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भारत में धीरे-धीरे सम्मान पाता एलजीबीटी समुदाय

१२ अगस्त २०२२

भारत को आजाद हुए 75 साल पूरे हो गए हैं और हाशिए पर रहने वाला एलजीबीटीक्यू समुदाय समाज में धीरे-धीरे अपनी अलग पहचान बना रहा है. बदलते वक्त के साथ समुदाय को अधिकार भी मिल रहे हैं और उसकी आवाज को समर्थन भी.

प्राइड परेड में शामिल एलजीबीटी समुदाय के सदस्य
प्राइड परेड में शामिल एलजीबीटी समुदाय के सदस्य तस्वीर: Avishek Das/ZUMA Wore/IMAGO

भारत में एलजीबीटीक्यू की आबादी पर कोई पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं है लेकिन अधिकार कार्यकर्ता इसे देश की आबादी का दस फीसदी आंकते हैं. साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट को सरकार ने बताया था कि ऐसे व्यक्तियों की संख्या लगभग 25 लाख है.

साल 2011 की जनगणना में ट्रांसजेंडर लोगों की आबादी 4 लाख 90 हजार दर्ज की गई थी, लेकिन सरकार का कहना है कि यह संभव है कि कुछ ट्रांसजेंडर लोगों ने अपनी पसंद के मुताबिक खुद को पुरुष या महिला के रूप में पहचान दी हो.

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में आईपीसी की धारा 377 को समाप्त करते हुए दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. इसके बाद से ही एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को कई स्तरों पर पहचान मिलने लगी.

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद से अधिक से अधिक कॉर्पोरेट घराने जैसे कि एक्सेंचर, एफएमसीजी दिग्गज प्रॉक्टर एंड गैंबल और टाटा स्टील जैसी कंपनियों ने चिकित्सा लाभों समेत एलजीबीटीक्यू के अनुकूल नीतियां पेश कीं. कर्मचारी और उनके पार्टनर के लिए मेडिकल सुविधाएं भी अब दी जा रही हैं.

भारत में इस समुदाय ने लंबा सफर तय किया है. सामाजिक और पारिवारिक टिप्पणियों को ध्यान न देते हुए समुदाय के सदस्यों ने समाज में अलग पहचान बनाई है. लेकिन कई स्तरों पर समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव, शोषण, अपमान और क्रूरता की दुखद कहानी भी सामने आती है. एलजीबीटीक्यू अधिकार कार्यकर्ताओं के मुताबिक कागज पर लाभ के बावजूद समलैंगिक और ट्रांस लोग अभी भी भेदभाव झेलते हैं और उन्हें नियमित रूप से पुलिस उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है.

अगुआ है तमिलनाडु

दक्षिणी राज्य तमिलनाडु को एलजीबीटीक्यू समुदाय के अग्र दूत के रूप में जाना जाता है. इसी साल उसने इस समुदाय से संबंधित लोगों और इनके कल्याण के लिए काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों को पुलिस उत्पीड़न से बचाने के लिए तमिलनाडु अधीनस्थ पुलिस अधिकारी आचरण नियमावली में संशोधन किया था. तमिलनाडु के गृह विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया था कि कोई भी पुलिस अधिकारी इन समुदायों के लोगों और इनके कल्याण से जुड़े गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं को परेशान नहीं करेगा.

ट्रांस अधिकार कार्यकर्ता और सहोदरी फाउंडेशन की संस्थापक कल्कि सुब्रमण्यम कहती हैं, "तमिलनाडु एलजीबीटीक्यू+ अधिकारों में अग्रणी है, खासकर तब जब ट्रांसजेंडर के जीवन को पहचानने की बात आती है." कल्कि का संगठन तमिलनाडु में ट्रांसजेंडर महिलाओं की मदद करता है.

कई कंपनियों एलजीबीटी समुदाय के लोगों के लिए नीतियां पेश कर रही हैंतस्वीर: Punit Paranjpe/AFP

1994 से ही तमिलनाडु ने ट्रांसजेंडर समावेशी कदम उठाने शुरू कर दिए थे, जब उसने ट्रांसजेंडर सदस्यों को मतदान का अधिकार दिया. तमिलनाडु की ही तरह अन्य राज्यों ने ट्रांसजेंडर के समर्थन में कदम उठाए हैं. ओडिशा, कर्नाटक और केरल ने पिछले साल सरकारी नौकरियों में ट्रांसजेंडर लोगों के लिए एक फीसदी कोटा निर्धारित किया था.

एलजीबीटीक्यू+ मैचमेकिंग ऐप में काम में करने वाली पायल (बदला हुआ नाम) एक लेस्बियन हैं और वह अपने पार्टनर के साथ एक छोटा सा व्यवसाय भी चलाती हैं. वह कहती हैं, "नीतियों के कार्यान्वयन का आकलन करने के लिए संगठनों, कंपनियों और सार्वजनिक कार्यालयों की ऑडिटिंग समान रूप से महत्वपूर्ण है."

हालांकि ढाई साल पहले आई कोविड महामारी के कारण एलजीबीटीक्यू समुदाय के सदस्यों को आजीविका के संकट का सामना करना पड़ा. ऐसे लोगों को लॉकडाउन के कारण आवाजाही में दिक्कत हुई और उन्हें भुखमरी तक का सामना करना पड़ा. लेकिन स्थितियां सामान्य होने से उन्हें रोजगार के अवसर भी अब मिलने लगे हैं.

तीन साल पहले इस समुदाय के लिए एक और सकारात्मक कदम उठाया गया था. वह था ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, जो उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास, आवास, अन्य तक समान पहुंच प्रदान करता है.

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