर आई है तो गांव के लोग और परेशान हो गए हैं. खान कहते हैं, "हम तो स्थायी रूप से कैदी बन जाएंगे अगर बाड़ों को उनकी मौजूदा स्थिति पर ही अपग्रेड किया गया."
बेहरूती गांव के लोगों को इन बाड़ों में फंसने का डर है तो कुछ दूसरे लोग यह भी उम्मीद कर रहे हैं कि उन्हें गांव छोड़ने पर विवश होना पड़ेगा और तब शायद कुछ अच्छा भी हो.
बोबिया से 30 किलोमीटर दूर नांगा गांव में चावल की खेती करने वाले मीर कहते हैं, "हमारी अगली पीढ़ी इस हालत में होगी कि यहां रह सके, इसकी बहुत कम उम्मीद है. भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की उम्मीद हम खो चुके हैं. और यहां ना तो सुरक्षा है ना रोजगार."
एनआर/एके(रॉयटर्स)
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