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भारत में जारी मानवाधिकार हनन

गुलशन मधुर, वॉशिंगटन२६ फ़रवरी २००९

अमेरिका ने अपनी वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्ट जारी की है जिसमें चीन भारत सहित पाकिस्तान को भी आड़े हाथों लिया गया है. भारत के कश्मीर, पूर्वी प्रदेशों में पुलिस की कार्रवाई की भी इस रिपोर्ट में निंदा की गई है.

अमेरिका की वार्षिक मानवाधिकार रिपोर्टतस्वीर: AP

अमेरिका ने विश्व भर में मानवाधिकारों की स्थिति पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि भारत-सरकार अपने नागरिकों का सम्मान करती रही है, लेकिन पुलिस और सुरक्षाबलों द्वारा, हिरासत में रखे जा रहे लोगों की बिना न्यायिक कार्रवाई के हत्या, लापतगी, यातना और बलात्कार जैसी समस्याएं जारी रहीं.

दक्षिण एशिया में कई समस्याएं

रिपोर्ट में सरकार और पुलिस के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार की मौजूदगी की भी चर्चा की गई है. सरकार द्वारा देश में आने वाले विशेषज्ञों और विद्वानों की यात्रा पर पाबंदियां लागू की जाने की निंदा की गई है.

जातिभेद, घरेलू हिंसा, बालविवाह, दहेज से होने वाली मौतें, इज़्ज़त-आबरू के नाम पर किए जाने वाले अपराध, महिला शिशु और भ्रूणहत्या, रिपोर्ट में गिनाई गई अन्य समस्याएं हैं.

कश्मीर, देश के उत्तरपूर्व और नक्सल पट्टी में पृथकतावादी तत्वों के अतिवाद की रिपोर्ट में तीखी निंदा करते हुए, उसे सैनिक अधिकारियों, पुलिस, सरकारी कर्मचारियों, जजों और ग़ैरसैनिकों की हत्याओं के लिए दोषी बताया गया है.

चीन ने दी कड़ी प्रतिक्रियातस्वीर: AP

राज्यों द्वारा, पुलिस-ऐनकाउंटरों में होने वाली मौतों की सी-आई-डी द्वारा जांच की बजाए, स्वयं अपनी आंतरिक जांच करवाए जाने की निंदा की गई है. लेकिन साथ ही, पुलिस की ज़्यादतियों के आरोपों पर की गई कुछ कार्रवाइयों के भी उदाहरण दिए गए हैं. जैसे मुंबई पुलिस द्वारा, वरिष्ठ इंस्पेक्टर प्रदीप शर्मा की बर्ख़ास्तगी, जिन पर २५ वर्षों में 112 से अधिक ऐनकाउंटर हत्याएं करने के आरोप लगाए गए हैं.

पाकिस्तान में भी स्थिती ख़राब

रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान में मुशर्रफ़ के सत्ता से हटने के बाद ज़रदारी-सरकार द्वारा उठाए गए क़दमों के बावजूद मानवाधिकारों की स्थिति ख़राब बनी रही. देश के उत्तरपश्चिम में सैनिक कार्रवाइयों में 1150 हत्याओं, वहां उग्रवादियों के हमलों में 825 और ग़ैरसैनिकों के मारे जाने, और आत्मघाती बमविस्फोटों में 970 से अधिक मौतों क उल्लेख किया गया है. इसके अलावा, उग्रवादियों से जारी संघर्ष में लगभग दो लाख लोगों के विस्थापित होने का व्यौरा दिया गया है. चीन ने इस रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा है कि "अमेरिका को मानवाधिकारों का रक्षक देश बनने की ज़रूरत नहीं है और किसी भी देश को हमारे आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है".

अमेरिका की लोकतंत्र, मानवाधिकारों और श्रम-संबंधी मामलों की कार्यवाहक सहायक विदेशमंत्री कैरेन स्टुअर्ट के अनुसार, "हमने पाकिस्तान में मानवाधिकारों के सिलसिले में कुछ प्रगति देखी है, लेकिन बहुत मामलों में स्थिति ख़राब है. सरकार ने और सुधारों का वचन दिया है और हम उस पर उन वचनों को पूरा करने का दबाव डालते रहेंगे."

रिपोर्ट में नेपाल में माओवादी और जातिमूलक संगठनों द्वारा मानवाधिकारों के हनन, और बांगलादेश में सुरक्षाबलों द्वारा जारी गंभीर ज़्यादतियों की चर्चा की गई है, हालांकि बांग्लादेश में हिंसा में कमी आने की बात कही गई है.

रिपोर्ट में कहा गया कि श्रीलंका में 2008 के अंत तक अल्पसंख्यकों को राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल करने में न के बराबर प्रगति हुई.

इस बीच चीन ने, रिपोर्ट के, तिब्बतियों के और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन के व्यौरे को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का नाम दिया है. बुधवार को रिपोर्ट जारी करते हुए अमेरिका की विदेशमंत्री हिलरी क्लिंटन ने कहा था, "मानवाधिकारों के प्रति हमारी वचनबद्धता अपने नैतिक मूल्यों में हमारी निष्ठा और हमारे इस विश्वास पर आधारित है कि अमेरिका को, पहले स्वयं अपने आदर्शों का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए."

सहायक विदेशमंत्री स्टुअर्ट ने कहा कि अमेरिका अपने बारे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा व्यक्त विचारों को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं मानता, न ही अन्य सरकारों को, अपने कामकाज के बारे में विचारों को इस रूप में देखना चाहिए.

रिपोर्ट में, दुनिया के १०८ से अधिक देशों में मानवाधिकारों की स्थिति का जायज़ा लिया गया है.

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