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भारत में कंप्यूटर ट्रेनिंग की आउटसोर्सिंग

१२ फ़रवरी २०११

जर्मन रक्षा मंत्री कार्ल थेओडोर सू गुटेनबैर्ग भारत गए हैं. प्रमुख मुद्दा है जेट विमान यूरोफाइटर की बिक्री, जिसमें जर्मनी की बड़ी साझेदारी है. और इसलिए समाचार साधनों में भारत के लिए सैनिक साजसामान की बिकी एक विषय बन गया.

तस्वीर: AP

भारत सरकार कुल मिलाकर 126 नए युद्धक विमान खरीदना चाहती है. सन 2015 तक वायुसेना के सारे विमानों को बदलने का इरादा है. गुटेनबैर्ग यूरोफाइटर के लिए पैरवी कर रहे हैं. म्यूनिख से प्रकाशित दैनिक सुएडडॉएचे त्साइटुंग में कहा गया है कि परमाणु सत्ता भारत अपने प्रभावशाली आर्थिक विकास से हो रहे मुनाफे के बल पर आधुनिक हथियारों में अपना निवेश बढ़ा रहा है. समाचार पत्र की राय में यह एक खतरनाक खेल है. आगे कहा गया है -

नित नए अनसुलझे सीमा विवाद सामने आ रहे हैं, समुद्री सीमा और द्वीपों को लेकर मतभेद हैं...अब कहा जा सकता है कि चीन और भारत के बीच हथियारों की होड़ से झगड़े बढ़ सकते हैं, यह भी कहा जा सकता है कि इससे स्थिरता आएगी, लेकिन भारत को इस सबकी चिंता नहीं है. लेकिन इस डील के साथ एक राजनीतिक संदेश जुड़ा होना चाहिए, जिस पर भारत को ध्यान देना पड़ सकता है : उसे पाकिस्तान के साथ समझौते की कोशिश करनी पड़ेगी और अफगानिस्तान में अपनी गतिविधियों को पारदर्शी बनाना पड़ेगा. साथ ही उसे एक पूर्वी एशियाई सुरक्षा व्यवस्था में मुख्य ताकत बनना पड़ेगा, जो संघर्षों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाए. जब तक ये मांगें पूरी नहीं होतीं, जर्मनी को हथियारों का निर्यात नहीं करना चाहिए.

समाचार पत्र नोए त्स्युरिषर त्साइटुंग के एशिया संवाददाता उर्स शोएटली चीन और भारत की यात्रा कर रहे थे. दोनों देशों के बारे में अपनी रिपोर्ट में वह कहते हैं कि लोगों के साथ बातचीत में मुद्रास्फीति की समस्या बार बार उभरकर आ रही थी. वह लिखते हैं -

भारत और चीन के दूरदराज के इलाकों में कैश फ्लो काफी सीमित है. घरेलू बजट में सौ युआन या सौ रुपए के नोट की अब भी काफी कीमत है. यहां खासकर गरीब तबकों और वृद्ध लोगों को बढ़ती कीमतें सता रही हैं. जिसे बचत के पैसे पर जीना पड़ता है, उसके पैसे देखते ही देखते खत्म होते जा रहे हैं. धन की कीमत में आ रही कमी की भरपाई बैंक के सूद से नहीं हो पा रही है. देरसबेर बढती कीमतों की वजह से सामाजिक अशांति और राजनीतिक तनाव फैलने का डर है. चीन और भारत में लोगों को बढ़ती कीमतों पर गुस्सा है और वे परेशान हैं. अमीरी और गरीबी के बीच गहरी होती जा रही खाई से सामाजिक तनाव भी पैदा हो रहे हैं.

संवाददाता के अनुसार आनेवाले विधानसभा चुनावों में भारत के सत्तारूढ़ मोर्चे को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है. बहरहाल, इन समस्याओं के बावजूद जर्मन प्रेस की नजर आर्थिक क्षेत्र में संबंधों के बदलते चरित्र पर भी है. समाचार पत्र फ्रांकफूर्टर अलगेमाइने त्साइटुंग का कहना है कि पहले तो जर्मन उद्यमों के लिए भारत में सॉफ्टवेयर बनाए जाने लगे, फिर कॉल सेंटरों में काम भेजा जाने लगा, और अब विदेशी नागरिक वहां सस्ती सेवा हासिल करने के लिए जाने लगे हैं. इस सिलसिले में कहा गया है -

एक उद्यमी यूरोप के आईटी कर्मियों को भारत ले जाता है, ताकि वहां थोड़े से समय में भारत के कंप्यूटर विशेषज्ञ उन्हें नई से नई जानकारी से लैस करें...कंप्यूटर के अत्याधुनिक कोर्स के बाद उन्हें अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्यताप्राप्त सर्टिफिकेट दिए जाते हैं. फायदा : प्रशिक्षण की आउटसोर्सिंग की वजह से खर्च अपने देश के मुकाबले सिर्फ आधा होता है...युवा जर्मन कंप्यूटर विशेषज्ञ डोमिनिक फ्रित्जे को शक है कि यह सब कायदे से जारी रह सकता है. उसका कहना है कि ट्रेनिंग बहुत अच्छी है, टीचर बिल्कुल नई जानकारी देते हैं, उनकी अंग्रेजी पूरी तरह से समझ में आती है. लेकिन भारत में ठहरना आसान नहीं है. हनर सुबह दिल्ली के ट्रैफिक से पाला पड़ता है, और स्वच्छता की भी भारी कमी हे. साथ ही हवा धुएं से भरी रहती है.

भारत के बाद पाकिस्तान. सन 2007 में बेनजीर भुट्टो की हत्या कर दी गई थी. संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के आदेश पर की गई जांच से पता चला है कि उनकी सुरक्षा की व्यवस्था "भयानक रूप से अपर्याप्त और अप्रभावी" थी. साथ ही संयुक्त राष्ट्र के जांचकर्ताओं का आरोप है कि स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद राष्ट्रपति मुशर्रफ निष्क्रिय रहे. इस सिलसिले में साप्ताहिक पत्रिका डी त्साइट में लिखा गया है -

रिपोर्ट में ध्यान दिलाया गया है कि हमले के एक दिन बाद ही मुशर्रफ ने शक की सूई चरमपंथी इस्लामी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के नेता बैतुल्लाह महसूद की ओर घुमा दी थी. जांचकर्ताओं ने पाया है कि उस समय महसूद के खिलाफ कोई सुराग नहीं था. इस बीच मारे जा चुके तालिबान नेता हमेशा इस हमले में हाथ होने से इंकार करते रहे. भुट्टो के विधुर पति राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को शक है कि पाकिस्तानी नेतृत्व के हिस्से इसमें शामिल थे. इस हत्या के लिए आजतक किसी को कठघरे में नहीं खड़ा किया गया है.

और समाचार पत्र राइनिषे पोस्ट में ध्यान दिलाया गया है कि भयानक बाढ़ के बाद भी उसके भयानक परिणामों को दूर नहीं किया जा सका है. साथ ही पता चला है कि अहमदी समुदाय के लोगों को बाढ़ में डूबने दिया गया, क्योंकि पहले मुसलमानों को बचाने की सोची गई. हिंदू, सिख और ईसाई समुदाय के लोगों ने भी ऐसी शिकायतें की हैं.

संकलन: अना लेमान्न/उ भ

संपादन: वी कुमार

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