भारत और बांग्लादेश अपने 68 साल पुराने द्विपक्षीय सीमा विवाद को पीछे छोड़ते हुए नया इतिहास रच रहे हैं. दशकों से राज्यविहीन रहे बांग्लादेश के भारतीय एनक्लेव के करीब एक हजार निवासियों को भारत की नागरिकता मिलने जा रही है.
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दुनिया के कुछ सबसे जटिल सीमा विवादों में से एक भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर अब डेढ़ सौ से भी अधिक एनक्लेवों की अदला बदली हो रही है. यह एनक्लेव उन छोटे छोटे टापुओं जैसे हैं जो एक देश की सीमा में स्थित हैं लेकिन उन पर मिल्कियत दूसरे देश की है. इस अदल बदल का असर करीब 51,000 निवासियों पर पड़ेगा. करीब सात दशकों तक राज्यविहीन रहने के बाद अंतत: इन्हें अपनी राष्ट्रीय पहचान और नागरिकता हासिल होगी.
दोनों देशों के अधिकारी इन 162 एनक्लेवों में अपने अपने राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे. इनमें से 111 बांग्लादेश में हैं और 51 भारत में. 6 जून को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से इस सीमा विवाद का हल निकाला, जिसके क्रियान्वयन के लिए 31 जुलाई रात 12 बजकर एक मिनट पर ध्वजारोहण का कार्यक्रम होना है. इस पल के साथ ही सभी एनक्लेवों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. इसमें रहने वाले लोगों को भारत या बांग्लादेश की नागरिकता चुनने का अधिकार होगा और साथ ही सरकारी स्कूलों, स्वास्थ्य और बिजली जैसी सुविधाओं तक पहुंच भी. 1947 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंत के बाद से अब तक बीते हर साल की याद में मध्यरात्रि समारोह में 68 मोमबत्तियां जलाई जाएंगी.
1974 में ही तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान ने लैंड एकॉर्ड पर सहमति बनाई थी. 1975 में शेख मुजीब की हत्या हो जाने के बाद यह प्रक्रिया लंबे समय तक ठंडी पड़ गई और बाद की सरकारें एनक्लेवों की अदला बदली के मुद्दे पर सहमति बनाने में असफल रहीं. एनक्लेवों का अस्तित्व कई सदियों से है. इस पर पहले स्थानीय रजवाड़ों की मिल्कियत हुआ करती थी और वह परंपरा 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत में हुए विभाजन से लेकर 1971 में बांग्लादेश और पाकिस्तान युद्ध के बावजूद बरकरार रही.
जून में द्विपक्षीय समझौते के बाद से ही भारत और बांग्लादेश के अधिकारियों ने एनक्लेवों में सर्वे कर लोगों से किसी एक देश की नागरिकता चुनने को कहा. बांग्लादेश के भारतीय एनक्लेवों में रहने वाले ज्यादातर लोगों ने बांग्लादेश की ही नागरिकता लेने की इच्छा जताई है. लेकिन ऐसे करीब एक हजार लोग हैं जो भारतीय नागरिकता लेना चाहते हैं और इसके लिए नवंबर तक भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में उनका पुनर्वास होना है. दूसरी तरफ, भारतीय सीमा में स्थित सभी 51 बांग्लादेशी एनक्लेवों के निवासी भी भारत की नागरिकता लेना चाहते हैं.
आरआर/एमजे (एएफपी, पीटीआई)
रोहिंग्या: समुद्र पार मायूस उड़ान
घरबार छोड़कर भाग रहे म्यांमार के रोहिंग्या और बांग्लादेशियों का दक्षिणपूर्वी देशों के तटीय क्षेत्र में डूबना जारी है. इन्हें समुद्री थपेड़ों में छोड़ने वाले मानव तस्करों से बचाने की अंतरराष्ट्रीय समुदाय कर रहा है अपील.
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आचेह में फंसे
ये बच्चे किसी तरह जिंदा बचाए गए. कई दिनों तक बिना भोजन के समुद्र में फंसे रहने के बाद 10 मई को करीब 600 लोगों को चार नावों पर सवार कर इंडोनेशियाई प्रांत आचेह पहुंचाया गया. लगभग इसी समय 1,000 से भी ज्यादा लोगों वाली तीन नावें उत्तरी मलेशिया के लंकावी रिजॉर्ट द्वीप पर पहुंची.
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थकान से टूटे
भूख, भीड़ और बीमारी से पीड़ित शरणार्थी अपनी लंबी कठोर यात्रा से थकने के बाद आराम कर रहे हैं. मानव तस्करी करने वाले इन यात्रियों के जहाज पर छोड़कर भाग गए. संयुक्त राष्ट्र एजेंसी का मानना है कि राज्यविहीन रोहिंग्या लोग दुनिया मे सबसे ज्यादा सताए गए अल्पसंख्यकों में से एक हैं.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
कहीं के नहीं
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की करीब 800,000 की आबादी को बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी माना जाता है. कई पीढ़ियों से वहां रहने के बावजूद उन्हें अब भी इस बौद्ध-प्रधान देश में भेदभाव और अत्याचार झेलने पड़ते हैं. यही कारण है कि म्यांमार के रोहिंग्या किसी भी तरह मलेशिया या इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम-प्रधान देश पहुंचना चाहते हैं.
तस्वीर: Reuters/R: Bintang
खतरनाक यात्रा
हर साल हजारों रोहिंग्या समुद्र के रास्ते बेहद कठिन परिस्थितियों में इस लंबी यात्रा की शुरुआत करते हैं. मानव तस्करी करने वाले इन्हें बेहद खराब नावों में ठूस ठूस कर मलेशिया और इंडोनेशिया जैसे देशों में ले जाने की फीस लेते हैं. यूएन का अनुमान है कि इस साल पहली तिमाही में ही ऐसे करीब 25,000 लोगों ने मानव तस्करों की नावों से सफर किया.
तस्वीर: Asiapics
आधुनिक गुलामों का व्यापार
म्यांमार में भेदभाव से बचकर निकलने के लिए रोहिंग्या लोग आमतौर पर किसी एजेंट से संपर्क करते हैं. वह उन्हें बताता है कि लगभर 200 डॉलर की कीमत चुकाने पर उन्हें सीधे मलेशिया ले जाया जाएगा. पूरी यात्रा में उन्हें खाने, पानी, विश्राम की कोई जगह नहीं मिलती बल्कि कई बार तो पिटाई की जा जाती है हत्या भी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Yulinnas
थाईलैंड का डर
कई रोहिंग्या लोग थाईलैंड पार करने के लिए तस्करों की सवारी लेने को मजबूर होते हैं. कई बार स्मगलर इन्हें बंदी बना लेते हैं और जंगल कैंपों में तब तक बंधक रखते हैं जब तक उनके घर वालों से फिरौती ना वसूल लें. थाई सरकार को हाल में ऐसी कई सामूहिक कब्रें मिलीं (तस्वीर) जिसके बाद से सरकार ने मानव तस्करों पर और कड़ा रवैया अपनाया है.
तस्वीर: Reuters/D. Sagolj
प्रवासियों की बाढ़
पूरा दक्षिणपूर्व एशियाई क्षेत्र प्रवासियों की बड़ी तादाद झेल रहा है. लाखों लोग कई तरह की समस्याओं के शिकार होकर दूसरी जगहों का रुख कर रहे है. हाल के आंकड़े दिखाते हैं कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में तस्करी के शिकार हुए लोगों की संख्या सवा करोड़ के पास पहुंच गई है.