एक करोड़ से ज्यादा अग्रिम पंक्ति के कर्मियों को टीका लगने के बाद अब टीकाकरण का दूसरा चरण शुरू होने जा रहा है. एक मार्च से 60 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्गों को भी कोविड का टीका लगेगा.
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इस चरण में सरकारी अस्पतालों से भी ज्यादा निजी अस्पतालों में टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध कराने की तैयारी की जा रही है. करीब 10,000 सरकारी अस्पताल इस चरण में शामिल होंगे और उनमें टीका मुफ्त में लगेगा. लोग उनसे दोगुना ज्यादा संख्या में यानी 20,000 निजी अस्पतालों में भी टीका लगवा सकेंगे.
निजी अस्पतालों में टीका मुफ्त उपलब्ध नहीं होगा. केंद्र सरकार ने कहा है कि इसका दाम तय करने के लिए अस्पतालों से बातचीत चल रही है और जल्द ही आगे की घोषणा की जाएगी. इस चरण में 10 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को टीका लगाए जाने का अनुमान है.
टीके के लिए पंजीकरण करवाने के तरीके की अभी घोषणा नहीं हुई है. पहले चरण में इसके लिए कोविन नाम के एक सरकारी ऐप का इस्तेमाल किया गया था, जिसके जरिए टीका लेने वाले सभी कर्मियों का रिकॉर्ड रखा गया और एसएमएस के जरिए उन्हें टीका लगने के स्थान और समय की जानकारी दी गई. दूसरे चरण के लिए भी इसी ऐप का इस्तेमाल किया जाएगा या नहीं यह अभी स्पष्ट नहीं हुआ है.
पटना में एक स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 का टीका लेते हुए.तस्वीर: Manish Kumar/DW
मीडिया में आई कुछ खबरों में दावा किया गया है कि इसके लिए सरकार कोविन 2.0 ऐप शुरू करेगी. कई जानकारों ने सरकार से मांग की है कि इस चरण को ऐप के जरिए संयोजित करने की जगह लोगों को अपने निकटतम स्वास्थ्य केंद्र में कभी भी जाकर टीका लगवाने की सुविधा दी जानी चाहिए. यह भी कहा जा रहा है कि इस चरण में भी कोविशील्ड और कोवैक्सीन दोनों ही टीके उपलब्ध होंगे लेकिन उनमें से किसी एक को चुनने का विकल्प लोगों को नहीं मिलेगा.
कोवैक्सीन को लेकर कई तरह के संशय पहले ही व्यक्त किए जा चुके हैं. अभी इसका तीसरे और अंतिम चरण का परीक्षण ही चल रहा है और टीके की सफलता को लेकर जरूरी डाटा अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है. टीकाकरण कार्यक्रम के दूसरे चरण की घोषणा ऐसे समय पर हुई है जब देश के कई राज्यों में एक बार फिर संक्रमण के ताजा मामले बढ़ रहे हैं. केरला, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब और छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्य विशेष रूप से चिंता का कारण बने हुए हैं.
कोरोना की वैक्सीन जितनी जल्दबाजी में बनी हैं, उसे देखते हुए कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि इसे लेना ठीक भी रहेगा या नहीं. जानिए कौन सी कंपनी की वैक्सीन के क्या साइड इफेक्ट हैं ताकि आपके सभी शक दूर हो जाएं.
कुछ सामान्य साइड इफेक्ट
कोई भी टीका लगने के बाद त्वचा का लाल होना, टीके वाली जगह पर सूजन और कुछ वक्त तक इंजेक्शन का दर्द होना आम बात है. कुछ लोगों को पहले तीन दिनों में थकान, बुखार और सिरदर्द भी होता है. इसका मतलब होता है कि टीका अपना काम कर रहा है और शरीर ने बीमारी से लड़ने के लिए जरूरी एंटीबॉडी बनाना शुरू कर दिया है.
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बड़े साइड इफेक्ट का खतरा?
अब तक जिन जिन टीकों को अनुमति मिली है, परीक्षणों में उनमें से किसी में भी बड़े साइड इफेक्ट नहीं मिले हैं. यूरोप की यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी (ईएमए), अमेरिका की फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) और विश्व स्वास्थ्य संगठन तीनों ने इन्हें अनुमति दी है. एक दो मामलों में लोगों को वैक्सीन से एलर्जी होने के मामले सामने आए थे लेकिन परीक्षण में हिस्सा लेने वाले बाकी लोगों में ऐसा नहीं देखा गया.
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बायोनटेक फाइजर
जर्मनी और अमेरिका ने मिलकर जो टीका बनाया है वह बाकी टीकों से अलग है. वह एमआरएनए का इस्तेमाल करता है यानी इसमें कीटाणु नहीं बल्कि उसका सिर्फ एक जेनेटिक कोड है. यह टीका अब कई लोगों को लग चुका है. अमेरिका में एक और ब्रिटेन में दो लोगों को इससे काफी एलर्जी हुई. इसके बाद ब्रिटेन की राष्ट्रीय दवा एजेंसी एमएचआरए ने चेतावनी दी कि जिन लोगों को किसी भी टीके से जरा भी एलर्जी रही हो, वे इसे ना लगवाएं.
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मॉडेर्ना
अमेरिकी कंपनी मॉडेर्ना का टीका भी काफी हद तक फाइजर के टीके जैसा ही है. परीक्षण में हिस्सा लेने वाले करीब दस फीसदी लोगों को थकान महसूस हुई. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी थे जिनके चेहरे की नसें कुछ वक्त के लिए पेरैलाइज हो गई. कंपनी का कहना है कि अब तक यह साफ नहीं हो पाया है कि ऐसा टीके में मौजूद किसी तत्व के कारण हुआ या फिर इन लोगों को पहले से ऐसी कोई बीमारी थी जो टीके के कारण बिगड़ गई.
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एस्ट्रा जेनेका
ब्रिटेन और स्वीडन की कंपनी एस्ट्रा जेनेका के टीके के परीक्षण को सितंबर में तब रोकना पड़ा जब उसमें हिस्सा लेने वाले एक व्यक्ति ने रीढ़ की हड्डी में सूजन की बात बताई. इसकी जांच के लिए बाहरी एक्सपर्ट भी बुलाए गए जिन्होंने कहा कि वे यकीन से नहीं कह सकते कि सूजन की असली वजह वैक्सीन ही है. इसके अलावा बाकी के टीकों की तरह यहां भी ज्यादा उम्र के लोगों में बुखार, थकान जैसे लक्षण कम देखे गए हैं.
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स्पूतनिक वी
रूस की वैक्सीन स्पूतनिक वी को अगस्त में ही मंजूरी दे दी गई थी. किसी भी टीके को तीन दौर के परीक्षणों के बाद ही बाजार में लाया जाता है, जबकि स्पूतनिक के मामले में दूसरे चरण के बाद ही ऐसा कर दिया गया. रूस के अलावा यह टीका भारत में भी दिया जाना है. जानकारों की शिकायत है कि इसके पूरे डाटा को सार्वजनिक नहीं किया गया है, इसलिए साइड इफेक्ट्स के बारे में ठीक से नहीं बताया जा सकता.
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन भी स्पूतनिक की तरह विवादों में घिरी है. सरकार ने इसे इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए अनुमति दी है लेकिन इसके भी तीसरे चरण के परीक्षणों के बारे में जानकारी नहीं है और ना ही यह बताया गया है कि यह कितनी कारगर है. भारत में महामारी पर नजर रख रही संस्था सेपी की अध्यक्ष गगनदीप कांग ने कहा है कि वे सरकार के फैसले को समझ नहीं पा रही हैं और अपने करियर में उन्होंने कभी ऐसा होते नहीं देखा.
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बच्चों के लिए टीका?
आम तौर पर पैदा होते ही बच्चों को टीके लगने शुरू हो जाते हैं लेकिन कोरोना के टीके के मामले में ऐसा नहीं होगा. इसकी दो वजह हैं: एक तो बच्चों पर इसका परीक्षण नहीं किया गया है और ना ही इसकी अनुमति है. और दूसरा यह कि महामारी की शुरुआत से बच्चों पर कोरोना का असर ना के बारबार देखा गया है. इसलिए बच्चों को यह टीका नहीं लगाया जाएगा. साथ ही गर्भवती महिलाओं को भी फिलहाल यह टीका नहीं दिया जाएगा.
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सुरक्षित टीका क्या होता है?
जर्मनी में कोरोना पर नजर रखने वाले रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट की वैक्सीनेशन कमिटी के सदस्य के सदस्य क्रिस्टियान बोगडान बताते हैं कि किसी टीके से अगर एक वृद्ध व्यक्ति की उम्र 20 प्रतिशत घटती है लेकिन साथ ही अगर 50 हजार में से सिर्फ एक व्यक्ति को उससे एलर्जी होती है, तो वे ऐसे टीके को सुरक्षित मानेंगे. उनके अनुसार यूरोप में इसी पैमाने पर टीकों को अनुमति दी जा रही है.