भारत को क्रिकेट देने वाले देश ब्रिटेन से आया एक अंग्रेज कोच आज कल क्रिकेट के दीवाने हो चुके देश में नेशनल फुटबॉल टीम को खेल के गुर सिखा रहा है.
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खुद भी कोच के रूप में स्टीफन कॉन्सटेंटाइन का करियर उन्हें ब्रिटेन के मिलवॉल से लेकर अफ्रीका के मलावी तक ले गया है. और अब वे यूएई में चल रहे एशिया कप में भारतीय फुटबॉल टीम के अच्छे प्रदर्शन की आशा कर रहे हैं.
ओपनिंग मैच में थाईलैंड को 4-1 से हराकर भारत ने सबको चौंका दिया था. बीते 50 सालों में इस टूर्नामेंट में यह भारत की पहली जीत थी. इसके बाद मेजबान टीम यूएई के हाथों 2-0 से हारने के बाद भी कोच स्टीफन कॉन्सटेंटाइन मानते हैं कि फुटबॉल से उम्मीदें जुड़ी हैं. उन्होंने कहा, "भारतीयों को क्रिकेट से प्यार तो है ही लेकिन अब आप फुटबॉल को लेकर यह कायापलट होते देख रहे हैं. ऐसा होता देख कर वाकई गर्व होता है."
अब वे एशिया कप मुकाबले में भारत की टीम को नॉकआउट स्टेज तक पहुंचते देखना चाहते हैं. लेकिन ऐसा ना हो पाने की स्थिति में भी टीम का क्वालिफाई करना, फिर पहले दो मैचों में अच्छा प्रदर्शन करना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं माना जाना चाहिए.
ब्लू टाइगर्स कहे जाने वाले भारतीय फुटबॉल टीम के खिलाड़ियों में अनुभवी स्ट्राइकर सुनील छेत्री के नाम अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल में दागे गए गोलों का एक प्रभावशाली रिकॉर्ड है. थाईलैंड से खेले गए मैच में गोल दागने के बाद छेत्री गोलों की संख्या के हिसाब से अर्जेंटीना के स्ट्राइकर लियोनेल मेसी से भी आगे निकल गए. टॉप पर 85 गोलों के साथ रोनाल्डो हैं और छेत्री के नाम 67 गोल हैं. हालांकि जैसी दमदार टीमों के सामने मेसी ने अपने गोल जड़े हैं उनसे छेत्री के गोलों की तुलना करना समान बात नहीं है. खुद छेत्री ने कहा, "मेसी, रोनाल्डो से मेरी कोई तुलना ही नहीं हो सकती. लेकिन हां ऐसी तुलना से मैं बहुत बहुत सम्मानित महसूस करता हूं."
एक टीम के तौर पर एशिया कप में अंतिम 16 में जगह बनाना भारत का लक्ष्य है. कॉन्सटेंटाइन कहते हैं, "मेरे विचार में भारत में फुटबॉल काफी लोकप्रिय है - लेकिन उसके बारे में ज्यादा लिखा नहीं जाता."
चार साल पहले भारतीय टीम के कोच की जिम्मेदारी संभालने वाले कॉन्सटेंटाइन ने ऐसी ही भूमिका में मलावी, सूडान और रवांडा की टीमों के साथ रहते हुए हिंसा, संघर्ष, खून खराबा और हर तरह का मानवीय कष्ट करीब से देखा है. वे कहते हैं, "आज हम बड़ी टीमों के साथ खेल पा रहे हैं और उन्हें कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. जब मैं आया था तब तो ऐसे हालात नहीं थे. हम एक ठोस टीम हैं और खेल के हर पहलू पर काफी काम कर रहे हैं. एक दिन बड़ी से बड़ी टीम को चोट पहुंचाने की हालत में होंगे."
सन 2013 से भारत में चल रही इंडियन सुपर लीग ने भी देश में फुटबॉल को थोड़ा लोकप्रिय बनाया है. 1.3 अरब की आबादी वाला देश भारत अब भी दुनिया के फुटबॉल के मानचित्र पर अपनी छाप नहीं छोड़ पाया है. भारतीय टीम 1964 में पहली बार एशिया कप खेली थी, जिसमें वह फाइनल खेली. तब केवल चार टीमें ही मुकाबले में थीं और कप इस्राएल ने जीता था. उसके बाद सीधे 2011 में ही टीम क्वालिफाई कर पाई, और शुरु में ही ऑस्ट्रेलिया, बहरीन, दक्षिण कोरिया जैसी टीमों से बुरी तरह हार कर बाहर हो गई.
अब हालात अलग हैं. भारतीय टीम विश्व की टॉप 100 टीमों में शामिल है. टीम की सफलता का श्रेय खिलाड़ियों की प्रतिभा के अलावा कोच कॉन्सटेंटाइन के स्पोर्ट्स साइंस, पोषण और फिटनेस की समझ को भी दिया जा रहा है.
आरपी/एमजे (एपी, एएफपी)
फुटबॉल खिलाड़ियों के अजब-गजब अंधविश्वास
कोई नमक छिड़कता है, तो कोई बाल संवारता है. कोई दाहिना पैर उठाता, तो कोई जमीन चूमता है. विज्ञान कुछ भी कहे, खिलाड़ियों से लेकर टीम के कोच तक मैच जीतने के लिए न सिर्फ खेल कौशल पर, बल्कि इन बातों पर भी विश्वास जताते हैं.
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क्रिस्टियानो रोनाल्डो
पुर्तगाल के स्टार स्ट्राइकर क्रिस्टियानो रोनाल्डो अपनी मान्यताओं को पूरा करने का कोई मौका नहीं छोड़ते. रियाल मैड्रिड की टीम बस में वह हमेशा सबसे पीछे बैठते हैं. वहीं प्लेन में वह सबसे आगे की सीट लेते हैं. फुटबॉल फील्ड में वह हमेशा दाहिना पैर उठा कर घुसते हैं. इतना ही नहीं हाफ टाइम में वह अपने बाल जरूर संवारते हैं. इन सब के पीछे क्या कारण हैं, ये तो रोनाल्डो हीं जानते हैं.
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नेमार
नेमार की गिनती फुटबॉल की दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों में होती है. हालांकि वह स्वयं कई मौकों पर कह चुके हैं कि क्रिस्टियानो रोनाल्डो और लियोनेल मैसी दूसरे ग्रह से आए हैं. खैर, नेमार की भी अपनी मान्यताएं कम नहीं. वह हर मैच के पहले अपने पिता को याद करते हैं. फील्ड में प्रवेश करने के लिए वह हमेशा पहले दाहिना पैर ही उठाते हैं. इसके बाद वह घास छूकर प्रार्थना भी करते हैं.
साल 1990 के विश्वकप में अर्जेंटीना के खिलाड़ी सर्जियो ने विपक्षी टीम के पेनल्टी किक को रोकने के लिए फील्ड में पेशाब करना अपनी आदत बना लिया था. यह विपक्षी टीम को असहज करने का एक तरीका था. अर्जेंटीना के इस खिलाड़ी की यह ट्रिक फाइनल मैच में पहुंचने तक तो कामयाब रही. लेकिन फाइनल में जर्मनी ने अर्जेंटीना को 1-0 से हरा कर ट्रॉफी अपने नाम कर ली.
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मानुएल नॉयर
जर्मन टीम के गोलकीपर और कप्तान नॉयर भी कुछ तरह की बातों में विश्वास करते हैं. आमतौर पर नॉयर की एक्शन साफ-सुथरा और अच्छा नजर आता है. वह मैच शुरू होने से पहले दोनों टीम के गोल पोस्ट को छूते हैं. इतना ही नहीं, सेंकड हाफ के पहले भी नॉयर ऐसा ही करते हैं.
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बास्टियान श्वाइनश्टाइगर
साल 2014 के फुटबॉल विश्वकप के हीरो रहे बास्टियान आज भी करिश्माई खेल के जादूगर माने जाते हैं. पूर्व जर्मन कप्तान अब अमेरिका की शिकागो फायर क्लब के लिए खेलते हैं. बास्टियान गीले मोजे और जूते पहनकर खेलते थे. उन्हें लगता था कि इससे उनकी टीम मैच जीत जाएगी.
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लोरां ब्लाँ और फैबियन बार्थेज
लोरां कई साल तक फ्रांस की टीम की कप्तानी संभालते रहे. हर अंतरराष्ट्रीय मैच के पहले वह अपने साथी खिलाड़ी फाबियान बार्थेज के गंजे सिर को चूमते. शायद यह टीम के लिए गुडलक लेकर आया. इसके बाद टीम कई मैच जीती, जिसके चलते टीम के अन्य खिलाड़ी भी फाबियान के सिर पर चूमने लगे. फिर क्या, सारे खिलाड़ी मैच के पहले फाबियान के गंजे सिर को चूमने के लिए लाइन लगा कर खड़े हो जाते.
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गैर्ड मुलर
फुटबॉल जूते हमेशा फिट होने चाहिए. लेकिन पूर्व जर्मन खिलाड़ी मुलर मैच में हमेशा अपने साइज से तीन साइज बड़े जूते पहनते. उनका मानना था कि वे इस तरह से अपने पैर का बेहतर इस्तेमाल कर पाते हैं. वहीं ऑस्ट्रियाई खिलाड़ी योहान एटमायर हमेशा अपने साइज से छोटे जूते पहन कर खेलने पर जोर देते थे. उनका कहना था जूते को पैरों में कंडोम की तरह फिट होना चाहिए.
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गैरी लिनेकर
गैरी इंग्लैंड में फुटबॉल का एक जाना-माना चेहरा रहे हैं. 80 के दशक में इनका नाम इंग्लैंड के शानदार स्ट्राइकर में शामिल रहा. लिनेकर वॉर्मअप सेशन के दौरान गोल नहीं करते थे. उनका मानना था कि अगर वह ऐसा करेंगे तो असल मैच में गोल नहीं कर सकेंगे.
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एरिक काँतोना
अमूमन डॉक्टर फुटबॉल खिलाड़ियों को मैच के पहले सॉना स्नान या गर्म पानी से नहाने से मना करते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक गर्म पानी का स्नान खिलाड़ियों के लिए नुकसानदायक हो सकता है. लेकिन फ्रेंच खिलाड़ी एरिक डॉक्टरों की इस सलाह को दरकिनार करते हुए मैच के दिन सुबह तकरीबन 8 बजे पांच मिनट गर्म पानी में जरूर नहाते.
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रियाल मैड्रिड
आज रियाल मैड्रिड के लिए दुनिया का कोई भी खिताब पाना बड़ी बात नहीं है. टीम ने 2018 की चैपिंयस ट्रॉफी भी अपने नाम की है. लेकिन 1912 में टीम के लिए ये मुकाबले आसान नहीं थे. पांच साल तक टीम ने कोई मैच नहीं जीता था. अपनी हार के फेर को खत्म करने के लिए टीम ने फुटबॉल मैदान के बीच में एक लहसुन को गाड़ दिया. यकीन मानिए, इस सीजन में टीम ने स्पेनिश क्लबों की लीग कोपा डेल रे जीत ली.
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रोमेयो अंकोनितानी
रोमेयो इटली के एसी पीसा क्लब में 1978 से 1994 तक कप्तान रहे. उनका मानना था कि नमक की उनकी टीम की जीत में अहम भूमिका है. वह मैच के पहले फील्ड पर नमक डालते थे. जितना अहम मैच, फील्ड पर उतना ज्यादा नमक. एक मौके पर टीम विपक्षी टीम के साथ बहुत ही अहम मुकाबले में उलझी थी, उस वक्त अंकोनितानी ने फील्ड पर 26 किलो नमक डाल दिया.
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मारियो जगालो
ब्राजील के पूर्व खिलाड़ी और कोच मारियो का 13 नंबर के साथ अटूट प्रेम था. मिस्र के सेंट एंटोनी की मारियो पूजा करते थे. मारियो एक बिल्डिंग के 13वें माले पर रहते थे. उन्होंने महीने की 13 तारीख को शादी की थी. जब वह फुटबॉल खेलते थे, तो हमेशा 13 नंबर की जर्सी पहनते थे. साल 1994 में मारियो की कप्तानी में ब्राजील की टीम ने विश्वकप अपने नाम किया था.
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कार्लोस बिलार्डो
1986 में अर्जेंटीना के कप्तान कार्लोस बिलार्डो ने अपनी टीम को पोल्ट्री आइटम मसलन चिकन, अंडे आदि खान से मना कर दिया था. वे इसे अपशगुन मानते थे. वह हर मैच से पहले खिलाड़ियों को टूथपेस्ट के ट्यूबों का आदान-प्रदान करने के लिए भी कहते, क्योंकि उन्होंने जिस मैच के पहले एक साथी खिलाड़ी से टूथपेस्ट उधार ली थी, टीम वह मैच जीत गई थी. खैर, अर्जेंटीना विश्वकप तो जीत ही गया था.
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जोवानी त्रापातोनी
महान इतालवी कोच जोवानी त्रापातोनी को लेकर कहा जाता है कि वह काफी अंधविश्वासी थे. यह भी माना जा सकता है वह काफी धार्मिक थे. अपनी टीम को फील्ड में भेजने से पहले वह पवित्र जल उस फील्ड पर छिड़कते थे. उनकी बहन नन थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
योआखिम लोएव
जर्मन टीम के फुटबॉल कोच योआखिम लोएव भी लकी चार्म में विश्वास करते हैं. सालों तक नीला स्वेटर उनका पसंदीदा बना रहा. उनकी इस पसंद की साल 2010 के विश्वकप में कई फुटबॉल फैंस ने जमकर नकल भी की. नतीजतन, कई दुकानों में ऐसा नीला स्वेटर खत्म हो गया. चैंपियनशिप के बाद उन्होंने यह असली स्वटेर डीएफबी सॉकर म्यूजियम को दान कर दिया. वह आज भी नीले रंग में नजर आते हैं.