देश के बाजारों में फिलहाल वर्ष 2010 से पहले बने तीस प्रतिशत सिक्के ही प्रचलन में हैं. वैसे सिक्के ताम्र-गिलट के बने होते थे. व्यापारी उन सिक्कों को गलाकर धातु निकाल लेते थे. यह महज संयोग नहीं है कि गिलट की कीमत वर्ष 2010 में साढ़े तीन सौ रुपए प्रति किलो थी जो अब लगभग तीन गुनी बढ़ कर एक हजार रुपए तक पहुंच गई है.
एक उदाहरण से सिक्कों के गायब होने का रहस्य आसानी से समझा जा सकता है. दो रुपए के एक सिक्के का वजन छह ग्राम होता है. ऐसे पांच सौ सिक्कों का अंकित मूल्य एक हजार रुपए होगा. लेकिन इन पांच सौ सिक्कों को गला कर तीन किलो गिलट हासिल किया जा सकता है. एक हजार रुपए प्रति किलो की दर से इसकी कीमत तीन हजार रुपए यानी सिक्कों के अंकित मूल्य से तीन गुनी हुई.
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट
भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी एक ताजा रिपोर्ट में बाजार से गायब होते सिक्कों पर चिंता जताई गई है. दरअसल इन सिक्कों में जो निकेल होता है उसकी कीमत सिक्के की कीमत से तीनगुनी होती है. इसलिए लोग इनको धातु बाजार में बेच रहे हैं. रिजर्ब बैंक की ओर से पिछले दो सालों में भारी तादाद में सिक्के जारी किए जाने के बावजूद भारतीय बाजारों में इसकी भारी कमी पैदा हो गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2011 में लगभग 11.12 लाख सिक्के प्रचलन में थे. लेकिन वर्ष 2012 में इनकी तादाद घट कर 7.8 लाख रह गई.
करारे नोट सबको अच्छे लगते हैं. भारत का रुपया हो या यूरोप का यूरो या फिर अमेरिका का डॉलर, ये सब कपास से बनते हैं. जी हां, कागज से नहीं कपास से. चलिए देखते हैं कैसे.
तस्वीर: Getty Imagesभारत समेत कई देशों में नोट बनाने के लिए कपास को कच्चे माल की तरह इस्तेमाल किया जाता है. कागज की तुलना में कपास ज्यादा मुश्किल हालात झेल सकता है. लेकिन नोट बनाने के लिए कपास को पहले एक खास प्रक्रिया से गुजरना होता है.
तस्वीर: tobias kromke/Fotoliaकपास की ब्लीचिंग और धुलाई करने के बाद उसकी लुग्दी बनाई जाती है. इसका असली फॉर्मूला सीक्रेट है. इसके बाद सिलेंडर मोल्ड पेपर मशीन उस लुग्दी को कागज की लंबी शीट में बदलती है. इसी दौरान नोट में वॉटरमार्क जैसे कई सिक्योरिटी फीचर डाल दिये जाते हैं.
तस्वीर: Giesecke & Devrientयूरोजोन की मुद्रा यूरो में 10 से ज्यादा सिक्योरिटी फीचर होते हैं. इनकी मदद से जालसाजी या नकली मुद्रा के चलन को रोकने की कोशिश होती है. जालसाजी को रोकने के लिए निजी प्रिंटरों पर नकेल कसी जाती है.
तस्वीर: Giesecke & Devrientतमाम कोशिशों के बावजूद जालसाज नकली नोट बाजार में पहुंचा ही देते हैं. 2015 में रिकॉर्ड संख्या में नकली यूरो सामने आए. यूरोपीय सेंट्रल बैंक के मुताबिक इस वक्त दुनिया भर में 9,00,000 यूरो के नोट नकली हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Hoppeयूरो के नोट डियाजन करने का जिम्मा राइनहोल्ड गेर्स्टेटर का है. उन्हें हर यूरो के नोट पर यूरोप के इतिहास का जिक्र करने में मजा आता है. 5 से 500 यूरो तक के हर नोट पर यूरोपीय इतिहास से जुड़ी छवि जरूर मिलेगी.
तस्वीर: Getty Images/AFPदुनिया के करीब सभी देशों में हर नोट बिल्कुल अनोखा होता है. उसका अपना नंबर होता है. यूरो के नोटों में भी ऐसा नंबर होता है. नोट छापने वाली 12 प्रिटिंग प्रेसें अलग अलग अंदाज में नंबर छापती है. नंबरों के आधार पर ही तय होता है कि कौन से नोट यूरोजोन के किस देश को भेजे जाएंगे.
तस्वीर: Giesecke & Devrientयूरोजोन में एक नोट छापने की कीमत करीब 16 सेंट आती है. बड़े नोट थोड़े ज्यादा महंगे पड़ते हैं. लागत के हिसाब से सिक्के ज्यादा महंगे पड़ते हैं. उन्हें बनाने में ज्यादा खर्च आता है.
तस्वीर: Giesecke & Devrientजर्मनी का संघीय बैंक अब नोट छपाई को आउटसोर्स करना चाह रहा है. खर्च कम करने के लिए ऐसा किया जा रहा है. बीते साल जर्मन प्रिंटर गीजेके डेवरियेंट को अपनी म्यूनिख प्रेस से 700 कर्मचारियों की छुट्टी करनी पड़ी. कंपनी को मलेशिया और लाइपजिग में नोट छापना सस्ता पड़ रहा है.
तस्वीर: Giesecke & Devrientएक नोट को जस का तस बाजार में बहुत समय तक नहीं रखा जा सकता. ऐसा करने से नकली नोट बनाने वालों को मौका मिलता है. लिहाजा समय समय पर नोटों का डिजायन बदला जाता है. आम तौर पर 5,10,20,50,100 और 500 के नोटों को अलग अलग सालों में बदला जाता है.
तस्वीर: EZB सिक्कों की रहस्यमय गुमशुदगी की जांच करने वाले रिजर्व बैंक अधिकारियों ने इसके दुरुपयोग की संभावना से इंकार नहीं किया है. बैंक के एक अधिकारी बताते हैं, "वर्ष 2009 तक बने दो रुपए के सिक्कों में ताम्र-गिलट होता था. धातु के व्यापारियों को इस धातु से सिक्कों की कीमत के मुकाबले तीनगुनी कीमत मिल जाती थी." चार साल पहले बने एक, दो और पांच रुपए के सिक्के मौजूदा सिक्कों के मुकाबले भारी होते थे.
अर्थशास्त्री भी सहमत
सिक्कों की गुमशुदगी के इस रहस्य से अर्थशास्त्री भी सहमत हैं. जाने-माने अर्थशास्त्री दीपंकर दासगुप्ता कहते हैं, "पूरे देश में सिक्कों की कमी एक गंभीर समस्या बनती जा रही है. मुनाफाखोर व्यापारी इन सिक्कों को अवैध तरीके से जमा करते हैं. उसके बाद इनको गला कर मिलने वाली धातु को बाजार में बेच दिया जाता है." ईस्टर्न इंडिया मेटल एसोसिएशन के अध्यक्ष एन. केजरीवाल कहते हैं, "पिछले चार वर्षों में गिलट की कीमतें तीन गुनी बढ़ गई हैं. इसलिए खासकर वर्ष 2010 से पहले बने सिक्के बाजार से तेजी से गायब हो रहे हैं."
भारत में नोट वापस लेने की समय सीमा पहले 31 मार्च 2014, फिर बढ़ाकर 1 जनवरी 2015 की गयी. अब अंतिम समय सीमा 30 जून 2015 की है. काले धन पर लगाम लगाने के लिए आरबीआई ने 2005 से पहले के नोटों को वापस लेने का फैसला किया था.
तस्वीर: Fotolia/Philippe-Olivier Conभारतीय रिजर्व बैंक ने 2005 के पहले छपे 500 और 1,000 के सभी नोटों को वापस लेने का फैसला लिया. 1 अप्रैल 2014 से लोगों ने बैंक जाकर नए नोट लेना शुरू किया.
तस्वीर: Manan Vatsyayana/AFP/Getty Imagesकभी जाली नोटों की खेप पकड़ी जाती है, तो कभी भ्रष्ट अफसरों या नेताओं के घर से बड़ी मात्रा में नकदी बरामद किए जाते हैं. इस कदम से देश में काले धन और जाली नोटों पर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari2014 की शुरुआत में लातविया ने यूरो मुद्रा अपनाया. लातविया यूरो अपनाने वाला 18वां देश है. यूरो अपनाने का मकसद मजबूत मुद्रा के साथ देश की आर्थिक तरक्की भी है.
तस्वीर: DW/Frank Hofmannयूरो यूरोपीय संघ के 28 में से 18 सदस्य की आधिकारिक मुद्रा है. इन्हें सामूहिक रूप से यूरोजोन कहा जाता है. यूरोपीय संघ के बाहर तीन देशों में भी यूरो का चलन है.
तस्वीर: Getty Imagesमजबूत मुद्रा और आर्थिक मजबूती की वजह से यूरोप के ज्यादा से ज्यादा देश यूरो अपनाना चाहते हैं. 1 जनवरी 2015 से लिथुएनिया ने भी यूरो को करेंसी के तौर पर अपना लिया.
तस्वीर: picture-alliance/dpaयूरो दुनिया में डॉलर के बाद सबसे बड़ी रिजर्व करेंसी है. साथ ही यह डॉलर के बाद कारोबार में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली दूसरी मुद्रा भी है.
तस्वीर: Fotolia/Africa Studioई मनी या फिर प्लास्टिक मनी, जाली नोटों पर लगाम लगाने के लिए इनका इस्तेमाल किया जा सकता है. सिर्फ एक कार्ड के सहारे भुगतान संभव है.
तस्वीर: Fotolia/Philippe-Olivier Con वह कहते हैं कि दो रुपए के पांच सौ सिक्कों को गला कर ही धातु के व्यापारी दो हजार रुपए मुनाफा कमा सकते हैं. उनका आरोप है कि बेईमान व्यापारी बड़े पैमाने पर यह खेल कर रहे हैं. इसी तरह, पांच रुपए के पुराने सिक्कों का वजन नौ ग्राम होता है. वैसे, दो सौ सिक्कों को गला कर धातु बाजार में 1800 रुपए कमाए जा सकते हैं. यानी आठ सौ रुपए का शुद्ध मुनाफा. लेकिन इन व्यापारियों के लिए दो रुपए के सिक्के को गलाना सबसे फायदे का सौदा है. यही वजह है कि दो रुपए के पुराने सिक्के बाजार से लगभग गायब हो गए हैं.
धातु विशेषज्ञों का कहना है कि गिलट का इस्तेमाल मुख्य रूप से ब्लेड उद्योग में किया जाता है. इसके अलावा बिजली संयंत्र, कंडेंसर पाइप और पेट्रोकेमिकल्स में भी इस धातु का इस्तेमाल होता है.
रिपोर्ट: प्रभाकर, कोलकाता
संपादन: महेश झा