पिछले 24 घंटों में देश में संक्रमण के 7,466 नए मामले सामने आए, जो एक नया रिकॉर्ड है. कुल मामलों की संख्या 1,65,799 हो गई है और इसी के साथ भारत वैश्विक कोरोना वायरस चार्ट पर 10वें से नौवें पायदान पर आ गया है.
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भारत में तालाबंदी के चौथे चरण का भी अंत होने वाला है लेकिन महामारी के फैलाव को लेकर चिंता अब बढ़ने लगी है. धीरे-धीरे कई तरह की छूट देने से अर्थव्यवस्था का रुका हुआ पहिया फिर से घूमना शुरू तो हो गया है, लेकिन देश संक्रमण पर काबू पा लेने की स्थिति में नहीं आ पा रहा है. शुक्रवार 29 मई की सुबह जारी हुए ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले 24 घंटों में देश में संक्रमण के 7,466 नए मामले सामने आए, जो कि एक नया रिकॉर्ड है.
ये पहली बार है जब एक दिन में 7,000 से ज्यादा नए मामले सामने आए हैं. इसके पहले लगातार सात दिनों तक रोज 6,000 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे थे. देश में अभी तक सामने आए कुल मामलों की संख्या 1,65,799 हो गई और और इसी के साथ भारत वैश्विक कोरोना वायरस चार्ट पर 10वें से नौवें पायदान पर आ गया है. देश में पिछले 24 घंटों में 175 कोविड-19 मरीजों की मौत भी हो गई और मरने वालों का आंकड़ा 4,706 पर पहुंच गया.
सिर्फ राष्टीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि कई राज्यों में भी स्थिति अत्यंत चिंताजनक बनी हुई है. राजधानी दिल्ली में पिछले 24 घंटों में पहली बार 1,000 से ज्यादा नए मामले सामने आए. बस एक ही दिन पहले तक यह संख्या 792 थी. 1,024 नए मामलों के साथ दिल्ली में कुल मामलों की संख्या 16,281 हो गई है. सभी राज्यों की सूची में दिल्ली अब महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद तीसरे पायदान पर है.
महाराष्ट्र में कुल मामलों की संख्या 59,546 हो गई है और तमिलनाडु में 19,372. केरल में जहां स्थिति काफी संतोषजनक हो चुकी थी वहां एक बार फिर संक्रमण भड़क गया है. पिछले 24 घंटों में वहां 84 नए मामले सामने आए और कुल मामलों का आंकड़ा 1,088 पर पहुंच गया. मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने यहां तक कह दिया कि राज्य कम्युनिटी ट्रांसमिशन के कगार पर है. कम्युनिटी ट्रांसमिशन वो स्थिति होती है जिसमें संक्रमण के स्त्रोत का पता नहीं चल पता, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग नहीं हो पाती और संक्रमण चुपचाप फैलता चला जाता है.
जानकार कई दिनों से यह आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि अगर भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की शुरुआत हो गई तो स्थिति को बेकाबू होते देर नहीं लगेगी. महामारी की रोकथाम के लिए इस समय पूरे देश में 13 शहरों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है क्योंकि सरकार का मानना है कि पूरे देश में संक्रमण के कुल मामलों में से 70 प्रतिशत मामले इन्हीं 13 शहरों में हैं. इनमें मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, अहमदाबाद, ठाणे, पुणे, हैदराबाद, कोलकाता, इंदौर, जयपुर, जोधपुर, और तमिलनाडु के चेंगलपट्टू और तिरुवल्लुर हैं.
डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से मलेरिया की दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन मंगाई थी. लेकिन क्या यह दवा वाकई कोविड-19 का इलाज कर सकती है?
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किस दवा की बात हो रही है?
डॉनल्ड ट्रंप भारत से जो दवा मंगाना चाहते हैं उसका नाम है हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन. 1940 के दशक से इस दवा का इस्तेमाल मलेरिया का इलाज करने के लिए होता रहा है.
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मलेरिया और कोरोना का क्या नाता है?
मलेरिया मच्छर के काटने से होता है और कोविड-19 वायरस से. इसलिए दोनों का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है. ऐसा नहीं है कि जिन लोगों को मलेरिया का खतरा ज्यादा होता है उन्हें कोविड-19 का खतरा भी होगा.
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कोरोना के लिए मलेरिया की दवा क्यों?
हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल मलेरिया के अलावा ऑटो-इम्यून बीमारियों को ठीक करने के लिए भी होता रहा है. कोरोना वायरस शरीर के इम्यून सिस्टम पर हमला करता है. इसलिए इस दवा से इम्यून सिस्टम को बचाने की बात हो रही है.
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क्या अमेरिका के पास नहीं है यह दवा?
ऐसी रिपोर्टें हैं कि अमेरिका में यह दवा पहले से ही भारी मात्रा में मौजूद है लेकिन डॉनल्ड ट्रंप इसे स्टॉक करना चाह रहे हैं. अमेरिका में बिना डॉक्टर की पर्ची के भी यह दवा खरीदी जा सकती है लेकिन इस बीच आम लोग इसे नहीं खरीद पा रहे हैं.
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डॉक्टरों का क्या कहना है?
खुद अमेरिका में ही डॉक्टरों की राय इस पर बंटी हुई है. ट्रंप के समर्थक इसे आजमाने की पैरवी कर रहे हैं लेकिन अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन की अध्यक्ष का कहना है कि वे इसके इस्तेमाल की सलाह नहीं देंगी.
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रिस्क क्या है?
इस दवा का साइड इफेक्ट होने पर दिल पर बुरा असर पड़ सकता है. ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, मांसपेशियों और नसों को नुकसान हो सकता है. सीने में दर्द के साथ साथ धड़कनें कम हो सकती हैं.
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क्या पहले कभी इस्तेमाल हुई है?
राजस्थान में डॉक्टरों ने स्वाइन फ्लू, मलेरिया और एचआईवी की दवाओं को मिला कर इस्तेमाल किया और उन्हें सफलता मिली. हालांकि इस मिश्रण के बाकी मरीजों पर इस्तेमाल की बात सामने नहीं आई है.
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कहां से आया दवा के इस्तेमाल का आइडिया?
किसी भी दवा को मरीजों पर तब ही इस्तेमाल किया जाता है जब लैब में उस पर टेस्ट हो चुके हों. इस दवा के मामले में भी ऐसा ही है. कुछ ऐसे टेस्ट हुए जिनके परिणाम आशाजनक दिखाई दिए.
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रिसर्च क्या कहती है?
एक रिसर्च ने दिखाया कि इस दवा के सेवन से कोरोना वायरस का शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है. एक अन्य रिसर्च के अनुसार इस दवा लेने से मरीजों को कोई फायदा नहीं हुआ. लेकिन यह रिसर्च सिर्फ 11 लोगों पर की गई.
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क्या ज्यादा लोगों पर भी हुई रिसर्च?
चीन में हुई एक रिसर्च ने दिखाया कि 10 अस्पतालों में कुल 100 मरीजों को जब यह दवा दी गई तो उनकी तबियत में सुधार आया. लेकिन तुलना करने के लिए इस रिसर्च में ऐसे मरीजों का कोई आंकड़ा नहीं था जिन्हें यह दवा नहीं दी गई.
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ट्रंप ने कौन सी रिसर्च पढ़ी?
डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है, "फ्रांस में उन्होंने (रिसर्चरों ने) एक बहुत अच्छा टेस्ट किया है." इसी को आधार बनाते हुए उन्होंने अमेरिका में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी है.
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कितनी विश्वसनीय है फ्रांस की रिसर्च?
मार्च में जब फ्रांस में कोरोना वायरस फैलने लगा तब वहां कुछ रिसर्चरों ने हाइड्रॉक्सी-क्लोरोक्वीन पर शोध शुरू किया. इस शोध पर अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज पर हुई चर्चा के तुरंत बाद ट्रंप ने इसकी तारीफ शुरू कर दी.
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WHO का क्या कहना है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन इस वक्त कोरोना वायरस पर छह अलग अलग दवाओं को टेस्ट कर रहा है. इस वायरस को ले कर जल्दी प्रतिक्रिया ना देने को लेकर WHO की काफी आलोचना हो रही है.
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अब आगे क्या?
कोरोना स्थिति को देखते हुए अमेरिका समेत कई देश लैब टेस्टिंग का इंतजार नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि मौजूदा मरीजों पर ही ट्रायल एंड एरर किया जाएगा और शायद उसके बाद ही पता चलेगा कि दवा कारगर है या नहीं.