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आपसी रिश्तों के लिए अहम है तीस्ता का पानी

प्रभाकर मणि तिवारी
६ अप्रैल २०१७

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 7 अप्रैल को अपने चार दिवसीय भारत दौरे पर दिल्ली पहुंचेगीं. इस दौरान सबकी निगाहें खासतौर पर तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर प्रस्तावित समझौते पर टिकी रहेंगी.

Fluss Teesta
भारत में करीब 300 किमी की दूसरी तय करती है तीस्ता नदी. तस्वीर: DW/A. Chatterjee

पिछले सात सालों में यह किसी बांग्लादेशी प्रधानमंत्री का पहला भारत दौरा होगा. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 7 अप्रैल को अपने चार दिवसीय भारत दौरे पर दिल्ली पहुंचेगीं. इस दौरान खासतौर पर तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर प्रस्तावित समझौते पर नजरें होंगी. यह समझौता दोनों देशों के आपसी रिश्तों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस समझौते के मौजूदा प्रारूप का विरोध करती रही हैं. उन्होंने केंद्र सरकार पर इस मामले पर राज्य को अंधेरे में रखने का भी आरोप लगाया है. वैसे, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के न्यौते पर ममता बनर्जी भी हसीना के सम्मान में राष्ट्रपति भवन में होने वाले समारोह में शामिल होने शुक्रवार को दिल्ली जाएंगी. हसीना से ममता के निजी रिश्ते भी हैं. लेकिन तीस्ता का पानी इन रिश्तों की गर्माहट पर पानी फेर सकता है.

तीस्ता नदी पर निर्भरता

गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना के बाद तीस्ता भारत व बांग्लादेश से होकर बहने वाली चौथी सबसे बड़ी नदी है. सिक्किम की पहाड़ियों से निकल कर भारत में लगभग तीन सौ किलोमीटर का सफर करने के बाद यह नदी बांग्लादेश पहुंचती है. वहां इसकी लंबाई 121 किलोमीटर है. बांग्लादेश का करीब 14 फीसदी इलाका सिंचाई के लिए इसी नदी के पानी पर निर्भर है. इससे वहां की 7.3 फीसदी आबादी को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है.

शेख हसीना के इस दौरे का सबसे अहम मकसद भारत को तीस्ता नदी के पानी पर लंबित समझौते के लिए तैयार करना है. वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के समय ही इस समझौते की तैयारी हो गई थी. लेकिन आखिरी मौके पर ममता ने मना कर दिया. ममता की दलील है कि पानी के बंटवारे से राज्य के किसानों को भारी नुकसान होगा. वह कहती हैं, "उत्तर बंगाल के किसानों की आजीविका तीस्ता के पानी पर निर्भर हैं. इसके पानी में कमी से लाखों लोग तबाह हो सकते हैं." वैसे, ममता कहती रही हैं कि बातचीत के जरिए तीस्ता के मुद्दे को हल किया जा सकता है. बावजूद इसके फिलहाल इसकी संभावना नहीं नजर आ रही है. शेख हसीना भी ममता की राजनीतिक मजबूरी समझती हैं. लेकिन वह चाहती हैं कि दिल्ली आम सहमति से इस समस्या के समाधान को कोई राह निकाले.

हसीना के दौरे के दौरान लगभग तीस समझौतों पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है. इनमें दोनों देशों के बीच रेलवे नेटवर्क को और मजबूत करना भी शामिल है. लेकिन तीस्ता समझौते को लेकर संशय जस का तस है. भारत सरकार इस दौरान यह साबित करने में जुटी है कि बांग्लादेश के साथ आपसी संबंध महज पानी पर नहीं टिके हैं. ममता अपने दिल्ली दौरे के दौरान शेख हसीना से भी मुलाकात करेंगी. इस बैठक में दोनों के बीच तमाम दूसरे मुद्दों के अलावा तीस्ता का मुद्दा भी उठने की संभावना है.

कैसे हल हो जल विवाद

तीस्ता नदी के पानी पर विवाद देश के विभाजन के वक्त से ही चला आ रहा है. तीस्ता के पानी के लिए ही आल इंडिया मुस्लिम लीग ने वर्ष 1947 में सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी. लेकिन कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया था. तमाम पहलुओं पर विचार के बाद सीमा आयोग ने तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत को सौंपा था. उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में रहा. लेकिन वर्ष 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बांग्लादेश के गठन के बाद पानी का मामला दोबारा उभरा. वर्ष 1972 में इसके लिए भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग का गठन किया गया. शुरूआती दौर में दोनों देशों का ध्यान गंगा, फरक्का बांध और मेघना व ब्रह्मपुत्र नदियों के पानी के बंटवारे पर ही केंद्रित रहा. वर्ष 1996 में गंगा के पानी पर हुए समझौते के बाद तीस्ता के पानी के बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ा.

इससे पहले वर्ष 1983 में तीस्ता के पानी पर बंटवारे पर एक तदर्थ समझौता हुआ था. इसके तहत बांग्लादेश को 36 फीसदी और भारत को 39 फीसदी पानी के इस्तेमाल का हक मिला. बाकी 25 फीसदी का आवंटन नहीं किया गया. गंगा समझौते के बाद दूसरी नदियों के अध्ययन के लिए विशेषज्ञों की एक साझा समिति गठित की गई. इस समिति ने तीस्ता को अहमियत देते हुए वर्ष 2000 में इस पर समझौते का एक प्रारूप पेश किया. वर्ष 2010 में दोनों देशों में समझौते के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी. अगले साल यानी 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के दौरान दोनों देशों के राजनीतिक नेतृतव के बीच इस नदी के पानी के बंटवारे के एक नए फार्मूले पर सहमति बनी. लेकिन ममता के विरोध की वजह से यह फार्मूला परवान नहीं चढ़ सका.

तीस्ता नदी की बाढ़ से बचने के लिए विस्थापित होने को मजबूर लोग.तस्वीर: picture-alliance/dpa/NurPhoto/S. Ramany

किसको कितना पानी

इस समझौते के तहत किस देश को कितना पानी मिलेगा, फिलहाल यह साफ नहीं है. इसी वजह से ममता इसका विरोध करती रही हैं. जानकारों का कहना है कि समझौते के प्रारूप के मुताबिक, बांग्लादेश को 48 फीसदी पानी मिलना है. ममता की दलील है कि ऐसी स्थिति में उत्तर बंगाल के छह जिलों में सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी. बंगाल सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति से अध्ययन कराने के बाद बांग्लादेश को मानसून के दौरान नदी का 35 या 40 फीसदी पानी उपलब्ध कराने और सूखे के दौरान 30 फीसदी पानी देने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन बांग्लादेश को यह मंजूर नहीं है. वहां दिसंबर से अप्रैल तक तीस्ता के पानी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है. गर्मी के सीजन में उन इलाकों को भारी सूखे का सामना करना पड़ता है. यानि बांग्लादेश ज्यादा पानी मांग रहा है लेकिन ममता इसके लिए तैयार नहीं हैं. केंद्र सरकार को पड़ोसी देशों के साथ पानी पर समझौते का कानूनी अधिकार तो है लेकिन वह संबंधित राज्य सरकार की मंजूरी के बिना ऐसा नहीं कर सकती.

हसीना की छवि के लिए जरूरी

वैसे, ममता ने तीस्ता पर अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. वह कहती हैं, "यह दो देशों के बीच का मसला है." अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों का कहना है कि तीस्ता समझौता दोनों देशों के लिए एक अहम राजनीतिक जरूरत है. इससे मिलने वाले सियासी फायदे के जरिये भारत-बांग्लादेश में चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने में सहायता मिलेगी. दूसरी ओर, हसीना को इससे अगले साल होने वाले आम चुनावों में सत्ता बनाए रखने में भी सहायता मिलेगी. वह खुद को ऐसे नेता के तौर पर स्थापित कर सकती हैं, जिसके लिए देश हित ही सर्वोपरि हैं. विरोधी दल उन पर भारत के हाथों की कठपुतली होने के आरोप लगाते रहे हैं. वह तीस्ता के पानी से अपनी छवि पर लगे इस दाग को भी धो सकती हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि हसीना के मौजूदा दौरे में तो तीस्ता के पानी पर समझौते की उम्मीद कम है. लेकिन इसकी ठोस जमीन तो तैयार की ही जा सकती है. भारत और बांग्लादेश दोनों का मकसद भी यही है.

 

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