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समाज

भारत में दोगुनी हो गई है शराब की खपत

प्रभाकर मणि तिवारी
२५ सितम्बर २०१८

शराब की कीमतें बढ़ने के बावजूद देश में पीने वालों की तादाद तेजी से बढ़ रही है और प्रति व्यक्ति शराब की खपत भी.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Felber

जाने-माने गजल गायक पंकज उधास ने कोई दो दशक पहले गाया था कि हुई महंगी बहुत ही शराब के थोड़ी-थोड़ी पिया करो. लेकिन भारत में हो रहा है ठीक इसका उल्टा. शराब की वजह से भारत में हर साल 2.60 लाख लोगों की मौत हो जाती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि वर्ष 2005 से 2016 के बीच देश में प्रति व्यक्ति शराब की खपत दोगुनी से भी ज्यादा हो गई. वर्ष 2005 में देश में जहां प्रति व्यक्ति अल्कोहल की खपत 2.4 लीटर थी, वहीं 2016 में यह बढ़ कर 5.7 लीटर तक पहुंच गई.

संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्कोहल के कुप्रभाव की वजह से जहां हिंसा, मानसिक बीमारियों और चोट लगने जैसी समस्याएं बढ़ी हैं, वहीं कैंसर व ब्रेन स्ट्रोक जैसी बीमारियों की चपेट में आने वाले लोगों की तादाद भी बढ़ी है. संगठन ने एक स्वस्थ समाज के विकसित होने की राह में सबसे गंभीर खतरा बनती इस समस्या पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल करने की सिफारिश की है.

शराब के ज्यादा सेवन से कम से कम दो सौ तरह की बीमारियां हो सकती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, ज्यादा शराब पीने वाले लोगों में टीबी, एचआईवी और निमोनिया जैसी बीमारियों के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेडरोस आधानोम गेब्रेयेसुस का कहना है, "शराब के सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने और वर्ष 2010 से 2025 के बीच इसकी वैश्विक खपत में 10 फीसदी की कटौती का लक्ष्य हासिल करने के लिए अब इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने चाहिए." वह कहते हैं कि सदस्य देशों को लोगों का जीवन बचाने के लिए अल्कोहल पर टैक्स लगाने और इसके विज्ञापन पर पाबंदी लगाने जैसे रचनात्मक तरीकों पर विचार करना चाहिए.

दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार भारत

भारत दुनिया में शराब का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है. यहां अल्कोहल यानी शराब उद्योग सबसे तेजी से फलने-फूलने वाले उद्योगों में शामिल है. लेकिन आखिर इस तेज रफ्तार विकास की वजह क्या है? इस उद्योग से जुड़े सूत्रों का कहना है कि युवा तबके में शराब के सेवन की बढ़ती लत ही इसके लिए मुख्यरूप से जिम्मेदार है.

सूचना तकनीक समेत कई क्षेत्रों में युवाओं को शुरुआती नौकरियों में मिलने वाले भारी पैसों और तेजी से विकसित होती पब संस्कृति ने इसे बढ़ावा दिया है. यह उद्योग काफी लचीला है. शराब के विभिन्न ब्रांडों की कीमतें बढ़ने के बावजूद न तो उनकी मांग कम होती है और न ही लोग पीना कम करते हैं. उल्टे लोग कम कीमत वाले दूसरे ब्रांडों का सेवन करने लगते हैं.

एक गैर-सरकारी संगठन के प्रमुख दिलीप मोहंती कहते हैं, "बंगलुरू, हैदराबाद, पुणे और गुरुग्राम जैसे शहरों में आईटी उद्योग में आने वाली क्रांति और बेहतर वेतन-भत्तों की वजह से अब युवाओं के एक बड़े तबके के पास काफी पैसा है. सप्ताह में पांच दिनों की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद सप्ताहांत के दो दिन वे अपने मित्रों के साथ इन पैसों को पबों या बार में उड़ाते हैं."

देश में हाल के वर्षों में अल्कोहल निर्माता कंपनियों की भी बाढ़-सी आ गई है. हर महीने बाजार में कोई न कोई नया ब्रांड आ जाता है. मोहंती कहते हैं, "देश में शराब की खपत बढ़ने की मुख्यतः दो वजहें हैं, जागरूकता की कमी और उपलब्धता. पढ़ाई, नौकरी या छुट्टियां मनाने के लिए अब हर साल लाखों भारतीय विदेश जा रहे हैं. वहां उनको आसानी से शराब की नई-नई किस्मों की जानकारी मिलती है." इसके अलावा अब हर गली-मोहल्ले में ऐसी दर्जनों दुकानें खुलती जा रही हैं. आसानी से उपलब्ध होने और कीमतों के लिहाज से एक बड़ी रेंज के बाजार में आने की वजह से खासकर युवकों के लिए अल्कोहल के ब्रांड का चयन करना आसान है.

समाजशास्त्रियों का कहना है कि रहन-सहन के स्तर में सुधार, वैश्वीकरण, आभिजत्य जीवनशैली और समाज में शराब के सेवन को अब पहले की तरह बुरी नजर से नहीं देखा जाना, देश में शराब की बढ़ती खपत की प्रमुख वजहें हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि भारत में कुल आबादी के लगभग 30 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं. उनमें से चार से 13 फीसदी लोग रोजाना शराब पीते हैं.

समाज के लिए चिंताजनक स्थिति 

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि देश में अल्कोहल की बढ़ती खपत चिंता का विषय है. यह आदत कम उम्र में ही कई बीमारियों को न्योता देती है. इनमें मुंह व गले के कैंसर, लीवर सिरोसिस और दिल की समस्याएं शामिल हैं. इसके अलावा ज्यादा मात्रा में नियमित सेवन से दिमाग को भी नुकसान पहुंचने का अंदेशा है.

मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुनील अवस्थी कहते हैं, "लंबे अरसे तक शराब के सेवन से पर्सनेलिटी डिसऑर्डर जैसी समस्या पैदा हो सकती है." देश के कई राज्यों में शराबबंदी लागू होने के बावजूद लोग चोरी-छिपे पीने का तरीका तलाश लेते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि शराबबंदी कानून को कड़ाई से लागू नहीं किया जाना इसकी प्रमुख वजह है. इसके अलावा ज्यादातर राज्यों में 18 से लेकर 21 साल से कम उम्र के युवकों को शराब नहीं बेचने का नियम है. लेकिन सरेआम इसकी धज्जियां उड़ाई जाती हैं. पुलिस व दूसरी संबंधित एजंसियां भी इस मामले में चुप्पी साधे रहती हैं.

सामाजिक संगठनों का कहना है कि युवाओं में पीने के खतरों के प्रति जागरूकता का भारी अभाव है. उनका कहना है कि शराब की बढ़ती खपत आगे चल कर गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती हैं. इसके लिए सरकारी और गैर-सरकारी संगठनो को मिल कर तेजी से जड़ें जमाती इस सामाजिक बुराई के खतरों के प्रति, खासकर युवा तबके को आगाह करने के लिए जागरूकता अभियान चलाना होगा. इसके साथ ही नाबालिगों को शराब नहीं बेचने के कानूनी प्रावधानों को गंभीरता से लागू करना होगा. ऐसा नहीं हुआ तो आगे चल कर देश का भविष्य कही जाने वाली युवा पीढ़ी का अपना भविष्य व जीवन हमेशा के लिए शराब के जाम में डूब जाएगा.

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