फोक्सवागन समूह की कंपनी स्केनिया पर आरोप लगे हैं कि उसने भारत में बसों के ठेके हासिल करने के लिए अधिकारियों और नेताओं को रिश्वत दी. जर्मनी में एजेंसियों ने इन आरोपों की प्राथमिक जांच शुरू कर दी है.
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स्केनिया फोक्सवागन समूह की सहायक कंपनी है और इसका मुख्यालय स्वीडन में है. कंपनी के खिलाफ इन आरोपों का खुलासा स्वीडन के एक टीवी चैनल ने किया. चैनल के एक कार्यक्रम में दिखाया गया कि कंपनी ने 2013 से 2016 के बीच ठेके हासिल करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों और राजनेताओं को रिश्वत दी. चैनल ने बताया कि ईमेल, टेक्स्ट मेसेज, कागजातों और कुछ लोगों के बयानों में इन आरोपों के सबूत मिले हैं.
स्केनिया ने इन आरोपों को स्वीकार भी कर लिया है. कंपनी की मुख्य कार्यकारी हेनरिक हेनरिकसन ने टीवी चैनल से कहा कि कंपनी के अंदरूनी सिस्टम "को इस बारे में घंटी बजा देना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि भारत में कंपनी के वरिष्ठ कर्मचारियों ने सिस्टम को नाकाम कर दिया." रिपोर्ट दिखाने वाले टीवी चैनल के मुताबिक स्केनिया की अंदरूनी समीक्षा में सामने आया था कि भारत के सात राज्यों में बस ठेकों के लिए पैसों का भुगतान किया गया था.
कंपनी ने ईमेल में भेजे एक बयान में बताया है कि टीवी चैनल पर जो जानकारी दी गई है वो "2017 में स्केनिया द्वारा खुद की गई जांच में सामने आए तथ्यों पर ही आधारित है." कंपनी ने बयान में यह भी कहा कि उस समय के जिन प्रबंधकों का इस सिलसिले में नाम आया है वो अब कंपनी छोड़ कर जा चुके हैं और स्केनिया ने भी अब भारत में बसें बेचना बंद कर दिया है.
कंपनी ने यह भी कहा कि इन सब के बावजूद पूरे मामले में "सबूत इतने मजबूत नहीं हैं कि इनसे किसी को दोषी ठहराया जा सके." लेकिन जर्मनी के ब्राउनश्वाइग में प्रॉजीक्यूटरों ने इन आरोपों में प्राथमिक जांच शुरू कर दी है. तहकीकात करने वालों में से एक ने बताया कि अभी यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं या नहीं.
फोक्सवागन ने 2008 में स्केनिया में मालिकाना हिस्सेदारी हासिल की थी और 2014 में पूरी तरह से कंपनी को अपने नियंत्रण में ले लिया था. स्वीडन के टीवी चैनल ने बताया कि उसने इस रिपोर्ट के लिए जर्मनी के टीवी चैनल जेडडीएफ और भारत के कॉन्फ्लुएंस मीडिया से सहयोग किया था.
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने पाया है कि सभी एशियाई देशों में भारत में सबसे ज्यादा रिश्वत ली और दी जाती है. आखिर पिछले 12 महीनों में भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा है या घटा?
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सबसे ऊंची रिश्वत की दर
इसी साल जुलाई से सितंबर के बीच एशिया के 17 देशों में 20,000 लोगों के बीच यह सर्वेक्षण किया गया. भारत में 39 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें सरकारी सुविधाओं का इस्तेमाल करने के लिए रिश्वत देनी पड़ी. ये एशिया में सबसे ऊंची रिश्वत की दर है. नेपाल में यह दर 12 प्रतिशत, बांग्लादेश में 24, चीन में 28 और जापान में दो प्रतिशत पाई गई.
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सबसे ज्यादा रिश्वत पुलिस को
सर्वेक्षण के लिए लोगों से छह सरकारी सुविधाओं से संबंधित उनके तजुर्बे के बारे में पूछा गया - पुलिस, अदालत, सरकारी अस्पताल, पहचान पत्र लेने की प्रक्रिया और बिजली, पानी जैसी सेवाएं. सबसे ज्यादा (42 प्रतिशत) लोगों ने माना कि उन्हें पुलिस को रिश्वत देनी पड़ी. पहचान पत्र और अन्य सरकारी कागजात लेने के लिए 41 प्रतिशत लोगों को रिश्वत देनी पड़ी.
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निजी संपर्कों का इस्तेमाल
पुलिस, अदालतें और कागजात हासिल करने जैसे कामों में निजी ताल्लुकात का इस्तेमाल करने की बात भी भारत में बड़ी संख्या (46 प्रतिशत) में लोगों ने मानी. यह दिखाता है कि प्रक्रियाएं ठीक से काम नहीं कर रही हैं जिसकी वजह से जान पहचान का सहारा लेना पड़ता है. चीन में यह दर 32 प्रतिशत है और जापान में चार प्रतिशत.
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चुनावी भ्रष्टाचार
एशिया में बड़ी मात्रा में रिश्वत ले कर वोट देने की बात भी लोगों ने मानी है. 18 प्रतिशत की दर के साथ भारत इसमें चौथे नंबर पर है. सबसे ऊपर हैं थाईलैंड और फिलीपींस, 28 प्रतिशत दर के साथ. 26 प्रतिशत की दर के साथ इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है.
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सेवा के बदले सेक्स
पहली बार सर्वेक्षण में सरकारी अधिकारियों द्वारा सेवा के बदले सेक्स मांगने को भी शामिल किया है. भारत में इसकी दर 11 प्रतिशत है. 18 प्रतिशत की दर के साथ इंडोनेशिया सबसे ऊपर है. श्रीलंका में यह दर 17 प्रतिशत है पाई गई और थाईलैंड में 15 प्रतिशत.
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बढ़ा है भ्रष्टाचार
भारत में 47 प्रतिशत लोगों को लगता है कि पिछले 12 महीनों में भ्रष्टाचार बढ़ा है. नेपाल में ऐसा 58 प्रतिशत लोगों को लगता है, जबकि चीन में 64 प्रतिशत लोगों को लगता है कि उनके देश में भ्रष्टाचार कम हुआ है.
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सरकार की छवि
भारत में भ्रष्टाचार बढ़ने के बावजूद 63 प्रतिशत लोगों को लगता है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में भारत का प्रदर्शन अच्छा है. म्यांमार में यह दर 93 प्रतिशत है और बांग्लादेश में 87.
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सरकार में विश्वास
भ्रष्टाचार की वजह से सरकार की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ता है. भारत में 51 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्हें सरकार पर या तो कम विश्वास है या बिल्कुल विश्वास नहीं है. जापान में ऐसा 56 प्रतिशत लोगों ने कहा.
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बोलने से डर
भारत में 63 प्रतिशत लोगों को लगता है कि अगर उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुंह खोला तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. बांग्लादेश में भी 63 प्रतिशत लोग ऐसा ही महसूस करते हैं.