भारत में बढ़ रही हिंसा से अर्थव्यवस्था को भी नुकसान
मारिया जॉन सांचेज
११ जून २०१८
अर्थशास्त्र एवं शांति संस्थान की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार 163 देशों और क्षेत्रों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि भारत विश्व के 50 सर्वाधिक कम शांतिपूर्ण देशों में शामिल है.
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भारत के गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 में हुई 822 सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में 111 लोग मारे गए और 2,384 घायल हुए. इस प्रकार की सबसे अधिक 195 घटनाएं उत्तर प्रदेश में हुईं जिनमें 44 व्यक्ति मारे गए और 542 अन्य जख्मी हुए. उत्तर प्रदेश के बाद कर्नाटक दूसरे स्थान पर था. यानी देश के उत्तर और दक्षिण, दोनों भागों में लगातार हिंसक घटनाएं घट रही थीं.
भारतीय समाज जातियों, धर्मों, समुदायों और क्षेत्रीयताओं में बंटा हुआ है और समय-समय पर विभिन्न जातियों, धर्मों, समुदायों और क्षेत्रीयताओं के बीच संघर्ष होता रहता है. अभी कुछ ही दिन पहले उत्तर-पूर्व के राज्य असम के करबी अंगलोंग जिले में दो युवाओं की एक उत्तेजित भीड़ ने इतनी पिटाई की कि एक की तो घटनास्थल पर मृत्यु हो गयी और दूसरा अस्पताल ले जाते समय रास्ते में चल बसा. इनमें एक संगीतकार था और दूसरा इंजीनियर. दरअसल इस समय पूरे भारतीय समाज में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है और लोकतांत्रिक एवं मुक्त संवाद की जगह सिकुड़ती जा रही है.हिंसा की जड़ें सदियों से चले आ रहे तनावों और संघर्षों में हैं तो साथ ही पिछले कुछ दशकों के दौरान बने माहौल में भी हैं. इस दौरान दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार और हिंसा की घटनाओं में बहुत भारी बढ़ोतरी हुई है. कानून एवं व्यवस्था के लिए जिम्मेदार राज्य प्रशासन और पुलिस या तो हरकत में आते ही नहीं, या अगर आते हैं तो अक्सर जुल्म करने वाले के पक्ष में काम करते हैं. कुछेक मामलों में अगर वे क़ानून की प्रक्रिया का पालन भी करते हैं तो इतनी सुस्ती के साथ कि पीड़ितों को न्याय मिलने की कोई आशा शेष नहीं रहती. यह भी सही है कि दो जातियों या समुदायों के बीच की हिंसा के अलावा राज्य की पुलिस और सेना जैसी एजेंसियां भी बहुत भारी मात्रा में हिंसा में अपना योगदान देती हैं. गों पर हमले कर रहे हैं और किसी भी जानवर को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाले को गाय ले जाने का आरोप लगा कर मार रहे हैं. इसके कारण देश भर में जानवरों के क्रय-विक्रय के व्यापार पर बहुत बुरा असर पड़ा है क्योंकि खरीदने और बेचने वाले डरे हुए हैं. सोशल मीडिया पर आनन-फानन में कोई भी अफवाह फैला दी जाती है और इनका इस्तेमाल सांप्रदायिक हिंसा भड़काने या किसी व्यक्ति अथवा समूह-विशेष को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. एक विशेष प्रकार की हिंसा का महिमामंडन---मसलन नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गाँधी की हत्या---भी इस प्रकार के माहौल को बनाने में मददगार साबित होता है.
भारतीय जनता पार्टी विकास के मुद्दे पर सत्ता में आयी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों को गंभीरता के साथ सोचना होगा कि यदि एक साल में देश की अर्थव्यवस्था को लगभग सवा खरब डॉलर का नुकसान केवल हिंसा की बढ़ती घटनाओं के कारण सहना पड़ेगा तो आर्थिक विकास कैसे रफ़्तार पकड़ पाएगा. समाज में शांति और सौमनस्य के बिना न व्यापार में प्रगति हो सकती है और न ही उद्योग में. इसलिए शान्ति बहाल करना न केवल राजनीति के हित में है बल्कि अर्थतंत्र के हित में भी है.
दुनिया भर में बढ़ रहा है तनाव
मध्यपूर्व और अफ्रीकी देशों में फैली हिंसा और तनाव का असर पूरी दुनिया पर पड़ा है. ग्लोबल पीस इंडेक्स के ताजा आंकड़े बताते हैं कि साल 2017 में दुनिया के किस मुल्क में अशांति रही तो किसे सुकून कायम करने में सफलता मिली.
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शांति बनाम तनाव
ऑस्ट्रेलिया के इंस्टीट्यूट एंड पीस (आईईपी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि साल 2017 में यूरोप दुनिया का सबसे शांत क्षेत्र रहा. वहीं मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देशों में तनाव और हिंसा में वृद्धि देखी गई. कुल मिलाकर अशांति हावी रही.
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वैश्विक शांति को खतरा
आईईपी के मुताबिक वैश्विक शांति में लगातार गिरावट नजर आ रही है. यह सतत है और पिछले एक दशक से चल रही है. रिपोर्ट में कहा गया है, "मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका के विवादों का असर दुनिया के अन्य हिस्सों में भी दिखा है. जो वैश्विक शांति के लिए खतरा है."
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ग्लोबल पीस इंडेक्स
आईईपी का ग्लोबल पीस इंडेक्स बताता है कि 2017 में 92 देशों ने शांति दर में गिरावट महसूस की. वहीं सिर्फ 71 देशों में स्थितियां सुधरीं. आईईपी प्रमुख स्टीव किलेलिया ने कहा कि यह ट्रेंड दुनिया में पिछले चार सालों से बना हुआ है.
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उत्तरी अफ्रीका अशांत
ग्लोबल पीस इंडेक्स के मुताबिक मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीकी देश दुनिया के सबसे अशांत क्षेत्रों में रहे. इंडेक्स में सीरिया, अफगानिस्तान, दक्षिणी सूडान, इराक, सोमालिया जैसे देशों को सबसे निचले पायदानों पर रखा गया है.
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कुछ सुधार भी
रिपोर्ट मुताबिक सब-सहारा अफ्रीकी देशों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है. लाइबेरिया, बुरुंडी, सेनेगल इंडेक्स में शामिल उन देशों में से हैं जिनकी स्थिति बेहतर हुई है. अफ्रीका का मुख्य क्षेत्र आम तौर से सब-सहारा कहलाता है. इसमें मुख्यत: उत्तर अफ्रीका के इस्लामी देश जैसे मिस्र, अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, लीबिया शामिल नहीं हैं.
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यूरोप में सुकून
सुकून भरे देशों के टॉप 5 नामों में न्यूजीलैंड को छोड़कर सभी चार नाम यूरोपीय देशों के हैं. इसमें आइसलैंड, ऑस्ट्रिया, पुर्तगाल, डेनमार्क शामिल है. जर्मनी को इंडेक्स में 17वां स्थान मिला है.
तमाम थिंक टैंक, रिसर्च इंस्टीट्यूट, सरकारी कार्यालयों और यूनिवर्सिटियों से जुटाए गए डाटा के आधार पर आईईपी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हिंसा के आर्थिक नुकसान की भी चर्चा की. 2017 में युद्ध और हिंसा के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था पर 14,800 अरब डॉलर का बोझ पड़ा. कुल मिलाकर 2000 डॉलर प्रति व्यक्ति नुकसान.
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अर्थव्यवस्था में इजाफा
स्टडी कहती है कि अगर सीरिया, दक्षिणी सूडान और ईराक जैसे अशांत क्षेत्रों में भी आइसलैंड और न्यूजीलैंड जैसे देशों की तरह शांति स्थापित हो जाए तो यह उन देशों की अर्थव्यवस्था में प्रति व्यक्ति दो हजार डॉलर का इजाफा करेगी.
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कितना नुकसान
पिछले दस सालों में दुनियाभर में विवाद और तनाव बढ़ा है. पिछले एक दशक के दौरान युद्ध क्षेत्रों में होने वाली मौतों में 246 फीसदी की वृद्धि हुई. वहीं आतंकवाद के मामले में यह बढ़ोतरी तकरीबन 203 फीसदी की रही.
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क्या है पैमाना
ग्लोबल पीस इंडेक्स को 23 पैमानों पर नापा जाता है. इसमें समाज में सुरक्षा, मौजूदा विवाद, सैन्यीकरण आदि प्रमुख है. इसके साथ हत्याओं के आंकड़ें से लेकर किसी देश की जेल में बंद कैदियों, पुलिस अधिकारियों आदि का डाटा भी जुटाया जाता है.