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भारत में किन्नरों के बुरे हालात

१७ मई २०१२

विकास के लाखों दावे करने वाला भारतीय समाज आज भी स्त्री और पुरुष के परंपरागत दायरे में इस कदर बंधा है कि ट्रांसजेंडर और किन्नरों को स्वीकार नहीं कर पा रहा है.

तस्वीर: AP

उनका असली नाम भले और हो लेकिन दो बच्चों के पिता खुद को सीमा बताते हैं. दिल्ली में 33 साल के सीमा शाम होते ही खुद को सजाने लगते हैं. दिल के आकार के मेकअप बॉक्स से सिंगार का सामान निकाल कर चेहरे पर लगाते हैं. बाल संवारते हैं और फिर सड़कों पर निकल जाते हैं. सीमा ट्रांसजेंडर हैं. यानी लड़का होते हुए भी लड़की की तरह रहना चाहते हैं. वैसे ही कपड़े पहनते हैं और लड़कियों जैसा ही व्यवहार करते हैं. अपने जैसे सैकड़ों हजारों लोगों की तरह उन्हें भी पेट पालने के लिए देह व्यापार में उतरना पड़ा, "मेरे लिए सेक्स वर्क जरूरी है क्योंकि मुझे अपने परिवार का ख्याल रखना है. कोई अपनी खुशी से यह नहीं करता. हमें यह करना पड़ता है क्योंकि हमारे पास और कोई चारा नहीं."

भेदभाव का इतिहास

ट्रांसजेंडरों के साथ दुनिया भर में भेदभाव होता है, लेकिन जहां अन्य देशों में इन्हें समाज के अंदर कहीं न कहीं जगह मिल जाती है, वहीं दक्षिण एशिया के हालात अलग हैं. ट्रांसजेंडरों के अलावा किन्नरों के साथ भी भेदभाव का लंबा इतिहास रहा है. जानकारों का कहना है कि 300 से 400 ईसा पूर्व में संस्कृत में लिखे गए कामसूत्र में भी स्त्री और पुरुष के अलावा एक और लिंग की बात कही गई है.

हालांकि भारत में मुगलों के राज में किन्नरों की काफी इज्जत हुआ करती थी. उन्हें राजा का करीबी माना जाता था. और कई इतिहासकारों का यहां तक दावा है कि कई लोग अपने बच्चों को किन्नर बना दिया करते थे ताकि उन्हें राजा के पास नौकरी मिल जाए.

लेकिन आज हालात यह हैं कि किन्नरों को समाज से अलग कर के देखा जाता है. वे ना ही शिक्षा पा सकते हैं और न कहीं नौकरी कर सकते हैं. गे राइट्स एक्टिविस्ट अंजली गोपालन अंग्रेजों के शासन को जिम्मेदार मानती हैं, "मेरा ख्याल है कि भारत में अब स्थिति अलग है क्योंकि अंग्रेजों के शासन के दौरान यहां इस तरह के कानून बनाए गए. हमारे कानून में स्वाभाविक और अस्वाभाविक की नई परिभाषा दी गई."

तस्वीर: AP

किन्नरों के खिलाफ अपराध

ऐसे में किन्नरों को सड़कों पर लोगों से पैसे मांगते हुए देखा जाता है. और कोई चारा न होने के कारण वे नवविवाहित जोड़ों और नवजात बच्चों को आशीर्वाद देने के बदले पैसे मांगते हैं. भारत में मान्यता है कि किन्नरों के श्राप से कुछ बुरा हो सकता है और व्यक्ति संतानहीन भी हो सकता है.

लेकिन ट्रांसजेंडरों के साथ और भी बुरा बर्ताव हो रहा है. कार्यकर्ताओं का कहना है कि पुलिस जैसी प्रशासनिक संस्थाओं में इन्हें लेकर सही जानकारी भी नहीं होती. केरल में ट्रांसजेंडरों के लिए काम कर रहे एक समाजसेवी की पिछले हफ्ते ही गला रेत कर हत्या कर दी गई, जबकि तमिलनाडु में 42 साल के एक ट्रांसजेंडर को गला घोंट कर मार दिया गया.

सीमा भी इन त्रासदियों से गुजरे हैं. उनका असली नाम हरदीप है. वह पश्चिम दिल्ली के एक कमरे के मकान में अपने छह साल और एक साल के बच्चों के साथ रहते हैं. वह दिन भर बच्चों के डैडी रहते हैं, शाम होते ही अपने चेहरे को पोत कर सीमा बन जाते हैं. रात में 200 रुपये कमा लेते हैं. 2009 में एक पुलिसकर्मी ने सड़क किनारे एक बूथ में उनके साथ बलात्कार किया. अब वह एचआईवी से संक्रमित हैं.

इंडिया एचआईवी एड्स अलायंस की अभिना आहेर का कहना है, "सबसे पहली समस्या तो यही है कि उन्हें एड्स का खतरा रहता है. उनके पेशे के कारण उन्हें हर रोज मारा पीटा जाता है." नेशनल एड्स कंट्रोल ऑरगेनाइजेशन के अनुसार ट्रांसजेंडरों में एड्स का खतरा दूसरों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक है.

सीमा का कहना है कि उनके हालात तभी सुधर सकते हैं अगर सरकार कोई कदम उठाए, "अगर सरकार मदद करना चाहती है तो उन्हें लोगों में जागरूकता फैलानी होगी ताकि लोग भेदभाव ना करें. आखिर हम भी इंसान हैं. भगवान ने मुझे ऐसा बनाया, इसमें ना मेरी कोई गलती है और न ही मेरा कोई जोर."

आईबी/एजेए (रॉयटर्स)

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