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भारत: कोविड वैक्सीनों पर सवाल

चारु कार्तिकेय
४ जनवरी २०२१

भारत सरकार ने कोविड-19 के खिलाफ दो वैक्सीनों को मंजूरी दी है लेकिन उसके पीछे की प्रक्रिया को लेकर सवाल उठ रहे हैं. जानकारों का कहना है कि बिना वैक्सीनों की उपयोगिता का डाटा सार्वजनिक किए मंजूरी देना संदेह पैदा करता है.

BdTD | Indien | Ein Mann verleiht Graffiti, die einen Impfstoff darstellen
तस्वीर: Rupak De Chowdhuri/REUTERS

भारत सरकार ने अभी तक पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा बनाई गई ऑक्सफोर्ड-ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन और हैदराबाद स्थित भारत-बायोटेक की वैक्सीन को मंजूरी दी है. सीरम की वैक्सीन का नाम कोविशील्ड है और भारत बायोटेक की वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है. जानकारों का कहना है कि दोनों टीकों की उपयोगिता को लेकर जितनी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए थी, उतनी नहीं की गई है.

किसी भी वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के डाटा को महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसमें कुछ लोगों को वैक्सीन दी जाती है और कुछ को नहीं और फिर दोनों समूहों में बीमारी के फैलने की दर की तुलना की जाती और इस जानकारी को सार्वजनिक किया जाता है. सीरम की दवा अंतरराष्ट्रीय है और उसने ब्रिटेन और ब्राजील में हुए तीसरे चरण के ट्रायल का डाटा तो जारी किया है, लेकिन भारत में हुए ट्रायल का डाटा सार्वजनिक नहीं किया है.

सीरम ने भारत में 1,600 लोगों पर वैक्सीन का तीसरे चरण का ट्रायल किया था लेकिन इस ट्रायल के क्या नतीजे सामने आए यह जानकारी इंस्टीट्यूट ने नहीं दी है. इससे भी बड़े सवाल कोवैक्सीन को लेकर उठ रहे हैं. जानकारों का कहना है कि भारत बायोटेक ने अपनी वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल को अभी पूरा तक नहीं किया है. बल्कि अभी तक इस ट्रायल के लिए वॉलंटियरों की भर्ती ही चल रही है.

सीरम इंस्टीट्यूट के मालिक अदार पूनावाला.तस्वीर: Subhash Sharma/ZUMA Wire/imago images

जानकार पूछ रहे हैं कि ऐसे में इस वैक्सीन को जल्दबाजी में अनुमति क्यों दी गई है. जानी मानी वैक्सीन वैज्ञानिक डॉक्टर गगनदीप कांग ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार को बताया कि नियामक संस्था ड्रग कंट्रोलर जनरल ने बहुत स्पष्ट दिशा निर्देश दिए थे कि इस तरह की जानकारी देना आवश्यक है, लेकिन इसके बावजूद कोवैक्सीन के बारे में आवश्यक डाटा अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है.

हालांकि कोवैक्सीन को लेकर सरकार ने स्पष्टीकरण जारी कर कहा है कि इसे अनुमति एक बैकअप के तौर पर दी गई है और इसका इस्तेमाल तभी किया जाएगा अगर ऑक्सफोर्ड के टीके की खुराकें कम पड़ जाएंगी या अगर संक्रमण के मामले अचानक बढ़ने लगेंगे. सरकार ने यह भी बताया है कि तब तक कोवैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल मोड पर रहेगी.

जानकारों का कहना है कि इतना काफी नहीं है क्योंकि अगर वैक्सीनों की विश्वसनीयता को लेकर सवाल उठते हैं तो इससे महामारी के खिलाफ लड़ाई को तो नुक्सान पहुंचेगा ही, यह भारत की छवि और इन कंपनियों की साख के लिए भी अच्छा नहीं होगा.

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