मंथन 64 में खास
२६ नवम्बर २०१३भारत की कई नदियां जैविक लिहाज से मर चुकी हैं. इसका असर पर्यावरण के साथ लोगों पर भी पड़ रहा है. वर्ल्ड रिसोर्सेज रिपोर्ट के मुताबिक 70 फीसदी भारतीय गंदा पानी पीते हैं. पीलिया, हैजा, टायफाइड और मलेरिया जैसी कई बीमारियां गंदे पानी की वजह से होती हैं. रसायनिक खाद भी भूजल को दूषित कर रही है. कारखानों और उद्योग की वजह से हालत और बुरी हो गई है.
यमुना और एमशर की सफाई
तीन दशक पहले ही भारत में नदियों को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने शुरु कर दिए गए थे. 1987 में पहली राष्ट्रीय जल नीति बनाई गई. इसके बाद उसमें कई बदलाव भी हुए, लेकिन आज तक ऐसे स्पष्ट कानून नहीं बने और ना ही ऐसी संस्थाएं तैयार की गई, जो खास तौर पर जल प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हों. नियम है कि उद्योग अपना गंदा पानी खुद साफ करेंगे, लेकिन ऐसे बहुत कम मामले हैं जहां इसका पालन हुआ हो और दोषियों को सजा दी गई हो. उद्योगों पर इस तरह का दवाब नहीं डाला गया कि वे पानी को जहरीला करने वाले रसायनों को घटाएं.
हालांकि जिन देशों में वाटर मैनेजमेंट अच्छा है, उनसे मदद भी ली जा रही है. पिछले साल तय किया गया कि इस्राएल की मदद से भारत गंगा नदी को साफ करेगा और 2020 तक नदी को साफ कर दिया जाएगा. जल प्रबंधन के मामले में इस्राएल के पास बेहद उन्नत तकनीक है. लेकिन इस्राएली विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा को साफ करने में अगले 20 साल लग जाएंगे. विशेषज्ञ चाहते हैं कि नदियों के किनारे अलग से निकासी तंत्र बनाया. इस निकासी तंत्र में गंदा पानी बहता रहेगा. इसे नदी में तभी डाला जाएगा जब इसे पूरी तरह साफ कर दिया जाए. यमुना की सफाई में जर्मनी की भी मदद ली जा रही है. लेकिन मुश्किल ये है कि ठोस नियमों और कड़ी निगरानी के अभाव में ऐसी मदद के सफल होने की उम्मीदें भी कम ही हैं.
जर्मनी खुद भी अपनी नदियों को साफ करने में लगा है. यहां की नदी एमशर में कभी सीवेज का कचरा डाल दिया जाता था. पिछले दो दशकों से इसकी सफाई का काम चल रहा है. कैसे की जा रही है इस नदी की सफाई, बताएंगे मंथन के इस अंक में. ओंकार सिंह जनौटी से बातचीत में समझिए कि कैसे किया जाए नदियों का सही तरीके से रख रखाव.
अच्छी सेहत के लिए अच्छी फसल
फसल में कीड़ों का लगना किसानों का सबसे बड़ा सरदर्द होता है. समय से कुछ ना किया जाए तो सारी की सारी फसल नष्ट हो सकती है. दूसरी ओर रसायन वाले कीटनाशकों का इस्तेमाल ना तो स्वास्थ्य के लिए अच्छा है और न ही पर्यावरण के लिए. जर्मनी में कृषि वैज्ञानिक ऐसे उपाय खोजने में लगे हैं कि समस्या के पैमाने का पता चल सके और किसान सिर्फ जरूरत भर दवाओं का इस्तेमाल करें.
साथ ही खाने पीने में ऑर्गेनिक और टिकाऊ सामान का इस्तेमाल बहुत से जर्मनों के लिए सामान्य हो गया है. ऑर्गेनिक फल सब्जी उगाते समय कोशिश की जाती है कि रसायनों का इस्तेमाल ना किया जाए. इस तरह का खाना महंगा जरूर पड़ता है, लेकिन सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए अच्छा होता है और इसीलिए यह कारोबार फल फूल भी रहा है. बाकी सामान के साथ साथ तेल के टिकाऊ उत्पादन पर भी जोर दिया जा रहा है. इस बारे में और जानकारी मंथन में शनिवार सुबह 10.30 बजे डीडी नेशनल पर.
इसके अलावा बताएंगे आपको कि मंच पर परफॉर्म करने वाले स्टार्स की चकाचौंध कैसे बढ़ाई जाती है. जर्मन इंजीनियर और डिजाइनर मोरित्स वाल्डेमायर तकनीक और कला का एक रोमांचक मिश्रण तैयार करते हैं जिससे स्टेज पर रोशनी बिखर जाती है. लेजर किरणों से भरी तस्वीरों को देखना आप यकीनन बहुत पसंद करेंगे.
आईबी/एनआर