जब से कोरोना संकट शुरू हुआ है, तब से चमगादड़ सुर्खियों में हैं. उन्हें भी इस वायरस के संभावित स्रोत के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन भारत में कई जगहों पर अचानक चमगादड़ों के मारे जाने की खबरें है.
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इन दिनों देश के कई क्षेत्रों मे भीषण गर्मी पड़ रही है. कई शहरों मे तापमान 45 डिग्री को पार कर रहा है. ऐसे में सूरज और हवा के गर्म थपेड़ों से बचने के लिए इंसान ही नहीं, पशु और पक्षी भी व्याकुल हैं. गर्मी की प्रचंडता और पानी की कमी पशु और पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो रही है.
गर्मियों के दौरान पशु-पक्षी भी पानी के लिए भटकते रहते हैं. नदी, तालाब या अन्य जल स्रोत सूख जाने के कारण हजारों पशु पक्षी प्यासे मर जाते हैं. खासतौर पर आवारा पशुओं को अपनी प्यास बुझाने मे अत्यधिक मुश्किल होती है. मुंबई स्थित पशु चिकित्सक डॉ. प्राची गायकवाड कहती हैं कि तापमान अधिक होने से पशु पक्षियों मे डिहाइड्रेशन की समस्या आ जाती है. समय से पानी ना मिले तो यह जानलेवा भी साबित होता है.
गर्मियों मे पानी की कमी झेलने वाले महाराष्ट्र के इलाके विदर्भ और मराठवाड़ा मे आवारा पशुओं की मौत के मामले अक्सर सामने आते हैं. पशु चिकित्सक डॉ. केपी सिंह कहते हैं कि गर्मियों मे पशुओं में होने वाले डिहाइड्रेशन के कारण पशु चरना छोड़ देते हैं. लीवर की समस्या भी आ जाती है. वह कहते हैं, "पशु और पक्षी वातावरण के साथ तालमेल बिठा लेते हैं लेकिन तापमान मे अचानक से वृद्धि होने पर इन्हें लू लगने का खतरा रहता है."
चमगादड़ों की मौत
पिछले कुछ दिनों से देश के अलग अलग हिस्सों से चमगादड़ों की मौत के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. महाराष्ट्र से सटे मध्य प्रदेश के बेतूल और सिंगरौली जिले में सैकड़ों की संख्या में चमगादड़ के मरने की खबर है. वन विभाग की टीम और पशु चिकित्सा विभाग मरे हुए चमगादड़ों को अपने कब्जे में लेकर मौत के कारणों की जांच कर रहा है. रिपोर्ट की अभी प्रतीक्षा है.
जानकारों के अनुसार भीषण गर्मी की वजह से चमगादड़ों की मौत संभव है. चमागादड़ों के मरने के मामले पूर्वी उत्तर प्रदेश के बलिया और गोरखपुर से भी आए हैं. इसके अलावा बिहार मे भी कई चमागादड़ों के मरने की खबर है. जानकारों के अनुसार अचानक पारा चढ़ने से चमगादड़ ब्रेन स्ट्रोक के शिकार हो रहे हैं. 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान बर्दाश्त करना चमगादड़ के लिए आसान नहीं होता.
गोरखपुर के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. देवेंद्र शर्मा का कहना है कि 54 चमागादड़ों के मरने की सूचना आई थी. उनके अनुसार, "प्रथम दृष्टया मामला हीट स्ट्रोक से मौत का लग रहा है. वैसे, इसकी जांच के लिए उनके शव बरेली स्थित इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट भेजे गए हैं."
देखभाल की जरूरत
दिन के समय चल रही गर्म हवाओं या लू से उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत के लोग परेशान हैं. ऐसे में पशु पक्षी भी तेज गर्मी के कारण हीट स्ट्रोक का शिकार होकर बीमार हो रहे हैं. डॉ. प्राची गायकवाड कहती हैं कि इन पशुओं और पक्षियों को भी देखभाल की जरूरत होती है. वह कहती हैं, "जानवरों को खुले मे रखने की बजाय ढके हुए जगह पर रखना चाहिए. जगह ऐसी हो जहां गर्म हवा उन तक ना पहुंचे. घुमाने या चराने के लिए सुबह या शाम को ले जाना चाहिए." पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए तालाब या किसी भरे हुए स्थान का पानी पीने के लिए नहीं देना चाहिए.
नांदेड़ के पशुपालक किसान सुखदेव जाधव अपने घरेलू पशुओं के साथ साथ आवारा पशुओं के लिए भी पानी की व्यवस्था कर देते है. वह कहते हैं कि अप्रेल और मई महीने की गर्मी के दौरान सैकड़ों पक्षी और आवारा पशु पानी की कमी से मर जाते हैं. इसलिए वे पशु पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए मकान के बाहर पीने का साफ पानी रखते हैं. पशुपालन विशेषज्ञ डॉ. अशोक मिश्रा के अनुसार, "ग्रामीण क्षेत्रों मे आवारा पशुओं के प्रति आज भी लोगों मे संवेदना पाई जाती है. इसलिए मौत के मामले इतने ज्यादा नहीं होते."
पृथ्वी पर मौजूद हरेक जीव अहम भूमिका निभाता है लेकिन जब बात धरती पर जीवन को जारी रखने की होती है तो कुछ जीव दूसरों की तुलना में ज्यादा जरूरी हो जाते हैं.
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1. मधुमक्खी
यह कोई छिपी बात नहीं है कि मधुमक्खियां बेहद जरूरी हैं. रॉयल जियोग्राफिकल सोसायटी ने तो उन्हें पृथ्वी का सबसे अहम प्राणि घोषित किया है. दुनिया में परागण कराने वाला यह सबसे पुराना जीव कई पौधों की प्रजातियों के जीवन चक्र में अहम भूमिका निभाता है और स्वस्थ इकोसिस्टम को बनाए रखता है. हम जिन फसलों को खाते हैं, उनमें से 70 फीसदी उन पर निर्भर हैं.
तस्वीर: Alex Wild/University of Texas at Austin
2. चींटी
हम उन्हें कीट भी कहते हैं लेकिन वास्तव में इस प्राणि को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. अंटार्कटिका को छोड़ पृथ्वी के हर महाद्वीप में चीटियां मौजूद हैं और ये कई भूमिकाएं निभाती हैं. इनमें मिट्टी में पोषक तत्वों को वितरण से ले कर बीजों को फैलाना और दूसरे कीटों को खाना भी शामिल है. वैज्ञानिक दुनिया भर में चीटियों की बांबी पर जलवायु परिवर्तन के असर को जानने में जुटे हैं.
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3. कवक या कुकुरमुत्ता
ना तो ये पौधे हैं ना जानवर, सूक्ष्मजीव या फिर प्रोटोजोआ. कवक को कभी कभी "पृथ्वी पर मौजूद जीवन का पांचवा वर्ग" कहा जाता है. उनके बगैर हमारा शायद अस्तित्व ही नहीं रहेगा. ये जल, थल और वायु हर जगह मौजूद हैं. ये पृथ्वी के प्राकृतिक पोषण को रिसाइकिल करते हैं. इनकी कुछ प्रजातियां तो ऐसी हैं जो पारा जैसे हानिकारक धातुओं और पोलियूरेथेन प्लास्टिक को भी पचा सकती हैं.
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4. फाइटोप्लैंकटन
फाइटोप्लैंकटन यानि सूक्ष्म जलीय वनस्पति पृथ्वी पर जीवन के लिए कितने जरूरी हैं यह समझना थोड़ा कठिन है. इनका एक योगदान तो यह है कि पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन का दो तिहाई हिस्सा यही पैदा करते हैं. इनके बगैर वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम हो जाएगी और पर्यावरण के लिए असुविधा होगी. इसके साथ ही ये मरीन इकोसिस्टम के फूड चेन का आधार हैं.
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5. चमगादड़
केला, बाओबाब और टकिला में क्या समानता है? ये सभी परागण और कीटों के नियंत्रण के लिए चमगादड़ पर निर्भर हैं. दुनिया भर में चमगादड़ों की अलग अलग प्रजातियां एक जरूरी पारिस्थतिकीय भूमिका निभाती हैं जिनकी वजह से कई फसलों का जीवन संभव होता है. चमगादड़ों की स्वस्थ आबादी कीटनाशकों पर होने वाले करोड़ों डॉलर के खर्च को बचा सकती हैं और वो एक मजबूत इकोसिस्टम की निशानी हैं.
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6. केंचुआ
मामूली सा दिखना वाला केंचुआ पृथ्वी के जीवमंडल के लिए इतना जरूरी है कि इसे "इकोसिस्टम इंजीनियर" भी कहा जाता है. ये जीव मिट्टी में हवा भर कर उसे पोषक बनाते हैं और कार्बनिक पदार्थों को रिसाइकिल करते हैं. इसके साथ ही भोजन चक्र में भी इनकी जगह बेहद अहम है. कई पारिस्थितिकियों में अहम स्थान रखने के बावजूद कई प्रजातियां मिट्टी के अम्लीकरण की वजह से खतरे में हैं.
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7. प्राइमेट
हमासे सबसे करीबी जैविक रिश्तेदार प्राइमेट, मानव जीव विज्ञान के बारे में कई तरह की अंतरदृष्टी देते हैं. ये बायोडाइवर्सिटी के लिए भी बेहद जरूरी है् और उष्णकटिबंधीय जंगलों के लिए अहम प्रजातियां हैं. ये इन जंगलों के लिए एक तरह से "माली" हैं जो बीजों को बिखेरते हैं और नए पौधों के उगने की जगह बनाते हैं. अगर हम इन जंगलों को बचाए रखना चाहते हैं तो हमें इन प्राइमेटों के अस्तित्व को वहां बनाए रखना होगा.
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8. कोरल
कोरल को अकसर समुद्र का वर्षावन कहा जाता है. कोरल रीफ कई तरह की भूमिकाएं निभाते हैं. इनमें तटों की रक्षा से लेकर भोजन तंत्र का आधार होना भी शामिल है. रिसर्चरों का अनुमान है कि कोरल रीफ एक चौथाई समुद्री जीवों के लिए घर भी हैं. इस तरह से ये पृथ्वी के सबसे जटिल इकोसिस्टम का निर्माण करते हैं. अगर हम कोरल रीफ को खो बैठे, तो हम असंख्य समुद्री जीवों को भी खो देंगे.
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